विजय शाह पर SIT और प्रोफेसर मेहमूदाबाद को 14 दिनों की जेल, कैसे होता है ये 'न्‍याय'?

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मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री डॉक्टर कुंवर विजय शाह की माफी सुप्रीम कोर्ट ने नामंजूर कर दी है. असल में, विजय शाह की माफी अदालत को 'मगरमच्छ के आंसू' महसूस हो रहे हैं. विजय शाह ने ऑपरेशन सिंदूर पर प्रेस ब्रीफिंग करने वाली सैन्य अफसर कर्नल सोफिया कुरैशी को आंतकवादियों की बहन बताया था, और तभी से विवादों में हैं. 

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने विजय शाह के बयान पर स्वतः संज्ञान लेते हुए 4 घंटे के भीतर FIR दर्ज करने का आदेश दिया था. FIR दर्ज भी हो चुकी है, और उस FIR की भाषा पर भी हाई कोर्ट नाराजगी जता चुका है. हाईकोर्ट ने FIR को सिर्फ खानापूर्ति बताया था. बाद में हाईकोर्ट ने कहा, मामले में पुलिस जांच की निगरानी अदालत करेगी. जांच किसी दबाव में प्रभावित न हो इसलिए ऐसा करना जरूरी है - मंत्री विजय शाह ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है. 

सुप्रीम कोर्ट ने विजय शाह की गिरफ्तारी पर तो रोक लगा दी, लेकिन जांच के लिए एसआईटी गठित करने का आदेश दिया था - और अब मध्य प्रदेश सरकार ने अदालत के आदेश पर एसआईटी का गठन भी कर दिया है - लेकिन सोशल मीडिया पर सवाल ये पूछा जा रहा है कि एसआईटी करेगी क्या? 

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और राज्य सरकार का एक्शन

कर्नल सोफिया कुरैशी पर बयान देकर फंसे विजय शाह की माफी सुप्रीम कोर्ट ने भले न मंजूर की हो, लेकिन गिरफ्तारी पर रोक लगाकर तो बड़ी राहत दे डाली है - और उससे भी बड़ी राहत तो उनके लिए एसआईटी का गठन साबित हो सकता है - क्योंकि बहुत दबाव नहीं बढ़ा तो इस्तीफा भी नहीं देना पड़ेगा.

जांच भी चलती रहेगी, और मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने रहेंगे. बीजेपी और सहयोगियों को सपोर्ट तो पहले से ही हासिल था, अब तो मोहलत का बायपास भी मिल गया है. और नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत भी तो यही है कि चाहे कितने भी गुनहगार क्यों न बच जायें, लेकिन किसी बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिये.

आखिर सब जानते समझते हुए भी पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब को भी तो इंसाफ पाने का पूरा मौका दिया गया था. वकील भी मुहैया कराया गया था. अब अगर विजय शाह के बयान का वीडियो वायरल होने के बाद भी उसकी एसआईटी से जांच की जरूरत पड़ रही है, तो ये देश की न्याय व्यवस्था की खूबसूरती नहीं तो क्या है - कानून की अदालत में बचाव का अधिकार तो विजय शाह को भी है ही. 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने अपने ही मंत्री के खिलाफ जांच के लिए निर्धारित समय सीमा से काफी पहले ही एसआईटी का गठन कर दिया है. एसआईटी में सागर जोन के आईजी प्रमोद वर्मा के साथ विशेष सशस्त्र बल के डीआईजी कल्याण चक्रवर्ती और डिंडोरी जिले की एसपी वाहिनी सिंह को शामिल किया गया है. 

अदालत का आदेश था कि एसआईटी में तीन आईपीएस अफसरों को शामिल किया जाये, जिनमें एक आईजी और एसपी स्तर के होने चाहिये. और, इनमें एक अफसर महिला होनी ही चाहिये. कुछ शर्तें और भी थीं. मसलन, सभी अफसर मध्य प्रदेश से बाहर के होने चाहिये - और हां, एसआईटी को 28 मई तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करनी होगी.

एसआईटी जांच, और सोशल मीडिया पर सवाल

सबसे बड़ा सवाल तो यही उठाया जा रहा है कि सब कुछ पहले से ही दूध का दूध और पानी का पानी लग रहा है, विजय शाह ने जो कुछ कहा है उसका सार्वजनिक वीडियो वायरल है और वो बार बार माफी मांग रहे हैं, तो एसआईटी जांच की जरूरत क्यों आ पड़ी है?

ऐसे कदम तो अब तक सरकार की तरफ से उठाये जाते रहे हैं. पहले सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों से जांच के आदेश दे दिये जाते हैं, या कोई जांच आयोग बना दिया जाता है - और गुजरते वक्त के साथ हर कोई थक जाता है. जांच पूरी नहीं होती. कई मामलों में तो आखिर में एजेंसियां क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने की अर्जी भी लगा देती हैं. 

एक सवाल ये भी उठाया जा रहा है कि जिस आईपीएस अफसर को उसी राज्य में नौकरी करनी है, जहां की सरकार के मंत्री के खिलाफ जांच करनी है तो वो कितना हिम्मत जुटा पाएगा? 

SC orders SIT probe against MP minister over remarks on Col Qureshi.

Probe what exactly? He said it. Then he said that he said it. He also offered a half-assed apology.

So what will the 3-member SIT probe? Maathakharab

— ᴋᴀᴍʟᴇsʜ sɪɴɢʜ / tau (@kamleshksingh) May 19, 2025

Worse he’s not even denied saying it. So what exactly is the point of the SIT. So we collectively forget & move on till the next bigoted comment

— Swati Chaturvedi (@bainjal) May 19, 2025

The only SIT required is “Simple & Instant Termination - SIT” as Minister in MP Govt.

So stop beating around the bush.https://t.co/Z6zwSJVjcd

— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) May 20, 2025

विजय शाह के जैसा 'न्‍याय' प्रोफेसर मेहमूदाबाद को क्‍यों नहीं?

ऑपरेशन सिंदूर के बारे में जानकारी देने आईं सैन्‍य अफसरों के बारे में एक टिप्‍पणी मध्‍यप्रदेश के मंत्री विजय शाह ने की. और इन्‍हीं अधिकारियों के बारे में एक पोस्‍ट अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान मेहमूदाबाद ने फेसबुक पर लिखी. दोनों ही टिप्‍पणियों के बारे में ऐतराज किया गया. विजय शाह के बारे में कोर्ट को खुद संज्ञान लेना पड़ा. जबकि मेहमूदाबाद के ऊपर पूरा तंत्र टूट पड़ा. नतीजा ये हुआ कि विजय शाह को कानून के हर पायदान का फायदा मिल रहा है. जबकि मेहमूदाबाद पहली ही सीढ़ी पर 14 दिन के लिए जेल भेज दिए गए हैं. स्‍थानीय अदालत के फैसले के बाद मेहमूदाबाद भी सुप्रीम कोर्ट जाएंगे ही. देखते हैं कि दोनों मामले में कितना अंतर रह पाता है.

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