सस्ता तेल, महंगा इलाज: ट्रांस फैट से वजन नहीं, जिंदगी भी खतरे में! जानें कैसे बढ़ रहा सेहत को खतरा

6 hours ago 1

Facts about trans fats: आजकल लोग अपनी डाइट और खान-पान को लेकर काफी सतर्क हो गए हैं. लोग फैट वाली चीजों से बच रहे हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि फैट खाने से शरीर में चर्बी बढ़ती है लेकिन कुछ मामलों में ऐसा नहीं है. शरीर के लिए फैट खाना भी काफी जरूरी है क्योंकि ये शरीर में एनर्जी का सोर्स होता है और A, D, E और K जैसे विटामिनों के अवशोषण के लिए भी आवश्यक है. इसके लिए आपको हेल्दी फैट खाना होता है लेकिन आज के समय में सभी अनहेल्दी फैट का अधिक मात्रा में सेवन कर रहे हैं. इन अनहेल्दी फैट में से एक होता है ट्रांस फैट (Trans Fat) जो सबसे खतरनाक फैट माना जाता है.

हॉवर्ड हेल्थ के मुताबिक, ट्रांस फैट सबसे खराब फैट होता है जो इंडस्ट्री में यह हाइड्रोजनीकरण नामक प्रोसेस से बनता है जिसका उपयोग हेल्दी तेलों को ठोस बनाने और उन्हें खराब होने से बचाने के लिए किया जाता है. 

ट्रांस फैट के कारण शरीर को काफी समस्याएं होती हैं इसलिए एक्सपर्ट भी इसका सेवन न करने की सलाह देते हैं. यदि किसी को ट्रांस फैट के कारण स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं तो इलाज में हजारों-लाखों रुपये खर्च हो सकते हैं. कई लोग ट्रांस फैट के बारे में नहीं जानते तो आइए आज हम आपको ट्रांस फैट के बारे में वो सब बताते हैं जो आपको जानना काफी जरूरी है ताकि आप उसका सेवन बंद कर सकें.

भारत, दुनिया और ट्रांस फैट

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्व के आंकड़ों के अनुसार, 2005-06 और 2019-21 के बीच पुरुषों में मोटापा लगभग 15% से बढ़कर 24% और महिलाओं में 12% से बढ़कर लगभग 23% हो गया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, जुलाई 2023 में सेचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट के सेवन की संशोधित गाइडलाइन जारी की गई थी जिसका उद्देश्य वयस्कों और बच्चों में अस्वास्थ्यकर वजन बढ़ने की रोकथाम करना, डाइट से संबंधित गैर-संचारी रोगों जैसे टाइप 2 डायबिटीज, हार्ट डिसीज और कुछ प्रकार के कैंसर के जोखिम को कम करना था. WHO ने इस बात पर जोर दिया था कि वयस्कों को कुल फैट का सेवन कुल कैलोरीज के सेवन से 30 प्रतिशत या उससे कम रखना चाहिए. 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की अगस्त 2023 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल लगभग 5.40 लाख मौतें औद्योगिक रूप से बनाए गए ट्रांस-फैट के सेवन के कारण होती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में कोरोनरी हृदय रोग से होने वाली 4.6% मौतें ट्रांस फैटी एसिड के सेवन (कुल कैलोरीज के सेवन का 0.5% से अधिक) से संबंधित हो सकती हैं. हाई ट्रांस फैट का सेवन किसी भी कारण से मृत्यु के जोखिम को 34 प्रतिशत और कोरोनरी हृदय रोग से होने वाली मौतों को 28 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है.

फूड सेफ्टी एंड स्टेंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने भारत में ट्रांस फैट की खपत को धीरे-धीरे कम करने के लिए WHO द्वारा बताए हुए नियमों को लागू किया था जिससे ट्रांस फैट के उपयोग में कमी देखी गई है. इस कदम से हर साल हज़ारों दिल के दौरे और मौतें टल रही हैं. लेकिन दुनिया भर के कई देशों ने अभी तक ट्रांस फैट पर लगाम लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है.

