भारतीय प्रवासियों के लिए दक्षिण एशियाई शब्द, उस क्षेत्र के दूसरे देशों के समुदायों को भी साथ कर देता है, जिनसे सांस्कृतिक रूप से इंडियन कम्युनिटी की कोई समानता नहीं है. इसके साथ ही दूसरे देशों के लोगों से जुड़ी आपराधिक पहचान भी इस एक शब्द की वजह से भारतीय लोगों को कलंकित और कमतर करती हैं.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, जब कमला हैरिस ने अपना राष्ट्रपति अभियान शुरू किया, तो उन्होंने साउथ एशियन्स फॉर द पीपल नामक एक मंच की शुरुआत की. इससे भारतीय प्रवासियों में से कई लोगों ने 'दक्षिण एशियाई' लेबल पर अपनी नाराजगी जताई थी. लोगों का मानना था कि यह भारत की विशिष्ट पहचान को मिटा देता है. भारत कम से कम 2,000-3,000 साल पुराना है और 'दक्षिण एशिया' एक नया शब्द है जिसका मतलब भारत की पहचान को नकारना है.
ब्रिटेन और अमेरिका के प्रवासियों के दक्षिण एशियाई कहलाने से दिक्कत
ब्रिटेन और अमेरिका में कई भारतीय इस लेबल के साथ आने वाली समस्याओं के बारे में तेजी से मुखर हो रहे हैं. दक्षिण एशियाई का अर्थ आमतौर पर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव के लोगों से है.
पिछले महीने, इनसाइट यूके, जो खुद को 'ब्रिटिश हिंदुओं और भारतीयों का सामाजिक आंदोलन' बताता है. उसने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसी तरह की आपत्ति जताई थी.
इस एक शब्द से अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता खो रहे भारतीय समुदाय
इनसाइट यूके के मनु ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया कि एशियाई या एशियाई ब्रिटिश जैसे व्यापक शब्द भारतीय और अन्य देशों की पृष्ठभूमियों के बीच अंतर नहीं करते हैं. ये शब्द अलग-अलग समुदायों को एक साथ ले आते हैं और इसके साथ दूसरे समुदायों की बुराईयां भी हमारी पहचान के साथ जुड़ जाती है.
दूसरे समुदायों के बीच का अस्पष्ट अंतर भी हो रहा कम
भारतीयों को दक्षिण एशियाई कहना तटस्थ लग सकता है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण अंतर को कम कर देता है. इनसाइट यूके ने बताया कि उदाहरण के लिए, ब्रिटिश भारतीयों और ब्रिटिश पाकिस्तानियों का प्रवास इतिहास, धार्मिक जनसांख्यिकी और ब्रिटेन में योगदान अलग-अलग है. उन्हें एक साथ 'एशियाई' या 'दक्षिण एशियाई' के रूप में लेबल करने से महत्वपूर्ण अंतर अस्पष्ट हो जाते हैं, चाहे वह वर्कफोर्स रिप्रेजेंटेशन हो, स्वास्थ्य परिणाम हो या सामाजिक अनुभव में हो.
'दक्षिण एशियाई' शब्द से हजारों सा पुराना है 'भारतीय'
इंडियन कम्युनिटी की विशिष्टता को धुंधला करता है 'दक्षिण एशियाई' शब्द
ब्रिटेन में 1.8 मिलियन से अधिक और अमेरिका में लगभग 4.8 मिलियन भारतीय हैं. उत्तरी अमेरिका के हिंदुओं के गठबंधन (CoHNA) की पुष्पिता प्रसाद ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया कि हमारी पहचान सिर्फ जमीन से परिभाषित नहीं होती, यह एक सभ्यतागत और सांस्कृतिक स्थान है जो हजारों सालों से अस्तित्व में है. इस बात को लेकर कोई भ्रम नहीं है कि भारतीय कौन हैं. लेकिन इस स्पष्टता को धुंधला करने, भारतीय पहचान की विशिष्टता को कम करने और उसे कमजोर बनाने के लिए जानबूझकर प्रयास किया जा रहा है और इसी के तहत हम पर दक्षिण एशियाई का लेबल थोपा जा रहा है.
भारतीय त्योहारों को भी चिपक रहा ये लेबल
CoHNA की पुष्पित प्रसाद कहती हैं कि दिवाली और होली जैसे भारतीय त्योहारों को तेजी से 'दक्षिण एशियाई' के रूप में पुनः ब्रांड किया जा रहा है - यह कदम उनकी हिंदू जड़ों को मिटा देता है और उन्हें एक अस्पष्ट क्षेत्रीय पहचान में बदल देता है. यहां तक कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी हाल ही में मिठाइयों पर एक लेख लिखा और उन्हें 'दक्षिण एशियाई' कहा, जबकि उनमें से अधिकांश मिठाइयां मूलतः भारतीय थे.
भारतीयों के लिए 'दक्षिण एशियाई' लेबल खतरनाक क्यों है?
