केरल में निपाह वायरस से मौत, 46 नए केस... जानिए कैसे शरीर पर वार करता है, बचाव क्या है?

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केरल में निपाह वायरस (Nipah Virus) ने एक बार फिर दहशत फैला दी है. हाल ही में मलप्पुरम जिले में इस वायरस से एक 18 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई. 46 नए मामले सामने आए हैं. इस घातक वायरस ने स्वास्थ्य अधिकारियों को हाई अलर्ट पर ला दिया है. यह वायरस न केवल जानलेवा है, बल्कि इसकी कोई विशेष दवा या वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है. 

निपाह वायरस क्या है?

निपाह वायरस (NiV) एक जूनोटिक वायरस है, यानी यह जानवरों से इंसानों में फैलता है. यह वायरस मुख्य रूप से फ्रूट बैट्स (Pteropus medius), जिन्हें फ्लाइंग फॉक्स भी कहा जाता है. सुअरों के जरिए इंसानों में फैलता है. यह पहली बार 1998 में मलेशिया में पाया गया था. तब से बांग्लादेश, भारत और सिंगापुर में इसके प्रकोप देखे गए हैं. केरल में 2018 से अब तक सात बार निपाह वायरस का प्रकोप देखा गया है, जिसमें 2018, 2019, 2021, 2023 और 2024-25 शामिल हैं.

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निपाह वायरस की मृत्यु दर (fatality rate) बहुत अधिक है, जो 40% से 75% तक हो सकती है. यह वायरस ह्यूमन-टू-ह्यूमन ट्रांसमिशन (इंसान से इंसान में फैलने) की क्षमता भी रखता है, जो इसे और खतरनाक बनाता है. WHO ने इसे महामारी की संभावना वाले प्राथमिकता वाले रोगजनकों (priority pathogens) में शामिल किया है.

Nipah Virus Kerala

केरल में निपाह वायरस का ताजा प्रकोप

जुलाई 2025 में, केरल के मलप्पुरम जिले में एक 18 वर्षीय व्यक्ति की निपाह वायरस से मृत्यु हो गई. इसके साथ ही 46 नए मामले सामने आए हैं, जिनमें से अधिकांश मलप्पुरम, कोझिकोड और पलक्कड़ जिलों में हैं. स्वास्थ्य अधिकारियों ने 425 लोगों को निगरानी में रखा है, जिनमें 134 हाई-रिस्क श्रेणी में हैं. इनमें से 61 स्वास्थ्य कर्मी पलक्कड़ में और 87 कोझिकोड में हैं. एक 38 वर्षीय महिला, जो पलक्कड़ के थचनट्टुकरा से है, वेंटिलेटर पर गंभीर स्थिति में है.

केरल सरकार ने तुरंत कार्रवाई शुरू की है...

  • कंटेनमेंट जोन: मलप्पुरम, कोझिकोड और पलक्कड़ में कंटेनमेंट जोन बनाए गए हैं.
  • कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग: 425 लोगों की कॉन्टैक्ट लिस्ट तैयार की गई है. सभी की निगरानी की जा रही है.
  • टेस्टिंग: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV), पुणे में सैंपल टेस्ट किए जा रहे हैं. अब तक 37 लोग निगेटिव मिले.
  • पब्लिक अलर्ट: मास्क पहनना अनिवार्य किया गया है. लोगों से अस्पतालों में अनावश्यक दौरा न करने की सलाह दी गई है.

निपाह वायरस शरीर पर कैसे हमला करता है?

निपाह वायरस शरीर में प्रवेश करने के बाद गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है. यह मुख्य रूप से मस्तिष्क और फेफड़ों को प्रभावित करता है. नीचे इसके प्रभाव की प्रक्रिया दी गई है...

Nipah Virus Kerala

संक्रमण का रास्ता

  • जानवरों से इंसानों में: यह वायरस फ्रूट बैट्स या सुअरों के मल, मूत्र या लार से दूषित भोजन (जैसे कच्चा खजूर का रस या आधा खाया हुआ फल) खाने से फैलता है.
  • इंसान से इंसान में: संक्रमित व्यक्ति के शरीर के तरल पदार्थ (जैसे लार, खून या नाक से निकलने वाली बूंदें) के संपर्क में आने से.
  • पेड़ों पर चढ़ना: कुछ मामलों में, चमगादड़ों के रहने वाले पेड़ों पर चढ़ने से भी वायरस फैल सकता है.

लक्षण

  • वायरस शरीर में प्रवेश करने के 4 से 14 दिन बाद लक्षण दिखाई देते हैं.
  • शुरुआती लक्षण: बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, गले में खराश, उल्टी और थकान.
  • गंभीर लक्षण: सांस लेने में तकलीफ, भटकाव, चक्कर आना, दौरे, कोमा और एन्सेफलाइटिस (मस्तिष्क की सूजन).

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शरीर पर प्रभाव

  • मस्तिष्क: निपाह वायरस मस्तिष्क में सूजन (एन्सेफलाइटिस) पैदा करता है, जिससे दौरे, कोमा और मृत्यु हो सकती है.
  • फेफड़े: यह तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम (ARDS) का कारण बन सकता है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है.
  • दीर्घकालिक प्रभाव: 20% मरीजों में न्यूरोलॉजिकल समस्याएं, जैसे दौरे या व्यक्तित्व में बदलाव रह सकते हैं.
  • मृत्यु दर: 1998 से 2018 के बीच निपाह वायरस की मृत्यु दर 40-75% रही है. केरल में 2018 के प्रकोप में 91% मृत्यु दर दर्ज की गई थी.

