महाराष्ट्र के ठाणे से करीब 20 किलोमीटर दूर एक छोटा-सा गांव है, जहां तीस परिवार रहते हैं. घरिवली नाम के इस गांव की खासियत है कि उन तीस में से बीस परिवारों के बच्चे डॉक्टर बन चुके हैं और कई बच्चे डॉक्टर बनने का तैयारी कर रहे हैं. घरिवली को लोग ‘डॉक्टर चा गांव’ (डॉक्टरों का गांव) कहते हैं.
कैसे शुरू हुई परंपरा?
जब संजय पाटिल के माता-पिता ने उन्हें डॉक्टर बनने के लिए मुंबई भेजा, तब उन्हें नही पता था कि ये जल्दी ही गांव के सभी बच्चों का भविष्य बन जाएगा. ठाणे के ही एक जिला परिषद स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले संजय पाटिल को स्कूल में स्कॉलरशिप भी मिली थी. जब वो एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर साल 2000 में गांव लौटे, तो उन्हें देखकर बाकी युवा भी डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित हुए. मेडिकल में करियर बनाना गांव का एक रिवाज बन गया. आज घरिवली से निकले कई फिजीशियन, सर्जन और स्पेशलिस्ट डॉक्टर मुंबई, पुणे और विदेश में प्रेक्टिस कर रहे हैं.
हर घर में है एक डॉक्टर
घरिवली के ज्यादातर डॉक्टरों ने बिना कोचिंग सुविधाओं के स्थानीय मराठी-मीडियम स्कूलों से पढ़ाई की है. परिवार के समर्थन और दोस्तों से मिली प्रेरणा ने इनका साथ दिया. गांव के बुजुर्गों का मानना है कि बच्चों को डॉक्टर बनाकर वो उस परिवार का सम्मान और समाज की सेवा कर रहे हैं. आज घरिवली के लगभग हर घर में एक डॉक्टर है. हालांकि मेडिकल के अलावा युवा इंजीनियरिंग, वकालत और शिक्षा जैसे दूसरे क्षेत्रों में भी करियर बना रहे हैं.
क्यों पड़ रही इतने डॉक्टरों की जरूरत?
कल्याण-डोंबिवली के बाहरी इलाकों में चिकित्सा का इन्फ्रास्ट्रक्चर सीमित है. सबसे नजदीकी प्राइवेट अस्पताल भी करीब पांच किलोमीटर दूर है. क्षेत्र में कुछ ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं और उनमें भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं.
गांव में खोलना चाहते हैं सामूहिक अस्पताल
घरिवली के लोग जल्दी ही गांव में एक सामूहिक अस्पताल खोलना चाहते हैं. यहीं के इतने सारे डॉक्टरों की मदद से वो बाकी लोगों को घर के पास ही इलाज की सुविधा उपलब्ध कराना चाहते हैं. इसके लिए छोटी-छोटी योजनाएं भी चल रही हैं और कई परिवारों ने सहयोग का वादा किया है.
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