UP: सिर्फ अर्पित ही नहीं, अंकुर और अंकित भी एक साथ कर रहे थे 6-6 जगह नौकरी

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यूपी के स्वास्थ्य विभाग में भर्ती घोटालों की कहानियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं. पहले आगरा के अर्पित सिंह का मामला सामने आया, जिनके नाम पर एक साथ छह जिलों में नौकरी के खुलासे से सब हैरान हो गए थे. और अब खुलासा हुआ है कि सिर्फ अर्पित ही नहीं, बल्कि मुजफ्फरनगर का अंकुर और हरदोई का अंकित सिंह भी अलग-अलग जिलों में एक साथ कई जगह नौकरी कर रहे थे. जाहिर है, सवाल उठ रहा है कि आखिर इतना बड़ा खेल वर्षों तक विभाग की नजर से कैसे बचा रहा ?

अंकुर का दोहरा खेल

लैब टेक्नीशियन भर्ती 2016 की मेरिट सूची में 166वें नंबर पर दर्ज अंकुर पुत्र नीतू मिश्रा मैनपुरी में तैनात मिला. कागजों पर सब ठीक लगता है, लेकिन जांच ने राज खोल दिया. दरअसल, इसी अंकुर को मुजफ्फरनगर की शाहपुर सीएससी में भी नौकरी करते पाया गया. यहां तक कि वह 8 सितंबर 2025 तक बाकायदा नौकरी करता रहा और वेतन भी उठाता रहा. लेकिन जैसे ही मामला खुला, मुजफ्फरनगर वाला अंकुर रहस्यमयी तरीके से फरार हो गया.

अंकित सिंह का 6 जिलों में साम्राज्य

अंकुर की तरह ही हरदोई का अंकित सिंह भी फर्जीवाड़े का बड़ा चेहरा बनकर उभरा. मेरिट सूची में 127वें नंबर पर आए अंकित की 1 जून 2016 को हरदोई की मल्लावा सीएससी में तैनाती हुई थी. फिलहाल उसकी पोस्टिंग हरपालपुर सीएचसी में बताई जाती है. लेकिन जांच ने चौंकाने वाला सच सामने रखा. दरअसल, अंकित सिंह नाम का यह युवक पांच और जिलों में भी लैब टेक्नीशियन बनकर नौकरी कर रहा था.

लखीमपुर: निघासन सीएससी में नियुक्ति मिली, जुलाई 2024 तक तनख्वाह उठाई और अचानक गायब हो गया.

गोंडा: काजीदेवरा सीएससी में 2018 तक ड्यूटी पर रहा, फिर रहस्यमयी तरीके से लापता.

बदायूं: दातागंज सीएचसी में तैनाती.

आजमगढ़: पवई सीएचसी में नाम जुड़ा.

ललितपुर: तालबेहट सीएचसी में भी अंकित सिंह नौकरी करते हुए मिला.

यानी एक ही नाम का शख्स अलग-अलग जिलों में पोस्ट होकर वेतन लेता रहा और विभाग सोता रहा.

अर्पित सिंह का खुलासा बना सुराग

यह मामला तब खुला जब आगरा निवासी अर्पित सिंह के नाम पर छह जिलों में नौकरी करने का फर्जीवाड़ा पकड़ा गया. जांच में सामने आया कि अलग-अलग जिलों में दर्ज मुकदमों और शिकायतों में कथित अर्पित सिंह के नाम और आधार नंबर अलग-अलग मिले हैं, लेकिन पिता का नाम और पता हर जगह लगभग एक जैसा दर्ज है.

अमरोहा: कथित अर्पित सिंह, आधार संख्या 339807337433, निवासी नगला खुबानी, कुरावली, मैनपुरी.

शामली: कथित अर्पित सिंह, आधार संख्या अप्रमाणित, निवासी आगरा.

बलरामपुर: कथित अर्पित सिंह, आधार संख्या 525449162718, निवासी प्रतापनगर, शाहगंज, आगरा.

फर्रुखाबाद: कथित अर्पित सिंह, आधार संख्या 500807799459, निवासी प्रतापनगर, आगरा.

रामपुर: कथित अर्पित सिंह, आधार संख्या 8970277715487, निवासी प्रतापनगर, शाहगंज, आगरा.

बांदा: कथित अर्पित सिंह, आधार संख्या 496822158342, निवासी प्रतापनगर, शाहगंज, आगरा.

हाथरस (मुरसान सीएचसी): यहां वास्तविक अर्पित सिंह तैनात हैं.

विभाग में हड़कंप, लेकिन जिम्मेदारी तय कौन करेगा?

अब सवाल यह उठता है कि एक ही नाम पर अलग-अलग जिलों में नियुक्ति आखिर कैसे होती रही? भर्ती प्रक्रिया से लेकर वेतन भुगतान तक, हर स्तर पर इतनी बड़ी चूक या कहें मिलीभगत कैसे संभव है? स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे अब मामले की गहराई से जांच कर रहे हैं. लेकिन हकीकत यह है कि 2016 से लेकर 2025 तक करीब नौ साल तक यह खेल चलता रहा और किसी को भनक तक नहीं लगी.

करोड़ों का फर्जी खेल

आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं. एक एक्स-रे या लैब टेक्नीशियन को औसतन 50 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है. यानी एक साल में 6 लाख रुपये. नौ साल में यह रकम 54 लाख रुपये हो जाती है.

अब अगर वही व्यक्ति एक साथ छह अलग-अलग जिलों से वेतन उठा रहा हो, तो कुल रकम पहुंचती है 3 करोड़ 24 लाख रुपये तक. सोचिए, यह सिर्फ एक नाम का हिसाब है. अगर अंकुर और अंकित को भी जोड़ लिया जाए तो आंकड़ा और भी चौंकाने वाला होगा. यानी सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये की चपत लगी और विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा.

अब क्या होगा?

मामले ने पूरे स्वास्थ्य विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है. विपक्ष सवाल उठा रहा है कि आखिर इस फर्जीवाड़े की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या सिर्फ नामजद अभ्यर्थियों को पकड़ना काफी है या फिर उन अधिकारियों पर भी गाज गिरेगी जिन्होंने आंख मूंदकर नियुक्तियां दीं और वर्षों तक वेतन जारी किया? लोगों का कहना है कि अगर आधार सत्यापन सही ढंग से हुआ होता तो ये फर्जीवाड़ा संभव नहीं था. विभागीय मिलीभगत के बिना कोई अभ्यर्थी 6-6 जगह नौकरी नहीं कर सकता. करोड़ों की चोरी में कई बड़े अफसर भी शामिल हो सकते हैं.

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