हिमालय की ऊंची चोटियां और हरी-भरी घाटियां हमेशा से प्रकृति का अद्भुत नजारा रही हैं. लेकिन आजकल यह इलाका हर रोज आपदाओं का शिकार हो रहा है. भूस्खलन, बादल फटना, आकस्मिक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) जैसी घटनाएं हिमालय को बर्बाद करने पर तुली हुई हैं.
खासकर मॉनसून के मौसम में यह तबाही और तेज हो जाती है. पश्चिमी हिमालय के राज्य जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. 2025 का यह मॉनसून सीजन तो रिकॉर्ड तोड़ रहा है.
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2025 मॉनसून: बर्बादी का नया रिकॉर्ड
इस साल मॉनसून समय से पहले आ गया और उसके साथ ही आपदाओं का दौर शुरू हो गया. जनवरी से अगस्त 2025 तक हिमालयी राज्यों में हर दिन कोई न कोई आपदा आ रही है. DTE के विश्लेषण के मुताबिक, 1 जनवरी से 18 अगस्त तक कम से कम 632 लोग मारे गए. लेकिन अब सितंबर में भी बारिश जारी है, तो यह संख्या और बढ़ सकती है.
कुल मिलाकर, पूरे भारत में जून से सितंबर तक 743.1 मिमी बारिश हो चुकी है, जो सामान्य से 6.1% ज्यादा है. उत्तर-पश्चिम भारत में अगस्त में 265 मिमी बारिश रिकॉर्ड हुई, जो 2001 के बाद सबसे ज्यादा है. भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने सितंबर के लिए 109% ज्यादा बारिश की चेतावनी दी है.
हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा तबाही हुई है. राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) के अनुसार, 20 जून से अब तक 340 लोग मारे गए – इसमें 182 की मौत बारिश-संबंधी घटनाओं जैसे भूस्खलन, फ्लैश फ्लड, बादल फटने और डूबने से हुई, जबकि 158 सड़क हादसों में.
उत्तराखंड में कम से कम 145 मौतें हुईं, जम्मू-कश्मीर में 122 और पंजाब में 29. कुल नुकसान 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का अनुमान है. सड़कें, बिजली, पानी की आपूर्ति सब बाधित हो गई है. हिमाचल में 1,334 सड़कें बंद हैं, जिसमें 4 राष्ट्रीय राजमार्ग शामिल हैं. मंडी जिले में 281 सड़कें अवरुद्ध हैं.
आपदाओं के पीछे की मुख्य वजहें
हिमालय की त्रासदी की कई वजहें हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियां सबसे बड़ी हैं. पहले जहां ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में कम बारिश होती थी, वहां अब लगातार भारी बारिश हो रही है. ग्लेशियरों के पास मलबा (हिमोढ़ या मोरैन) जमा होता है.
जब बारिश से यह मलबा गीला हो जाता है, तो जल संतृप्तता (सेचुरेशन) हो जाती है. इससे पानी तेज धारा बनकर संकरी घाटियों में बहता है. भूस्खलन शुरू होता है. यह चेन रिएक्शन फ्लैश फ्लड में बदल जाता है.
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उत्तराखंड का धराली: 5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में फ्लैश फ्लड आया. प्रारंभिक जांच में मोरैन की वजह से ग्लेशियर झील फटने जैसी स्थिति बनी. 4 लोग मारे गए, 70+ लापता, 40-50 घर-होटल बह गए. सेना कैंप भी प्रभावित हुआ. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि बचाव कार्य मुश्किल हो रहा है क्योंकि बारिश रुक नहीं रही.
हिमाचल का मंडी: 28-29 जुलाई 2025 को मंडी शहर में बादल फटने से फ्लैश फ्लड आया. समुद्र तल से 3300 मीटर ऊंचाई पर शिकारी माता मंदिर के आसपास इतनी बारिश हुई कि कई गांव और बाजार बह गए. 3 लोग मारे गए. कुल 51 मौतें जुलाई में ही हुईं.
अन्य घटनाएं: 14 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के किश्तवार में चाशोटी में बादल फटने से 44 लोग मारे गए, ज्यादातर तीर्थयात्री. 27 अगस्त को वैष्णो देवी मार्ग पर भूस्खलन से 34 मौतें. पंजाब में 1,400 गांव डूबे, 3 लाख एकड़ फसल बर्बाद. क्लाउडबर्स्ट का ट्रेंड बढ़ रहा है, हालांकि IMD के मुताबिक बड़े क्लाउडबर्स्ट नहीं, लेकिन मिनी वाले ज्यादा हो रहे हैं.
मानवीय वजहें भी कम नहीं: पहाड़ों पर बिना प्लानिंग के सड़कें, टनल, होटल बनाना, जंगलों की कटाई, कंक्रीट का ज्यादा इस्तेमाल – ये सब पहाड़ों को कमजोर कर रहा है. मुख्य सेंट्रल थ्रस्ट जोन (टेक्टॉनिक रूप से संवेदनशील) में बड़े प्रोजेक्ट धकेलना आपदा को न्योता दे रहा है. सुप्रीम कोर्ट की कमिटी ने चेतावनी दी थी, लेकिन सुधार नहीं हुए.
बचाव और रोकथाम के उपाय
इन आपदाओं से बचने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है. पहला, फ्लैश फ्लड के रास्तों की पहचान करें और उन इलाकों को खाली रखें. IMD की चेतावनियों पर अमल करें – जैसे रेड अलर्ट पर स्कूल बंद, यात्रा रोकें. सेना, NDRF, SDRF ने हजारों लोगों को बचाया है. 5000+ लोग रेस्क्यू हो चुके हैं.
केंद्र सरकार ने इंटर-मिनिस्टीरियल टीम भेजी है नुकसान का आकलन करने. लेकिन लंबे समय के लिए: पर्यावरण-अनुकूल विकास, जंगल बचाना, मौसम पूर्वानुमान को मजबूत करना जरूरी. स्थानीय लोग कहते हैं कि यह प्राकृतिक आपदा नहीं, मानव-निर्मित है.
समय है जागने का
हिमालय हमारा प्राकृतिक खजाना है, लेकिन अगर हमने अभी नहीं सुधरा, तो यह बर्बादी और बढ़ेगी. जलवायु परिवर्तन और गलत विकास मॉडल से ये आपदाएं बढ़ रही हैं. सरकार, वैज्ञानिक और हम सबको मिलकर काम करना होगा. सतर्क रहें, चेतावनियों का पालन करें.
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