इस लेबल के परिणाम सिर्फ सांस्कृतिक ही नहीं हैं. इनसाइट यूके का कहना है कि जब नकारात्मक घटनाओं की रिपोर्ट व्यापक जातीय संदर्भ में की जाती है, तो दक्षिण एशिया के लेबल से भारतीय समुदाय की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रिटेन की जेलों में हिंदुओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है. जेल में हिंदुओं की हिस्सेदारी केवल 0.4% है. ब्रिटेन में अधिकांश हिंदू भारतीय हैं. इसके विपरीत, मार्च 2024 तक इंग्लैंड और वेल्स की जेलों में 18.1% आबादी मुस्लिम हैं. इनमें से अधिकांश ब्रिटिश मुसलमान दक्षिण एशियाई मूल के हैं और उनमें से एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तानी है.
इस लेबल के साथ लग रहा संगठित यौन शोषण अपराधों का कलंक
समूह-आधारित बाल यौन शोषण के संदर्भ में भी यह अंतर विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है. रॉदरहैम में, पाकिस्तानी पुरुष बाल यौन शोषण के 64% मामलों और ऑपरेशन स्टोववुड के तहत 62% मामलों में दोषी पाये गये. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में कुख्यात ग्रूमिंग गिरोह का अपराध ही लीजिए , जिस पर प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने अब राष्ट्रीय जांच के आदेश दिए हैं.
'दक्षिण एशियाई' लेबल से पाकिस्तानी गिरोह के अपराध भी जुड़े हैं
'एशियाई ग्रूमिंग गिरोह' जैसे शब्द के इस्तेमाल ने न केवल भारतीयों की विशिष्टता को कमजोर किया है, बल्कि भारतीय समुदाय सहित व्यापक एशियाई समुदाय को भी गलत तरीके से कलंकित किया है. कम उम्र की श्वेत लड़कियों के साथ संगठित यौन शोषण के अपराधी मुख्य रूप से पाकिस्तान के मुस्लिम पुरुष हैं. इस अंतर को टेस्ला के प्रमुख एलन मस्क ने भी जनवरी में एक ट्वीट में उजागर किया था.
दूसरे समुदाय की अपराधों के लिए बेवजह बदनाम हो रहे इंडियन
ब्रिटिश हिंदू और भारतीय बताते हैं कि जब 'दक्षिण एशियाई' जैसे लेबल का हमारे लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो उन्हें उन अपराधों के लिए अनुचित रूप से कलंकित किए जाने का खतरा होता है, जिनमें उनकी कोई भूमिका नहीं होती. साथ ही, ब्रिटेन में भारतीयों और हिंदुओं द्वारा की गई सकारात्मक उपलब्धियों को अक्सर महत्व नहीं दिया जाता या व्यापक लेबल के तहत उन्हें छिपा दिया जाता है.
हमारी उपलब्धियों में दूसरों का हो रहा समावेश
इसके परिणामस्वरूप अन्य दक्षिण एशियाई समुदायों से अलग भारतीय और हिंदू पहचान को अधिक सटीक और सूक्ष्म मान्यता देने की मांग बढ़ रही है.ब्रिटिश हिंदुओं और भारतीयों को इस तरह से वर्गीकृत करना उनकी उपलब्धियों और उनके द्वारा यूके में लाए गए योगदान को मान्यता देने से भी इनकार करता है. उदाहरण के लिए, आयुर्वेद, योग और ध्यान - जो मूल रूप से भारतीय हैं. इसे बिना मतलब 'दक्षिण एशियाई' लेबल दिया जा रहा है.
कहां से उपजा 'दक्षिण एशियाई' शब्द
यह शब्द 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान उभरा था. इसका प्रयोग शुरू में औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा उपमहाद्वीप के लोगों के लिए एक लेबल के रूप में किया जाता था. दिलचस्प बात यह है कि कई बार इसे अपमानजनक शब्द के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. खास तौर पर औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा नस्लीय टिप्पणी के रूप में इसका उपयोग होता था. 'दक्षिण एशियाई' इस क्षेत्र के लोगों और ब्रिटेन में रहने वाले उनके वंशजों के लिए अधिक तटस्थ शब्द बन गया. प्रवासी समुदाय में कई लोग 'दक्षिण एशियाई' शब्द के प्रयोग का विरोध करते हैं.
पश्चिमी मीडिया भारतीय समुदाय के लिए इस शब्द का करती है इस्तेमाल
इनसाइट यूके के मनु ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया कि भारतीय प्रवासी 'दक्षिण एशियाई' शब्द के इस्तेमाल को अस्वीकार करते हैं, जिसका इस्तेमाल पश्चिमी शिक्षाविदों और मीडिया द्वारा अक्सर किया जाता है. उनका तर्क है कि सुविधाजनक क्षेत्रीय समूह के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला यह लेबल भारत की अनूठी सांस्कृतिक पहचान को खत्म कर देगा.
रिपोर्ट - प्रियांजलि नारायण