एफडीए ने 2015 से अमेरिका में कंपनियों को खाद्य पदार्थों में हाइड्रोजन वाला तेल मिलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके साथ ही न्यूट्रिशन लेवल पर ट्रांस फैट को लिखना अनिवार्य कर दिया है. हालांकि, यदि किसी उत्पाद में प्रति सर्विंग 0.5 ग्राम या उससे कम ट्रांस फैट है तो कंपनियां इसे 0 ग्राम ट्रांस फैट लिख सकती हैं. कई अन्य देशों ने ट्रांस फैट पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन सभी देशों ने नहीं.

कुछ कंपनियां ट्रांस फैट का इस्तेमाल इसलिए करती हैं क्योंकि प्रोसेस्ड चीजें किराने की दुकान या बेकरी पर लंबे समय तक रखी रहती हैं और खराब नहीं होतीं. इसके अलावा ट्रांस फैट बनाना सस्ता होता है और ये कुछ खाद्य पदार्थों में स्वाद और बनावट बढ़ा देते हैं.

तो आइए अब जानते हैं ट्रांसफैट क्या है और इससे सेवन से क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं. 

ट्रांस फैट क्या है?

मुंबई के फोर्टिस हॉस्पिटल में बैरिएट्रिक और मिनिमल इनवेसिव सर्जरी के कंसल्टेंट, डॉ. ऋषिकेश सालगांवकर ने Aajtak.in को बताया, 'ट्रांस फैट को ट्रांस-फैटी एसिड भी कहा जाता है. ट्रांस फैट 2 तरीके के होते हैं. पहला नेचुरल और दूसरा इंडस्ट्रियल. कुछ नॉनवेज और डेयरी प्रोडक्ट में थोड़ी मात्रा में नेचुरल ट्रांस फैट होता है और इसे भी खतरनाक माना जाता है. यह ट्रांस फैट कुछ जानवरों की आंत में बनता है और उनसे मिलने वाले उत्पादों में भी मौजूद होता है.'

'प्रोसेस्ड फूड और वेजिटेबल ऑयल में इंडस्ट्रियल ट्रांस फैट पाया जाता है. अधिकतर ट्रांस फैट एक ऐसी प्रोसेस से बनते हैं जिसमें वेजिटेबल ऑयल में हाइड्रोजन मिलाया जाता है और वो कमरे के तापमान पर ठोस हो जाते हैं.

'आसान शब्दों में समझें तो इंडस्ट्रियल ट्रांस फैट वेजिटेबल ऑयल में हाइड्रोजन मिलाकर उन्हें अधिक ठोस बनाता है. प्रोसेस्ड ऑयल, वेजिटेबल ऑयल (आंशिक रूप से हाइड्रोजन मिले हुए), मार्जरीन, बेकरी, शॉर्टनिंग, वेजिटेबल फैट स्प्रेड और मिक्स्ड फैट स्प्रेड में ट्रांस फैट होता है.'

'हाइड्रोजन वाले तेल को बनाना महंगा नहीं होता और इसकी शेल्फ लाइफ भी लंबी होती है. रेस्टोरेंट, रेहड़ी और अन्य लोग जब वेजिटेबल ऑयल का यूज करते हैं और जैसे ही उसे गर्म किया जाता है तो वह ट्रांस फैट में बदलने लगता है.'

'ट्रांस फैट खाने के लिए सबसे खराब प्रकार का फैट है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह 'खराब' कोलेस्ट्रॉल बढ़ाता है और 'अच्छे' कोलेस्ट्रॉल को कम करता है. ट्रांस फैट से चीजें खाने से दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.'

ट्रांस फैट किन चीजों में होता है?

