अफगानिस्तान वो देश है, जहां दशकों से स्थिरता रही ही नहीं. कभी ये मुल्क बाहरी ताकतों से लड़ता रहा, तो कभी आपस में ही गुत्थमगुत्था रहा. इस बीच वहां से लाखों लोग अलग-अलग देशों में पलायन करने लगे. सबसे बड़ी आबादी ईरान और पाकिस्तान में जा बसी. तालिबान के आने के बाद से पाकिस्तान ने तो अफगानियों को निकालना शुरू किया, अब इस लिस्ट में ईरान भी आ चुका. इजरायल से जंग रुकने के बाद से अब तक पांच लाख से ज्यादा शरणार्थी जबरन उनके देश वापस भेजे जा चुके.
यूएन की संस्था इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन ने एलान किया कि जून के आखिरी सप्ताह से लेकर 9 जुलाई तक लाखों अफगानी मूल के लोग ईरान से लौटाए जा चुके. इसमें बड़ी संख्या में अकेली महिलाएं भी हैं. अफगानिस्तान में फिलहाल तालिबानी राज है. ऐसे में अकेली महिलाओं की वापसी यानी कड़ी सजा मिलना तय है. बता दें कि फिलहाल अफगानिस्तान में बिना पुरुष रिश्तेदारों के महिलाओं की यात्रा पर पाबंदी है. यहां तक कि उनका काम करना और सार्वजनिक जगहों पर हंसना-बोलना भी मना है. इससे पहले ईरान बिना दस्तावेज के पुरुषों को तो वापस लौटाता रहा, लेकिन इस तरह का मास डिपोर्टेशन पहली बार हो रहा है.
द गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान ने बगैर महराम (पारिवारिक पुरुष) आ रही महिलाओं के लिए ट्रांसपोर्ट और अस्थाई शेल्टर की बात की, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. महिलाओं और बच्चों समेत लाखों लोग जबरन सीमा पार भेजे जा रहे हैं. इन दिनों वहां भारी गर्मी है. यूएन का कहना है कि गर्मी, भूख और तकलीफ के चलते बहुत सी मौतें भी हो चुकीं.

ईरान में क्यों आया ये बदलाव
तेहरान इससे पहले दशकों तक सताए हुए मुस्लिमों को शरण देता रहा. खासकर अफगानिस्तान से वहां लाखों लोग भाग-भागकर पहुंचे. UNHCR के अनुसार, ईरान में साढ़े सात लाख से ज्यादा अफगानी रहते हैं. लेकिन ये डॉक्युमेंटेड लोग हैं. इनके अलावा भी लाखों की संख्या में अफगानिस्तान के शरणार्थी वहां बसे हुए हैं. सबसे बड़ा पलायन चार साल पहले हुआ, जब अफगानिस्तान में तालिबान 2.0 की शुरुआत हुई.
संख्या बढ़ने के साथ ईरान पर आर्थिक-सामाजिक बोझ भी बढ़ने लगा. साथ ही सुरक्षा पर भी खतरा बढ़ा. कई छुटपुट घटनाएं हुईं, जिसमें शक की सुई अफगानी घुसपैठियों की तरफ थी. हाल में इजरायल के साथ युद्ध के दौरान भी भारी धरपकड़ हुई और आरोप लगा कि घुसपैठिए दुश्मन देश के साथ मिले हुए हैं. इसके अलावा स्थानीय लोग भी नाराज हैं. उन्हें लगता है कि इतने सारे शरणार्थियों के चलते उनका काम-धाम छिन रहा है. कुल मिलाकर, ईरान अब अफगानियों के लिए उतना वेलकमिंग नहीं रहा.

इसकी शुरुआत वैसे तो कुछ साल पहले ही हो चुकी. साल 2022 में ईरानी सरकार ने अनडॉक्युमेंटेड अफगानियों की गिनती शुरू की. इसके सालभर बाद ही एलान हुआ कि देश से तमाम अवैध अफगानियों को वापस भेज दिया जाएगा. तब से ऐसे लोगों की पहचान चल रही है और उन्हें डिपोर्ट किया रहा है. इजरायल से युद्ध बंद होने के बाद इसमें तेजी आई. इस्लाम काला बॉर्डर से रोज हजारों-हजार लोग सीमा पार भेजे जा रहे हैं. यूएनएचसीआर का अनुमान है कि इस साल के आखिर तक करीब तीस लाख लोग अफगानिस्तान वापस लौटा दिए जाएंगे. इसमें पाकिस्तान से डिपोर्ट हो रहे लोग भी शामिल हैं.
ईरान से डिपोर्ट हो रहे लोगों का आरोप है कि उन्हें हिंसक तरीके से लौटाया जा रहा है. विदेशी मीडिया, जिसमें सीएनएन और द गार्डियन शामिल हैं, बहुत से लोगों के बयान हैं. उनका आरोप है कि ईरानी प्रशासन ने उन्हें एक दिन की मोहलत भी नहीं दी कि वे अपना सामान बांध सकें, या तनख्वाह ले सकें. उन्हें रातोरात गाड़ियों में भरकर सीमा के पास छोड़ दिया गया.

तालिबान के पास अपने लोगों के लिए कैसी तैयारी
चार साल पहले तालिबान अफगानिस्तान में दोबारा लौटा. उसने वापसी के साथ ही अपने ज्यादा उदार, ज्यादा लोकतांत्रिक होने का एलान किया, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. अब भी वो महिलाओं को लेकर उतना ही सख्त है. लगातार मानवाधिकार हनन की शिकायतों के बीच ज्यादातर देश तालिबान से दूरी बनाए हुए हैं. यहां तक कि उसे वैध सरकार तक का दर्जा नहीं मिल सका. ऐसे में उसके पास इकनॉमी के नाम पर कुछ नहीं है, सिवाय चुनिंदा इंटरनेशनल संस्थाओं की मदद के.
इसी स्थिति में देश में लाखों लोग वापस लौट रहे हैं. इनमें ऐसे लोग भी हैं, जो दशकों पहले यहां से जा चुके थे. इनका इन्टिग्रेशन आसान नहीं. हाल में तालिबानी सरकार के शरणार्थी और प्रत्यावर्तन मंत्रालय ने अपील की कि रिफ्यूजियों को ज्यादा मानवीय ढंग से और रेगुलर इंटरवल पर भेजा जाए. लेकिन हुआ इसका उल्टा. अब बिना रिसोर्स के भी तालिबान पर दबाव है कि वो अपने लोगों को एडजस्ट करे.
तालिबान हालांकि दावा कर रहा है कि वो लौट रहे लोगों के लिए अस्थाई कैंप और खानेपीने का बंदोबस्त कर रहा है लेकिन मीडिया में जो टेस्टिमोनी आ रही है, उससे ऐसा नहीं लगता. सीमावर्ती इलाकों, खासकर निमरोज और हेरात में ठहरने की जगह कम है, पानी और इलाज की भारी कमी है. तालिबान ने कुछ प्रांतों में खाली जमीन देने की भी बात की ताकि लोग वहां घर बना सकें लेकिन इसकी भी कई कंडीशन्स हैं. जैसे अकेली लौट रही महिलाओं के लिए ये योजना नहीं.
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