वोटर अधिकार यात्रा ने क्या राहुल और तेजस्वी के बीच दूरी बना दी? इन 5 बातों से समझिये

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए विपक्षी महागठबंधन की वोटर अधिकार यात्रा ने जमकर मीडिया सुर्खियां बटोरीं. इस यात्रा से विपक्ष ने सरकार को वोट चोरी के लिए कठघरे में खड़ा करने में सफल रही . यात्रा की खास बात यह रही कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी यादव एक साथ आकर गठबंधन की एकजुटता को भी उजागर किया. पर 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई और 1 सितंबर को पटना में समाप्त हुई इस यात्रा ने दोनों ही पार्टियों के बीच मतभेदों को भी बढ़ाने का भी काम किया है. यात्रा का मुख्य उद्दैश्य मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं और वोट चोरी के मुद्दे को उठाना था पर इस यात्रा ने महागठबंधन के भीतर नेतृत्व, रणनीति और प्रभुत्व को लेकर तनाव भी सामने लाया. यात्रा के अंतिम दौर में कुछ ऐसी बातें हुईं हैं जिसके चलते राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच दूरी बढ़ने की अटकलों को जन्म दिया है. आइये कुछ पहलुओं की चर्चा करते हैं.

1-मीडिया कवरेज में राहुल और तेजस्‍वी के बीच असमानता

जनअधिकार यात्रा के दौरान जितनी भी मीडिया फुटेज सामने आई हैं उसमें यही दिख रहा है कि राहुल गांधी को डॉमिनेंट थे. तेजस्वी केवल राहुल के पिछलग्गू बन कर रह गए. बिहार में पिछले 20 सालों से कांग्रेस लालू यादव की दया पर निर्भर रही है. पर इस यात्रा में कांग्रेस बी टीम की बजाए बड़े भाई के रोल में दिखाई दे रही थी.कांग्रेस ने ऐसे संकेत भी दिए कि वो बिहार में अब आरजेडी की बी टीम बनकर नहीं रहने वाली है. जाहिर है कि तेजस्वी यादव इसे कब तक बर्दाश्त करेंगे. आखिर 2020 के चुनाव में तेजस्वी ने अपने बल पर ही आरजेडी को बिहार में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सफलता दिलाई थी.

2-यात्रा ने बढ़ा दी कांग्रेस की मोलभाव की ताकत

2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को आरजेडी ने 70 सीटें दी थीं.जिसमें कांग्रेस केवल 19 सीट ही जीत सकी. आरजेडी प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी पर सरकार बनाने से वंचित हो गई. माना यह गया कि अगर आरजेडी ने कांग्रेस को कुछ सीटें दी होतीं तो तेजस्वी बिहार के मुख्यमंत्री बने होते. यात्रा के पहले तक यह उम्मीद थी कि इस बार कांग्रेस को 50 सीट भी मिल जाए तो ज्यादा है. पर वोटर अधिकार यात्रा को मिली सफलता ने कांग्रेस की मोलभाव करने की ताकत को बढ़ा दिया है. जाहिर है कांग्रेस अब कम से कम 90 से 100 सीटें चाहेगी. जाहिर है कि अब तेजस्वी-RJD पर दबाव भी बढ़ सकता है ,जो कांग्रेस से दूरी बढ़ने का कारण बन सकता है.

3-स्थानीय स्तर पर कांग्रेस-आरजेडी कार्यकर्ताओं में कलह

वोटर अधिकार यात्रा को लेकर बीबीसी में प्रकाशित एक लेख की माने तो पूरी यात्रा के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ता हावी रहे. कांग्रेस झंडों से यात्रा पटी होती थी. आरजेडी के इक्का दुक्का ही झंडे नजर आते थे. यही कारण रहा है कि कई स्थानों पर कांग्रेस और आरजेडी कार्यकर्ताओं में मारपीट भी हुई. मोतिहारी, पूर्वी चंपारण में पोस्टर विवाद ने महागठबंधन की स्थानीय स्तर पर कमजोरियों को उजागर किया. 27 अगस्त जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की संयुक्त वोटर अधिकार यात्रा मोतिहारी पहुंचने वाली थी. दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच तनाव स्पष्ट दिखाई दिया.

