गुरुग्राम में कुछ ही घंटों की बारिश से बाढ़ आ जाना अब आम बात हो गई है. यहां के लोगों के लिए बारिश राहत नहीं बल्कि आफत लेकर आती है. आखिर बारिश के सामने क्यों बेबस हो जाता है ये शहर. दरअसल गुरुग्राम अरावली की ढलान पर बसा है, जहां पानी का बहाव नीचे की ओर होता है. इस ढलान पर अब कंक्रीट का घना जंगल खड़ा हो गया है.
शहर की सड़कें साहिबी नदी के जलग्रहण क्षेत्र और प्राकृतिक जल निकायों को काटती हैं. इन सब कारणों से, बारिश के पानी को बहने की जगह नहीं मिल पाती और वह शहर में ही जमा हो जाता है, जिससे हर साल बाढ़ की स्थिति बन जाती है.
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1984 से 2022 तक क्या बदलाव?
अगर हम 20 साल पहले की बात करें, तो गुरुग्राम असल में एक गांव जैसा ही था. साल 1984 से 2022 तक की सैटेलाइट तस्वीरों को देखने से पता चलता है कि गुरुग्राम की ज़मीन कैसे पूरी तरह बदल गई. कभी यहां चारों तरफ खुले खेत और कई तालाब हुआ करते थे. लेकिन, बेतहाशा निर्माण के बाद अब हर जगह बस कंक्रीट ही कंक्रीट नज़र आती है. इसी वजह से अब ये पूरा इलाका ग्रे दिखाई देता है.
जैसे-जैसे गुरुग्राम का विकास हुआ, यहां अरावली पहाड़ियों की ढलान पर एक के बाद एक इमारतें और नए सेक्टर बनते गए. गुरुग्राम की प्राकृतिक ढलान साहिबी नदी की ओर है. यह नदी हरियाणा के गुरुग्राम और दिल्ली के बीच दो हिस्सों में सीमा बनाती है. साहिबी नदी अब एक नाले में बदल गई है, जो दिल्ली में नजफगढ़ नाले के रूप में बहती है. पुराने गुरुग्राम में बारिश का पानी अरावली से प्राकृतिक रूप से बहकर साहिबी नदी के जलग्रहण क्षेत्र में जाता था. आज भी सरकारी नक्शों में साहिबी नदी को हरियाणा, खासकर गुरुग्राम के पड़ोसी रेवाड़ी जिले की सिंचाई और जल निकासी प्रणाली का एक अहम हिस्सा माना जाता है.
यह केवल साहिबी नदी की बात नहीं है. गुरुग्राम के विकास ने यहां के अधिकतर जल निकायों को या तो खत्म कर दिया है या इतना संकरा कर दिया है कि उन्हें पहचानना मुश्किल है.
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गुरुग्राम ने अपने जल निकायों को निगल लिया
हाइड्रोलॉजिकल पुरातत्व के विशेषज्ञ, विनीत भानवाला, इंडिया टुडे डिजिटल को बताते हैं, "1990 के दशक में गुरुग्राम के तेजी से विकास से पहले, यहां सैकड़ों छोटे-छोटे तालाब और बावड़ियां थीं, जो बारिश का पानी इकट्ठा करती थीं." भानवाला का कहना है कि इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि ये जल निकाय साहिबी नदी से जुड़े थे या नहीं, लेकिन कुछ का कनेक्शन हो सकता है.
भानवाला बताते हैं, "वे निश्चित रूप से बारिश के पानी के लिए जलाशय का काम करते थे, जब गुरुग्राम एक गांव था, तब किसान इन तालाबों पर सिंचाई के लिए निर्भर थे." उदाहरण के लिए, सुखराली तालाब को ही ले लीजिए. गुरुग्राम नगर निगम आज भी इसे "झील" कहता है, लेकिन यह असल में बड़े-छोटे तालाबों से भरा एक इलाका था जो पानी इकट्ठा करने का काम करता था. द टाइम्स ऑफ इंडिया की 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार, गुरुग्राम में ऐसे 75 जल निकाय थे जो अब या तो गायब हो गए हैं या सिकुड़ गए हैं. नतीजतन, जो बारिश का पानी अरावली की ढलान से प्राकृतिक रूप से बहकर तालाबों और झीलों में जाता था, उसे अब न तो बहने का रास्ता मिल पा रहा है और न ही इकट्ठा होने की जगह.
कैसे कंक्रीट का जंगल बन गया ये शहर?
गुरुग्राम में बेरोकटोक निर्माण ने ज़मीन की उस परत को भी ढक दिया है जो पहले बारिश के पानी को सोख लेती थी, नतीजा यह है कि अब बारिश का पानी सड़कों और इमारतों के बेसमेंट में भर जाता है. दिल्ली की टाउन प्लानर अपाला मिश्रा इंडिया टुडे डिजिटल को बताती हैं, "तेजी से शहरीकरण ने गुरुग्राम में समस्या को और बढ़ा दिया है. अब पानी सोखने वाली ज़मीन की जगह कंक्रीट ने ले ली है. पुराने नक्शों में दिखने वाली प्राकृतिक जलधाराओं और जल निकायों पर भी निर्माण कर दिया गया है, जिससे केवल मानव निर्मित नाले बचे हैं जो अक्सर बंद रहते हैं या अपर्याप्त हैं."
