कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना को एक 'सुनियोजित दस्साहस' करार दिया है. उन्होंने कहा है कि ये प्रोजेक्ट द्वीप के स्वदेशी आदिवासी समुदायों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा करता है और इसे असंवेदनशील तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है. सोनिया गांधी ने कहा कि इस प्रोजेक्ट को लागू करने में "सभी कानूनी और विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मजाक" उड़ाया जा रहा है.
सोनिया गांधी ने इस प्रोजेक्ट पर नाराजगी जताते हुए अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में प्रकाशित एक लेख में कहा है कि जब शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों का अस्तित्व ही दांव पर हो तो सामूहिक चेतना चुप नहीं रह सकती और न ही उसे चुप रहना चाहिए.
'निकोबार में एक पारिस्थितिक आपदा का निर्माण' नाम से प्रकाशित एक लेख में सोनिया ने लिखा है कि, "भविष्य की पीढ़ियों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता एक अत्यंत विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र के इतने बड़े पैमाने पर विनाश की अनुमति नहीं दे सकती. हमें न्याय के इस उपहास और हमारे राष्ट्रीय मूल्यों के साथ इस विश्वासघात के विरुद्ध अपनी आवाज उठानी चाहिए."
कांग्रेस नेता की यह टिप्पणी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम को लिखे गए पत्र के कुछ दिनों बाद आई है. राहुल गांधी ने ग्रेट निकोबार परियोजना को मंजूरी देने में वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के कथित उल्लंघन पर गहरी चिंता व्यक्त की थी और सरकार से कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने का आग्रह किया था.
कांग्रेस नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश भी ग्रेट निकोबार परियोजना पर अपनी चिंताओं को उजागर करते रहे हैं और दावा करते रहे हैं कि यह पारिस्थितिकी और क्षेत्र के वनवासियों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए हानिकारक है.
अपने लेख में सोनिया गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधा और कहा कि पिछले 11 वर्षों में इस सरकार के कार्यकाल के दौरान "अधूरी और बिना सोचे-समझे नीति-निर्माण" की कोई कमी नहीं रही है.
सोनिया ने कहा, "योजनाबद्ध कुप्रयासों की इस कड़ी में नवीनतम है ग्रेट निकोबार मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना. 72,000 करोड़ रुपये का यह पूरी तरह से गलत खर्च द्वीप के आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है, इससे दुनिया के सबसे अनोखे वनस्पतियों और जीवों के पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक के लिए खतरा पैदा करता है और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है."
सोनिया गांधी ने आगे लिखा है, "फिर भी इसे असंवेदनशील तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है, जिससे सभी कानूनी और विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मजाक उड़ाया जा रहा है."
उन्होंने बताया कि ग्रेट निकोबार द्वीप दो मूल समुदायों निकोबारी जनजाति और शोम्पेन जनजाति का घर है, जो एक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह हैं.
अपने लेख में सोनिया कहती हैं कि, "निकोबारी आदिवासियों के पैतृक गांव इस परियोजना के प्रस्तावित भू-क्षेत्र में आते हैं. 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के दौरान निकोबारी लोगों को अपने गांव छोड़ने पड़े थे. यह परियोजना अब इस समुदाय को स्थायी रूप से विस्थापित कर देगी, जिससे उनके अपने पैतृक गांवों में लौटने का सपना टूट जाएगा."
सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि इस पूरी प्रक्रिया में आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए स्थापित संवैधानिक और वैधानिक निकायों को दरकिनार किया गया है.
"संविधान के अनुच्छेद 338-ए के अनुसार सरकार को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से परामर्श करना चाहिए था. वह ऐसा करने में विफल रही है."
सोनिया ने कहा, "सरकार को ग्रेट निकोबार और लिटिल निकोबार द्वीप समूह की जनजातीय परिषद से परामर्श करना चाहिए था. इसके बजाय परिषद के अध्यक्ष की इस अपील की अनदेखी की गई है कि निकोबारी आदिवासियों को उनके पैतृक गांवों में लौटने की अनुमति दी जाए."
सोनिया गांधी के लेख को एक्स पर साझा करते हुए राहुल गांधी ने भी केंद्र की तीखी आलोचना की. सोनिया ने कहा, "इस लेख के माध्यम से कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी इस परियोजना द्वारा निकोबार के लोगों और उसके नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र पर किए गए अन्याय को उजागर करती हैं."
बता दें कि 'ग्रेट निकोबार का समग्र विकास' नामक इस परियोजना में एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा एक टाउनशिप और 160 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले एक बिजली संयंत्र का निर्माण शामिल है.
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