हम जो रोज-मर्रा में भोजन, स्नैक्स, मीठी या अन्य चीजें खाते हैं, उनमें आंशिक रूप से हाइड्रोजन वाले वेजिटेबल ऑयल से प्राप्त ट्रांस फैट हो सकता है. बेकरी प्रोडक्ट, बिस्किट, रस्क, केक. तली हुई चीजें जैसे भटूरा, पूरी, पकौड़ा, भुजिया, तला हुआ नमकीन आदि. जब एक ही खाना पकाने वाले तेल का बार-बार तलने के लिए उपयोग किया जाता है तो भी ट्रांस फैट बनता है. इनके अलावा और भी चीजें हैं जिनमें ट्रांस फैट पाया जाता है, जैसे:

  • केक, कुकीज़ और पाई
  • कैमिकल मिली हुई चीजें
  • माइक्रोवेव पॉपकॉर्न.
  • डीप फ्राइड चीजें
  • वेजिटेबल ऑयल में तली हुई चीजें
  • फ्रोजन पिज्जा
  • बिस्किट
  • क्रीम रोल
  • तले हुए खाद्य पदार्थ
  • फ्रेंच फ्राइज 
  • डोनट्स
  • फ्राइड चिकन
  • नॉनडेयरी कॉफी क्रीमर
  • मार्जरीन और अन्य स्प्रेड आदि.

ट्रांस फैट के नुकसान क्या हैं?

डॉ. ऋषिकेश ने बताया, 'ट्रांस फैट दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा बढ़ाता है. साथ ही यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर पर भी बुरा असर डालता है. हमारे शरीर में 2 तरह का कोलेस्ट्रॉल होता है. पहला LDL और दूसरा HDL. एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को 'खराब' कोलेस्ट्रॉल कहा जाता है. यह धमनियों की दीवारों में जमा होकर उन्हें सख्त और संकरा बना सकता है जिससे रक्त के थक्के जमने या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. एचडीएल कोलेस्ट्रॉल को 'अच्छा' कोलेस्ट्रॉल कहा जाता है. यह अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल को वापिस लिवर में ले जाता है और लिवर कोलेस्ट्रॉल को तोड़कर शरीर से बाहर निकाल देता है. ट्रांस फैट एलडीएल कोलेस्ट्रॉल बढ़ाता है और एचडीएल कोलेस्ट्रॉल कम करता है. इससे दिल का दौरा या स्ट्रोक होने की संभावना बढ़ जाती है.'

'इसके अलावा ट्रांस फैट से डायबिटीज का खतरा बढ़ता है, गर्भावस्था के दौरान ट्रांस वसा का सेवन कम वजन वाले शिशुओं के जन्म से जुड़ा हो सकता है, ट्रांस फैट के सेवन से प्रोस्टेट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा भी बढ़ सकता है हालांकि इसकी पुष्टि के लिए अभी और रिसर्च की आवश्यकता है.'

ट्रांस फैट खाने से वज़न बढ़ सकता है. कुछ एनिमल रिसर्च बताती हैं कि ट्रांस फैट खाने वाले जानवरों का वजन बढ़ता है, खासकर पेट की चर्बी, विशेषज्ञों को पूरी सटीक जानकारी नहीं है कि ऐसा क्यों होता है लेकिन हो सकता है कि इसका संबंध पेट में जमा होने वाली चर्बी से हो.

ट्रांस फैट से कैसे बचें?

डॉ. ऋषिकेश ने कहा, 'जितना हो सके ट्रांस फैट वाले खाद्य पदार्थों का सेवन सीमित करने की कोशिश करें. ट्रांस फैट हेल्दी डाइट का हिस्सा नहीं होते. कई बार ट्रांस फैट रहित खाद्य पदार्थ हेल्दी नहीं होते क्योंकि फूड्स बनाने वाली कंपनियां ऐसी अन्य सामग्री का उपयोग करती हैं जो आपके लिए अच्छे नहीं है. इनमें से कुछ सामग्रियों में अधिक सेचुरेटेड फैट होता है जो कोलेस्ट्रॉल बढ़ा सकता है. उदाहरण के लिए नारियल, पाम की गुठली और पाम ऑयल.'

