प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ही चीन के दो दिन के दौरे पर पहुंचे, चीनी सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली. कई यूजर्स ने मोदी की अमेरिका के ट्रेड प्रेशन के खिलाफ डटकर खड़े होने की तारीफ की, जबकि कुछ ने भारत पर शक जताया और चीन से गहरे सहयोग की मांग की.
चीन के कड़े नियंत्रण वाले सरकारी और सोशल मीडिया से यही दिखता है कि भारत के लिए चीन और अमेरिका के साथ रिश्तों में संतुलन बनाना आसान नहीं है. अमेरिका, नई दिल्ली को अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति का अहम हिस्सा मानता है.
असल में चीन में असली जनता की राय पकड़ना मुश्किल है, क्योंकि वहां 'ग्रेट फायरवॉल' इंटरनेट पर कड़ा सेंसरशिप लागू करता है. इसी वजह से ट्रेंड समझने के लिए इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम ने वीबो और डोयिन (चीन का टिक-टॉक) पर नजर डाली.
मोदी की तारीफ
सोशल मीडिया पर मोदी के इस दौरे को लेकर उत्साह साफ दिखा. एक लोकप्रिय वीबो पोस्ट में लिखा था- 'भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सात साल बाद चीन यात्रा ने बहुत ध्यान खींचा है. चीन-भारत रिश्तों में साफ तौर पर नया मोड़ आया है.'
प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन में रहेंगे, जहां वह तियानजिन में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) समिट में शामिल होंगे.
यूजर्स ने खासतौर पर मोदी के अमेरिका के टैरिफ के खिलाफ रुख की तारीफ की. डोयिन पर एक वीडियो के साथ लिखा गया- 'मोदी का ये कदम इस बार सचमुच बहुत सख्त है', जिसमें दिखाया गया कि कैसे वॉशिंगटन ने भारतीय सामान पर 50% टैरिफ लगाया.
एक और यूजर ने पूछा- '50% टैरिफ के खिलाफ डटे मोदी ने समझौता करने से इनकार कर दिया! क्या भारत भी चीन के मॉडल को अपनाकर अमेरिका को झुकने पर मजबूर कर सकता है?'
खबरें ये भी आईं कि हाल ही में मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप के चार फोन कॉल्स का जवाब नहीं दिया. इससे उनकी छवि और मजबूत हुई. एक वीबो पोस्ट में लिखा गया- 'मोदी ने इस बार असामान्य रूप से कड़ा रुख दिखाया.' डोयिन पर एक और यूजर ने कहा- 'मोदी ने ट्रंप के चार फोन कॉल्स ठुकरा दिए. इस बार अमेरिका ने सच में गलती कर दी है और भारत इस बेइज्जती को बर्दाश्त नहीं करेगा.'
चीनी यूजर्स ने भारत की स्वतंत्र नीतियों की भी तारीफ की, जैसे रूस से सस्ता तेल खरीदना. चीनी स्कॉलर गाओ झिकाई का इंटरव्यू खूब शेयर हुआ, जिसमें उन्होंने कहा- 'भारतीय बेवकूफ नहीं हैं; अमेरिकियों को हमेशा भारत को यह सिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए कि उसे कैसे रहना चाहिए!'
बढ़ी हुई उम्मीदें
लेकिन तारीफ के साथ ही उम्मीदें भी बड़ी रहीं. कई चीनी यूजर्स ने कहा कि मोदी को 3 सितंबर को बीजिंग के तियानआनमेन स्क्वायर में होने वाले उस कार्यक्रम में शामिल होना चाहिए, जिसमें जापान के औपचारिक आत्मसमर्पण के बाद द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के 80 साल पूरे होने पर जश्न मनाया जाएगा.
एक वायरल वीबो पोस्ट में कहा गया- 'क्या आपने गौर किया कि SCO तियानजिन समिट में हिस्सा लेने वाले लगभग सभी नेता इस एंटी-जापानी विक्ट्री कमेमोरेशन में जाएंगे, लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नजर नहीं आ रहे. इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि भारत सचमुच चीन से दोस्ती नहीं करना चाहता.'
प्रसिद्ध चीनी पत्रकार हु शीजिन ने आलोचना करते हुए कहा कि अगर मोदी बीजिंग के मिलिट्री परेड के लिए रुकते, तो शायद ये 'बहुत बड़ा इशारा' होता.
कुछ यूजर्स ने भारत पर 'दोनों तरफ बैठने' यानी निष्पक्ष रहने का आरोप लगाया. चीन की इस बात से भी नाराजगी दिखी कि मोदी चीन आने से ठीक पहले जापान दौरे पर गए, और भारत लगातार चीन पर औद्योगिक निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहा है.
चीनी अंतरराष्ट्रीय मामलों के स्कॉलर प्रोफेसर जिन कैनरोंग ने कहा कि आने वाले समय में भारत-चीन रिश्तों की दिशा दो बातों पर निर्भर करेगी- पहला, क्या मोदी 3 सितंबर की सैन्य परेड में शामिल होंगे या नहीं. दूसरा, क्या भारत बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विरोध छोड़ता है या नहीं. भारत इसका विरोध करता है, क्योंकि यह PoK से होकर गुजरता है.
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