केरल में बार-बार क्यों फैलता है निपाह?

केरल में निपाह वायरस का बार-बार प्रकोप होने के कई कारण हैं...

  • भौगोलिक स्थिति: केरल का उष्णकटिबंधीय जलवायु और घने जंगल फ्रूट बैट्स के लिए उपयुक्त हैं.
  • शहरीकरण और जंगल कटाई: जंगलों की कटाई और मानव बस्तियों का विस्तार चमगादड़ों और इंसानों के बीच संपर्क बढ़ाता है.
  • मॉनसून सीजन: मई से सितंबर के बीच जो चमगादड़ों का प्रजनन काल है, वायरस का खतरा बढ़ जाता है.
  • खानपान की आदतें: कच्चा खजूर का रस या आधा खाया हुआ फल खाने से वायरस फैल सकता है.

Nipah Virus Kerala

इलाज 

निपाह वायरस का कोई विशिष्ट इलाज नहीं है. उपचार में निम्नलिखित शामिल हैं...

सपोर्टिव केयर: मरीजों को हाइड्रेशन, ऑक्सीजन थेरेपी और लक्षणों का प्रबंधन.

प्रायोगिक उपचार

  • M102.4 मोनोक्लोनल एंटीबॉडी: 2018 में केरल में इसका उपयोग किया गया था, लेकिन यह अभी भी प्रायोगिक चरण में है.
  • रेमडेसिविर और रिबाविरिन: इनका उपयोग कुछ मामलों में किया गया, लेकिन मानवों में प्रभावशीलता स्पष्ट नहीं है.
  • वैक्सीन अनुसंधान: जनवरी 2024 में ChAdOx1 NipahB वैक्सीन का पहला चरण शुरू हुआ, लेकिन यह अभी उपलब्ध नहीं है.

केरल सरकार और स्वास्थ्य विभाग की प्रतिक्रिया

केरल सरकार और स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने इस प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए त्वरित कदम उठाए हैं...

  • 26 समितियां: मलप्पुरम, कोझिकोड और पलक्कड़ में 26 समितियां गठित की गई हैं.
  • हेल्पलाइन: राज्य और जिला स्तर पर हेल्पलाइन शुरू की गई हैं.
  • सर्वे: 7953 घरों में सर्वे किया गया, जिसमें 175 बुखार के मामले पाए गए.
  • मनोवैज्ञानिक सहायता: 265 लोगों को कॉल सेंटर के माध्यम से मानसिक सहायता दी गई.
  • लॉकडाउन और मास्क: प्रभावित क्षेत्रों में लॉकडाउन और मास्क अनिवार्य किए गए हैं.

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बचाव के उपाय

निपाह वायरस से बचने के लिए कोई वैक्सीन या विशिष्ट इलाज उपलब्ध नहीं है. इसलिए, बचाव ही सबसे प्रभावी तरीका है. निम्नलिखित उपाय अपनाएं...

जानवरों से दूरी

चमगादड़ों या सुअरों के संपर्क में आने से बचें.
आधा खाया हुआ फल या कच्चा खजूर का रस न खाएं.

स्वच्छता

नियमित रूप से साबुन से हाथ धोएं, खासकर बीमार लोगों की देखभाल करने के बाद.
70% अल्कोहल युक्त सैनिटाइजर का उपयोग करें.

मास्क का उपयोग

सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनें, खासकर प्रभावित क्षेत्रों में.
खांसते या छींकते समय नाक और मुंह ढकें.

Nipah Virus Kerala

संक्रमित व्यक्तियों से बचाव

निपाह से संक्रमित लोगों के शरीर के तरल पदार्थों (लार, खून, मूत्र) के संपर्क से बचें.
अस्पतालों में अनावश्यक दौरे न करें.

जागरूकता और निगरानी

बुखार, सिरदर्द या सांस की तकलीफ जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.
प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग के दिशानिर्देशों का पालन करें.

स्वास्थ्य सुविधाएं

अस्पतालों में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) का उपयोग अनिवार्य करें.
संदिग्ध मरीजों के सैंपल संभालते समय सावधानी बरतें.

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भविष्य की चुनौतियां और तैयारी

केरल में निपाह वायरस का बार-बार उभरना कई चुनौतियां पेश करता है...

  • प्रारंभिक पहचान: शुरुआती लक्षण सामान्य बुखार जैसे होते हैं, जिससे निदान मुश्किल होता है.
  • पर्यावरणीय कारक: जंगल कटाई और शहरीकरण से चमगादड़ों और इंसानों का संपर्क बढ़ रहा है.
  • वैक्सीन की कमी: वैक्सीन और इलाज की अनुपस्थिति इसे और खतरनाक बनाती है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का सुझाव है कि निपाह के प्रकोप को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम जरूरी हैं...

  • निगरानी प्रणाली: तीव्र मस्तिष्क ज्वर (AES) और श्वसन संकट (ARDS) की निगरानी बढ़ाएं.
  • जागरूकता अभियान: समुदाय और स्वास्थ्य कर्मियों को लक्षणों और बचाव के बारे में शिक्षित करें.
  • पर्यावरण प्रबंधन: चमगादड़ों के आवास और मानव बस्तियों के बीच दूरी बनाए रखें.

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