अब तक सिर्फ बड़े कुत्तों के किडनी रोग का इलाज ही देश में हो पाता था. छोटे नस्ल वाले कुत्तों के लिए डायलिसिस जैसी कोई सुविधा नहीं थी. ऐसे में कुत्तों की बढ़ती किडनी बीमारियों को देखते हुए लुधियाना स्थित गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (गडवासु) अपनी डायलिसिस यूनिट को अपग्रेड करने जा रही है.
किसान तक की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक गडवासु में सिर्फ 15 किलो से ज्यादा वजन वाले कुत्तों का ही इलाज संभव था, लेकिन जल्द ही टॉय ब्रीड जैसे छोटे पपी की भी डायलिसिस की जा सकेगी.
यहां शुरू हो रही सुविधा
इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने यूनिवर्सिटी को 41 लाख रुपये की मदद दी है.गडवासु की ओपीडी में रोजाना करीब छह से आठ कुत्ते किडनी की समस्या लेकर पहुंचते हैं. कुछ शुरुआती स्टेज पर होते हैं तो कुछ गंभीर हालत में.
पहले सीमित थी मशीन की क्षमता
मौजूदा मशीन की क्षमता सीमित होने के कारण फिलहाल सिर्फ गंभीर मरीजों को ही डायलिसिस दी जा रही है. अब इस अपग्रेडेशन से टॉय ब्रीड के छोटे कुत्तों की भी डायलिसिस हो पाएगी.
डॉ. एसएस रंधावा के अनुसार, वर्तमान मशीन से केवल 15 किलो से ऊपर के कुत्तों का ही इलाज संभव था. लेकिन अपग्रेड के बाद छोटे और कम वजन वाले पपी भी इस सुविधा का लाभ ले पाएंगे.
गलत खानपान की वजह से कुत्तों की किडनी हो जाती है फेल
डॉ. रंधावा ने बताया कि कुत्तों में किडनी फेल होने की एक बड़ी वजह गलत खानपान है. लोग अक्सर उन्हें वही खाना खिला देते हैं जो खुद खाते हैं, जबकि कुत्तों की डाइट इंसानों से बिल्कुल अलग होनी चाहिए.
देश में हैं सिर्फ दो सरकारी डॉग डायलिसिस यूनिट
गलत खानपान और बीमारियों जैसे टिक डिजीज व हाई ब्लड प्रेशर भी किडनी फेलियर की वजह बन रहे हैं.फिलहाल देश में केवल दो जगह सरकारी रेट पर डॉग डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध है—लुधियाना का गडवासु और तमिलनाडु का तनुवास यूनिवर्सिटी. यहां उत्तर भारत के कई राज्यों से कुत्तों का इलाज कराने लोग आते हैं. जल्द ही हिमाचल प्रदेश में भी ऐसी यूनिट शुरू होने की संभावना है.
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