आग में खाक हुईं हजारों फाइलें, क्या अब खत्म हो जाएंगे नेपाल के पेंडिंग केस?

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भारी हिंसा के बाद नेपाल की जनता ने मनचाहा पा लिया. केपी शर्मा की सरकार गिर चुकी. नया प्रधानमंत्री चुनने की तैयारी चल रही है. लेकिन इस बीच नेपाल की बेहद अहम सरकारी इमारतें तबाह हो चुकी हैं. संसद भवन, पीएमओ से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में आग लगा दी गई. अदालत के कई विभागों में रखे केस डॉक्युमेंट्स राख हो गए. नेपाल में तो विद्रोहियों ने ऐसा किया, लेकिन कई बार शॉर्ट सर्किट या कई दुर्घटनाओं में दस्तावेज नष्ट हो जाते हैं. इनका खत्म होना केस पर क्या असर डालता है?

9 सितंबर को हुई आगजनी में अदालत में रखी लगभग 60 हजार केस फाइलें जलकर नष्ट हो गईं. इस घटना के बाद, कोर्ट ने सारी सुनवाई अनिश्चित समय के लिए रोक दी, साथ ही बाकी दस्तावेजों को सुरक्षित जगहों पर भेजा जा रहा है. अब ये देखा जाएगा कि आगे कब और क्या किया जाए. इसमें वक्त भी लग सकता है.

दरअसल, नेपाली एससी की लाइब्रेरी में सिर्फ केस फाइलें ही नहीं थीं, वहां दशकों पुराने जजमेंट, कानूनी दांवपेंच, और प्रशासनिक रिकॉर्ड भी थे. कई ऐसे थे, जिनकी मिसाल लगातार दी जाती रही. अब इनका नष्ट होना इतिहास के पन्ने जल जाने जैसा है. कई केस ऐसे हैं जिनमें सालों की सुनवाई हो चुकी थी, और वो करीब-करीब खत्म होने को थे, अब उन मामलों को नए सिरे से देखना-सुनना होगा.

ये सिर्फ अदालत के लिए मुश्किल नहीं, बल्कि इंसाफ का इंतजार कर रहे लोगों के लिए और ज्यादा परेशान करने वाला है. 

nepal gen z protest (Photo- Reuters)नेपाल में प्रदर्शनकारियों ने सरकारी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया. (Photo- Reuters)

वैसे किसी भी वजह से नष्ट हुए दस्तावेजों के लिए नेपाल के कानून की अलग से कोई जानकारी पब्लिक डोमेन में नहीं दिखती, सिवाय इसके लिए सरकारी महकमा कोशिश करता है कि उसे जल्द से जल्द वापस तैयार किया जाए. जली हुई केस फाइलों के लिए, संबंधित पक्षों को दोबारा दावे पेश करने या गवाही देने के लिए भी कहा जा सकता है.

यह नियम नेपाल ही नहीं, पूरी दुनिया में है. अगर किसी दुर्घटना या साजिश में भी डॉक्युमेंट्स नष्ट हों या चोरी चले जाएं तो उसे दोबारा तैयार किया जाता है. इस दौरान वो सारी प्रोसेस की जाती जो उसे पुराने शेप में ला सके. वहीं कई देशों में वैकल्पिक तरीके भी हैं, जैसे इलेक्ट्रॉनिक डेटा या दूसरे सोर्स, जिनके पास तमाम जानकारी सहेजी हो सकती है. 

delhi high court (File Photo) दिल्ली हाई कोर्ट में तकरीबन सारा काम पेपरलेस हो चुका है. (File Photo)

भारत के मामले को समझने के लिए हमने दिल्ली हाई कोर्ट के सीनियर वकील मनीष भदौरिया से बात की. वे कहते हैं- हमारे यहां साल 2020 से ही ई-फाइलिंग होने लगी है. कम से कम दिल्ली हाई कोर्ट में तो सारा मामला डिजिटली सेव किया जा रहा है. इसके लिए ई कोर्ट्स नाम से एक एप है, जहां डेटा रहता है. ये जिला कोर्ट, हाई कोर्ट से लेकर संबंधित थाने और कई जगहों पर मिलेगा. अव्वल तो ये नष्ट नहीं हो सकता, और किसी वजह से ई-डॉक्युमेंट्स को भी कोई नुकसान हो जाए तो उसे किसी भी जगह से निकाला जा सकता है. 

जो मामले पुराने हैं, उनके दस्तावेजों का पीडीएफ बनाकर अपलोड किया जा रहा है ताकि सब कुछ पेपरलेस और डिजिटल हो सके.

दिल्ली के अलावा भी बाकी जगहों पर यही कोशिश चल रही है. लेकिन जहां नहीं है, वहां फिर ट्रेडिशनल तरीका अपनाना होता है. मसलन, दस्तावेज जल जाएं तो केस की कुछ डिटेल तो थाने से मिल जाएगी, जो चीजें फिर भी बाकी रहें, उनके लिए गवाहियां हो सकती है, क्राइम सीन पर दोबारा जाया जा सकता है, और वो सारी औपचारिकताएं होती हैं ताकि केस में कुछ मिसिंग न रहे. 

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