लखनऊ में बिजली निजीकरण के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन का माहौल गरमा गया है. पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में हजारों बिजली कर्मचारी सड़कों पर उतर आए. कर्मचारियों ने साफ चेतावनी दी कि जिस दिन निजीकरण का टेंडर निकाला जाएगा, उसी दिन से वे अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार और जेल भरो आंदोलन शुरू कर देंगे.
इस आंदोलन को क्रांतिकारी किसान यूनियन का भी समर्थन मिला है. यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. दर्शन पाल ने किसानों और खेतिहर मजदूरों से अपील की कि वे बिजलीकर्मियों के इस संघर्ष में साथ खड़े हों. वहीं, यूनियन के महासचिव शशिकांत ने कहा कि किसानों की रोजमर्रा की जरूरतों पर बिजली निजीकरण का सीधा असर पड़ेगा.
बिजलीकर्मियों का आंदोलन केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है. नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लॉइज एंड इंजीनियर्स ने देशभर के बिजली कर्मचारियों से जिलों और बिजली परियोजनाओं पर विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया है. उत्तर प्रदेश की विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का दावा है कि प्रदेश के सभी बिजलीकर्मी इस राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं.
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इस बीच, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद भी निजीकरण के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी है. परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आरोप लगाया है कि पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन ने विद्युत अधिनियम-2003 की धारा 131(2) का उल्लंघन किया है उनका कहना है कि अधिनियम के तहत बिजली कंपनियों की परिसंपत्तियों और 25 साल की राजस्व क्षमता का मूल्यांकन करना अनिवार्य है, लेकिन प्रबंधन ने ऐसा नहीं किया.
परिषद का आरोप है कि परिसंपत्तियों का सही मूल्यांकन न करने के पीछे वजह यह है कि इससे बिजली कंपनियों की कीमत बढ़ जाती और निजीकरण महंगा हो जाता. अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि नियामक आयोग के अध्यक्ष के अवकाश से लौटने पर उपभोक्ता परिषद इस पूरे मामले को आयोग में चुनौती देगी.
बिजलीकर्मियों का कहना है कि सरकार विद्युत अधिनियम 2003 की धाराओं 131, 132, 133 और 134 का इस्तेमाल कर 42 जिलों की बिजली का निजीकरण कराना चाहती है, जबकि परिषद का कहना है कि इन धाराओं का प्रयोग पहले ही बिजली कंपनियों के विघटन के समय हो चुका है और कानून के मुताबिक इन्हें दोबारा लागू नहीं किया जा सकता. ऐसे में आंदोलन की गूंज आगे और तेज होती नजर आ रही है.