1984 से 2022 तक के गूगल अर्थ के टाइम-लैप्स मैप से पता चलता है कि गुरुग्राम में यह बदलाव रातों-रात नहीं हुआ. मैप में आप देख सकते हैं कि सुखराली झील, जो एक जल-संग्रहण क्षेत्र था, के पास से कैसे राजमार्ग गुजरने लगे. विडंबना यह है सबसे बड़ा हरा-भरा इलाका जो अभी भी बचा हुआ है, वह एक हथियारों का डिपो है.
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गुरुग्राम को दिल्ली के दबाव को कम करने के लिए एक सैटेलाइट सिटी के रूप में बनाया गया था. लेकिन शहरी योजना बनाते समय गुरुग्राम की प्राकृतिक बनावट पर ध्यान नहीं दिया गया. यही वजह है कि गुरुग्राम ने खुद ही अपने आप को फंसा लिया.
मुंबई के आईएम कादरी आर्किटेक्ट्स के प्रिंसिपल आर्किटेक्ट और पार्टनर राहुल कादरी कहते हैं- 'इंजीनियर अक्सर सिर्फ तूफानी पानी की नालियों पर निर्भर रहते हैं, लेकिन वे प्राकृतिक ढलान, जल निकायों और पानी के रिसने का ध्यान नहीं रखते. ऐसी जल निकासी प्रणालियां हमेशा विफल होंगी.' कादरी ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया, "कुछ सालों में, ये प्राकृतिक नाले एक-एक करके भर दिए गए हैं, जिससे जल निकासी का कोई उपाय नहीं बचा है." वे चेतावनी देते हैं कि गुरुग्राम का कंक्रीटीकरण केवल बाढ़ की समस्या को और बढ़ाएगा.
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जैसे-जैसे गुरुग्राम का विकास हुआ, सुखराली तालाब के पास जैसे जलग्रहण क्षेत्रों में इमारतें और राजमार्ग बनते गए. सड़कों की रूपरेखा तैयार की गई और भूखंड बिना सोचे-समझे आवंटित कर दिए गए. शहरी-योजना विशेषज्ञ मिश्रा कहती हैं, "सड़कों का लेआउट तैयार किया गया, फिर भूखंड बिल्डरों को सौंप दिए गए, जिन्होंने विकास के नाम पर प्राकृतिक जल निकासी पैटर्न को बदल दिया और वैकल्पिक नाले बना दिए. इन नालों में न तो आवश्यक क्षमता है और न ही स्वयं-सफाई (सेल्फ-क्लीनिंग) की गति."
मिश्रा कहती हैं कि इन नालों को नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है, लेकिन अक्सर इन्हें अनदेखा छोड़ दिया जाता है और ये पूरी तरह से बंद हो जाते हैं. गुरुग्राम का विकास मॉडल एक विशिष्ट राजनेता-नौकरशाह-बिल्डर गठजोड़ का उदाहरण है. हर विकास के बाद जमीन हड़पना, जिसके परिणामस्वरूप रियल एस्टेट का मूल्य तेजी से बढ़ता है, लेकिन नागरिक मुद्दों पर लोगों को खुद ही जूझने के लिए छोड़ दिया जाता है.
गुरुग्राम का भविष्य क्या है?
गुरुग्राम न केवल हरियाणा के लिए सबसे बड़ा राजस्व कमाने वाला शहर है, बल्कि देश के शीर्ष रियल एस्टेट बाजारों में से एक भी है. यहीं पर लोगों ने अपना जीवन भर का पैसा एक फ्लैट को 'घर' कहने के लिए निवेश किया है. इनमें से ज़्यादातर लोगों को शायद यह एहसास भी नहीं होगा कि ये इमारतें निचले इलाकों में बनाई गई थीं, जहां बारिश का पानी प्राकृतिक रूप से बहकर आता है.
तो अब इसका समाधान क्या है?
शहरी-योजना विशेषज्ञ मिश्रा गुरुग्राम की नागरिक समस्याओं को हल करने के लिए एक एकजुट प्राधिकरण बनाने की वकालत करती हैं वो मिश्रा कहती हैं, "सरकार का बिखरा हुआ शासन और कई अधिकारियों का होना बाढ़ जैसी समस्याओं को बढ़ाता है, और यह आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है."
आर्किटेक्ट कादरी का कहना है कि बारिश के पानी के बहाव को धीमा करने की ज़रूरत है, पानी रोकने के लिए जलाशय बनाए जाने चाहिए, और पानी को पुराने पड़ चुके जल निकासी नेटवर्क में जबरदस्ती डालने के बजाय उसे ज़मीन में रिसने देना चाहिए. बारिश का पानी अपना रास्ता ढूंढ रहा है और उस जगह तक पहुंच रहा है जहां उसे पहुंचना चाहिए. इसलिए, जब कुछ घंटों की बारिश के बाद गुरुग्राम डूब जाए तो हैरान न हों, क्योंकि बारिश के पानी को बहने के लिए कोई और जगह नहीं है. जब तक हम ज़मीन की प्राकृतिक बनावट का उपयोग करके जल निकासी प्रणाली में सुधार नहीं करते, तब तक हर मॉनसून में गुरुग्राम पानी में डूबा रहेगा.
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