आपका अधिकांश फैट मोनो-अनसेचुरेटेड फैट होना चाहिए जो एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है. ये मुख्य रूप से ऑलिव और मूंगफली के तेल में पाए जाते हैं. अन्य हेल्दी फैट के विकल्पों में ओमेगा-3 फैटी एसिड शामिल हैं जो आपको मछली, ड्राई फ्रूट्स  और कुछ अन्य खाद्य स्रोतों में मिल सकते हैं. जैसे सोयाबीन का तेल, सूरजमुखी का तेल, कुसुम का तेल, कैनोला तेल, एवोकाडो, बादाम, अखरोट और अन्य ड्राई फ्रूट्स और फैट वाली मछली आदि.

ट्रांस फैट की कितनी मात्रा सुरक्षित है?

Mayoclinic के मुताबिक, जितना हो सके अपनी रोजाना कि कुल कैलोरीज का लगभग 20 से 35 प्रतिशत से अधिक फैट से न लें. उसमें से सेचुरेटेड फैट कुल कैलोरी का 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि रोजना कि कुल कैलोरी का 1 प्रतिशत से कम या 2000 कैलोरी वाली डाइट लेने वालों को लगभग 2.2 ग्राम से अधिक ट्रांस फैट नहीं लेना चाहिए. यह आंकड़ा प्रोसेस्ड ट्रांस फैट के लिए है ना कि नेचुरल ट्रांस फैट पर.

ट्रांस फैट की मात्रा कम कैसे कर सकते हैं?

डॉ. ऋषिकेश, 'इंडस्ट्रियल रूप से ट्रांस फैट के हानिकारक प्रभावों से नागरिकों को बचाने की प्राथमिक जिम्मेदारी सरकारों की है ताकि वह समय-समय पर टीम बनाकर फैक्ट्रीज ऑडिट कराएं और ट्रांस फैट को लेकर खास कदम उठाए.' 

'खाद्य पदार्थों में PHO की जगह पॉली-अनसेचुरेटेड फैटी एसिड (PUFA) से भरपूर तेल और उसके बाद मोनो-अन-सेचुरेटेड फैटी एसिड (MUFA) से भरपूर तेल इस्तेमाल किए जा सकते हैं. PUFA से भरपूर तेलों में कुसुम, मक्का, सूरजमुखी, सोयाबीन, फैट वाली मछलियां, अखरोट और बीज शामिल हैं; MUFA से भरपूर तेलों में कैनोला, जैतून, मूंगफली, और मेवे और एवोकाडो से बने तेल शामिल हैं.'

खाने की चीजों में ट्रांस फैट को कैसे पहचानें?

ट्रांस फैट की मात्रा देखने के लिए आपको न्यूट्रिशन लेवल देखना होगा. यदि लेबल पर ट्रांस फैट नहीं लिखा है तो आप उसमें Partially Hydrogenated oil या Shortening लिखा हुआ देख सकते हैं जो कि ट्रांस फैट की जगह लिखा होता है. अगर ये शब्द किसी भी फूड प्रोडक्ट के लेबल में पहली तीन सामग्री में शामिल हैं तो इसका मतलब है कि उसमें कुल फैट की मात्रा काफी अधिक है और उम्मीद है कि उसमें ट्रांस फैट भी काफी अधिक मात्रा में हो.

लेकिन यदि न्यूट्रिशन लेबल पर ये तीनों चीजों अंकित नहीं हैं तो आपको थोड़ा गणित का इस्तेमाल करना होगा. सबसे पहले आप प्रोडक्ट पर दिए सेचुरेटेड, मोनो-अनसेचुरेटेड और पॉली-अनसेचुरेटेड मात्रा को जोड़ें. इन तीनों को जोड़ने पर यदि आंकड़ा कुल फैट से अधिक होता है तो इसका मतलब है कि बाकी बची हुई मात्रा ट्रांस फैट की है.

उदाहरण के लिए प्रोडक्ट में कुल फैट 32 ग्राम है और वहीं सेचुरेटेड, मोनो-अनसेचुरेटेड और पॉली-अन-सेचुरेटेड की मात्रा 28 ग्राम है. अब यदि कुल फैट 32 ग्राम में से तीनों फैट की मात्रा 28 ग्राम घटाते हैं तो 4 ग्राम बचता है. तो इसका मतलब है कि जो बचा हुआ 4 ग्राम है वो ट्रांस फैट है.

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