कांग्रेस जिलाध्यक्ष के सहयोगी ने आरोप लगाया कि RJD समर्थकों ने गांधी चौक पर लगे कांग्रेस के पोस्टर और बैनर फाड़ दिए और उनकी जगह RJD के बैनर लगा दिए.मोतिहारी की मेयर प्रीति कुमारी, उनके पति और RJD नेता देवा गुप्ता समेत चार लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कराई, जिसमें बैनर हटाने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया.

दूसरे पक्ष ने यह दावा किया कि यह घटना 28 अगस्त को यात्रा की तैयारी के दौरान हुई, और उनकी गाड़ी के कैमरे में यह सब रिकॉर्ड हुआ. पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज की और जांच शुरू की है यह विवाद महागठबंधन के लिए एक झटके के रूप में आया, जो मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं को लेकर एकजुटता का प्रदर्शन कर रहा था.

 RJD और कांग्रेस के नेता सतही तौर पर एकता दिखाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय की कमी स्पष्ट थी. कांग्रेस कार्यकर्ता सफीउल्लाह ने कहा कि दोनों दलों के बीच जमीनी स्तर पर तालमेल का अभाव है, जिसने इस घटना को और बढ़ावा दिया. इस घटना ने BJP और NDA को विपक्ष के खिलाफ प्रचार का मौका दिया, जिन्होंने इसे महागठबंधन की अंदरूनी कलह के सबूत के रूप में पेश किया. 

4-राहुल गांधी ने एक बार भी तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं माना 

यात्रा के दौरान बार-बार यह सवाल उठा कि बिहार में महागठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार कौन होगा? राहुल गांधी ने इस सवाल पर चुप्पी साधे रखी, जिसे कई लोग कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा मानते हैं. तेजस्वी यादव ने पहले राहुल को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश किया था, लेकिन कांग्रेस ने तेजस्वी को बिहार में सीएम उम्मीदवार के रूप में स्पष्ट समर्थन नहीं दिया. इससे RJD कार्यकर्ताओं में यह धारणा बनी कि कांग्रेस तेजस्वी को पूरी तरह से नेतृत्व देने से बच रही है, ताकि गैर-यादव OBC और सवर्ण वोटों को नाराज न किया जाए.

दरअसल कांग्रेस को अभी भी उम्मीद है कि सवर्ण और दलित उनके परंपरागत वोटर्स हैं जो देर सवेर उनके पास दुबारा आ जाएंगे. यही कारण है कि राहुल गांधी कभी भी तेजस्वी को मुख्यमंत्री के रूप में जनता के सामने नहीं लाए. जाहिर है कि तेजस्वी को खुद की ब्रैंडिंग करनी पड़ी जिससे दोनों पार्टियों के बीच अविश्वास  की खाई बढ़ रही है. तेजस्वी ने यात्रा के अंतिम चरण में स्वयं कमान संभालकर अपने लिए माहौल बनाने की कोशिश की. उन्होंने सभाओं में डुप्लीकेट मुख्यमंत्री बनाम ओरिजनल मुख्यमंत्री जैसे बयानों से अपनी ब्रैंडिंग की. 

5- मुज़फ्फरपुर में एक RJD विधायक को राहुल के सिक्युरिटी गार्डों ने पीछे धकेला

मुजफ्फरपुर में वोटर अधिकार यात्रा के दौरान हुई एक घटना ने कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बीच महागठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर दिए. 28 अगस्त 2025 को राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की संयुक्त वोटर अधिकार यात्रा मुजफ्फरपुर पहुंची थी. एक RJD विधायक, जिनका नाम सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं हुआ, राहुल गांधी से मिलने आए. हालांकि, राहुल ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया, और सुरक्षा कर्मियों ने विधायक को पीछे धकेल दिया. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसने महागठबंधन की एकता की छवि को नुकसान पहुंचाया और स्थानीय स्तर पर दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच तनाव को उजागर किया. 

वायरल वीडियो में दिखा कि RJD विधायक राहुल से मिलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें रोक दिया, जिसे विधायक और RJD समर्थकों ने अपमानजनक माना. इसने न केवल RJD कार्यकर्ताओं में नाराजगी पैदा की, बल्कि BJP और NDA को यह दावा करने का मौका दिया कि महागठबंधन के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है. सोशल मीडिया पर इस घटना ने व्यापक चर्चा छेड़ दी.तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन सूत्रों के अनुसार, RJD के भीतर इस घटना से नाराजगी थी.

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