आखिर क्यों इस बार तेजी से पिघल रहे हैं बाबा बर्फानी? लोगों ने बताया आंखों देखा हाल

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Amarnath Shivling 2025: कड़ी सुरक्षा के बीच 3 जुलाई से अमरनाथ यात्रा की शुरुआत हो चुकी है. आज तक संवाददाता जितेंद्र बहादुर सिंह ने भी पहले जत्थे के साथ पवित्र अमरनाथ गुफा के दर्शन किए. हालांकि इस बार उनका एक्सपीरियंस बीते सालों की अपेक्षा में काफी अलग था. साल 2018 और 2022 में की गई यात्रा में तब से अब में काफी परिवर्तन देखने को मिला.

साल 2018 में जब पहली बार आजतक की टीम पवित्र अमरनाथ गुफा पहुंची थी, तब बाबा बर्फानी का शिवलिंग काफी ऊंचा था. लेकिन इस बार जब हम पहुंचे तो मात्र डेढ़ से दो फीट ही बाबा बर्फानी शिवलिंग के दर्शन हुए. बाबा बर्फानी कुछ ही दिनों में धीरे-धीरे अंतर्ध्यान होने लगे हैं. कई जानकार यह बताते हैं कि जिस तरीके से ग्लोबल वॉर्मिंग और श्रीनगर जम्मू कश्मीर में गर्मी का प्रकोप बढ़ा है, प्राकृतिक शिवलिंग पिघल रहा है.

आजतक के कैमरे में भी बालटाल से अमरनाथ गुफा के बीच कुछ ऐसी ही तस्वीरें दिखाई दीं. पूरे रास्ते खच्चर, पालकी और पैदल चलने वालों की धूल उड़ रही थी. जो ग्लेशियर भारी-भरकम होते थे, वह अब तेजी से पिघल रहे हैं. यह दृश्य तस्वीरों में भी कैद हुआ.
 
जम्मू-कश्मीर और खासतौर से श्रीनगर में बहुत गर्मी थी. इसका असर आस-पास के इलाकों पर भी दिखाई दे रहा था. इस दौरान आजतक की टीम ने कई लोगों से बातचीत की, जो लोग पिछले कईं वर्षों से लगातार अमरनाथ गुफा की यात्रा कर रहे थे.

नाराज होने लगे हैं भोलेनाथ...
पटना के रहने वाले संजीव सौरभ ने बताया कि वो अपने ईश्वर को देखकर व्याकुल हो गए. वो पिछले 15 साल से अमरनाथ यात्रा कर रहे हैं. इस यात्रा की प्रेरणा उन्हें किसी राजनीतिक या सामाजिक घटनाक्रम के कारण नहीं हुई. उन्होंने कहा कि मैं कैलाश मानसरोवर नहीं जा सकता, इसलिए अमरनाथ यात्रा की इच्छा मन में जागी. शुरुआती सालों में शासकीय व्यवस्था खानापूर्ति जैसी रहती थी. लेकिन बाबा का दरबार उस समय भी चकाचक रहता था.

12 से 15 फुट ऊंचा बाबा का बर्फ का विग्रह एक अलौकिक आकर्षण और आंतरिक भक्ति भाव पैदा करता था. रास्ते का कष्ट बाबा अपने उज्जवल स्वरूप में दर्शन देकर हर लेते थे. 'नमः पार्वती पतये हर हर महादेव' की गूंज अपने ईश्वर से क्षण भर के लिए ही सही एकात्म कर देती थी. आनंद की व्याख्या नहीं की जाती, आनंद अनुभव का विषय है.

बीते कुछ सालों में यहां यात्रियों के लिए व्यवस्था काफी सुगम की गई है. व्यवस्थापक जगह-जगह पर सहयोग के लिए तत्पर रहते हैं. भक्तों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है. कर्पूरगौरं स्वरूप में अपने भगवान का दर्शन करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ आने लगी. चारों तरफ आनंद ही आनंद. लेकिन अब लगता है कि भोलेनाथ नाराज होने लगे.

उनका बर्फ से स्वनिर्मित विग्रह का आकार लगातार छोटा होने लगा. इस बार जब दर्शन के लिए दरबार में प्रवेश किया तो भगवान भोलेनाथ की अनुभूति तो हुई, लेकिन दर्शन के लिए आंखें तरस गईं. लोग कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है. लेकिन जो असर अनुमान से परे है, उसकी नाराजगी ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से नहीं, बल्कि मनुष्य के आचरण में गिरावट की वजह से हुई है. मानवीय आचरण की वजह से ही संभवतः ग्लोबल वॉर्मिंग का संकट पैदा हुआ है. ऐसे में मैं क्या करता. भाव को रोक नहीं पाया और आंसुओं से ही भोलेनाथ का अभिषेक करके लौट आया. हो सकता है कि यह ग्लोबल वार्मिंग का ही असर हो. वरना जिस दरबार में स्वेटर, जैकेट से भी शरीर गर्म नहीं हो पाता था, उसी दरबार में साधारण शर्ट पहनकर प्रवेश किया. ऐसा महसूस हो रहा है कि महादेव अपने तीसरे नेत्र की ज्योति से सृष्टि पर प्रकोप करने वाले हैं. लोगों को समय रहते हुए अपने आचरण पर नियंत्रण करना चाहिए.

तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर

दिल्ली के रहने वाले विशाल जैन एक कपड़ा व्यापारी और प्रॉपर्टी का काम भी कर रहे हैं. बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए हर साल जाते हैं. उन्होंने बताया कि इस बार की यात्रा में उन्हें काफी फर्क नजर आया. ऐसा लग रहा था कि पहले जो ग्लेशियर बर्फ के होते थे और जो ठंड महसूस होती थी, वो ग्लेशियर अब चारों तरफ से पिघल रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि रास्ते पर पहले से बहुत ज्यादा धूल उड़ रही थी. बाबा बर्फानी के दर्शन के समय जहां बहुत ठंड महसूस होती है, वहां एक पतला ट्रैक सूट पहनकर दर्शन कर लिए. लेकिन इस बार धूल की परत बहुत बुरी तरह चढ़ गई थी और पूरे चेहरे पर धूल जम गई थी. चारों तरफ की जो तस्वीर थी वह बहुत ज्यादा भयभीत करने वाली थी. 

जो बाबा बर्फानी पहले 8 से 10 फीट के देखे थे, वो अब लगभग लुप्त हो चुके थे. इससे भक्तों में बड़ी निराशा थी. सारे रास्ते खच्चर और धूल ही थी. जब श्रीनगर पहुंचे तो वहां भी बहुत गर्मी थी. कश्मीर के अंदर गए तो वहां हाफ बाजू की शर्ट में घूम रहे थे. इससे पता चलता है कि वातावरण को बहुत नुकसान हो रहा है.

2022 में बीएसएफ के पूर्व इंस्पेक्टर जनरल राजा बाबू सिंह ने पहलगाम और बालटाल दोनों मार्गों पर सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाली थी. उन्होंने कहा, मेरे कार्यकाल के दौरान मैंने देखा कि उस क्षेत्र में बर्फबारी में कमी आई है. पहले यात्रा मार्ग पर एकदम प्राकृतिक और अनछुई जमीन हुआ करती थी. अब वहां भारी संख्या में सुरक्षाबलों की मौजूदगी, हेलिकॉप्टरों की आवाजाही और लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. इसका असर वहां के पर्यावरण पर पड़ा है, जिसे वैश्विक तापवृद्धि ने और बढ़ा दिया है.

पहले 35 से 40 दिन होते थे बाबा बर्फानी के दर्शन

रविंद्र कुमार 30 साल (1996 से 2025) से अमरनाथ की यात्रा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि अमरनाथजी बर्फानी की यात्रा इतनी आसान नहीं है, जितनी लोग इसे समझते हैं. बीते 30 वर्षों में उन्होंने लगभग 40 बार बाबा बर्फानी के दर्शन किए हैं. लेकिन 1996 से 2003 तक यात्रियों की संख्या बहुत कम हुआ करती थी और बर्फानी शिवलिंग का रूप भी विशाल (लगभग 9 से 16 फीट) होता था. समय सीमा भी अधिक हुआ करती थी और हेलीकॉप्टर की सेवा भी बहुत सीमित थी, जो कि भवन के पास ही मात्र 300 मीटर के दायरे में थी. मगर जैसे-जैसे यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी और हेलीकॉप्टर में यात्रियों की संख्या बढ़ी, तो बाबा बर्फानी शिवलिंग का आकार लुप्त होने लगा. यहां आने वाले भक्तों की संख्या प्रतिवर्ष 5 लाख से 7.5 लाख तक हो गई है. जिस शिवलिंग के दर्शन 35 से 40 दिन हुआ करते थे, वो अब घटकर 15 से 20 दिन हो गए हैं.

साल 2025 में भीषण गर्मी और तापमान में वृद्धि के चलते मुश्किल से एक सप्ताह भी बाबा बर्फानी के दर्शन हो पाए. साथ ही बढ़ी गर्मी के चलते और बारिश न होने के कारण पूरे रास्ते धूल भरी आंधी का सामना भी शिव भक्तों को करना पड़ा. सरकार की तरफ से श्री अमरनाथ जी यात्रा श्राइन बोर्ड के द्वारा काफी कुछ बदलाव किए गए. यात्रियों की सुविधा के लिए रोड़, दुर्गम रास्तों को आसान बनाया गया. शौचालयों की व्यवस्था, ठहरने के लिए जगह और सुरक्षा के लिए कड़े इंतजाम पर ध्यान दिया जाने लगा.

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