दुनिया इन दिनों आग पर चढ़ी हंडिया बनी हुई है, जिसपर लगातार कुछ न कुछ खदबदा रहा है. कुछ देश लड़ने-भिड़ने में जुटे हुए हैं. कुछ सबसे बचने के लिए सैन्य ताकत बढ़ा रहे हैं. लेकिन इन सबसे बीच महाशक्ति बनने के करीब दिख रहा चीन चुप साधे हुए हैं. खासकर वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग लगभग दो हफ्तों तक ग्लोबल पिक्चर से गायब रहे. न कोई बयान, न कोई अपीयरेंस. तो क्या चीन में सत्ता बदल रही है?
साल 2013 की शुरुआत में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की बागडोर अपने हाथों में लेने के बाद से जिनपिंग लगातार चर्चा में रहे. कभी वे पड़ोसियों से उलझे रहे, कभी किसी से शांति की अपील करते रहे, तो कई बार भारी कर्ज देकर ट्रैप करने की कथित आदत भी चीन के लीडर को घेरती रही.
एक दशक से ज्यादा वक्त के बाद जिनपिंग पहली बार गायब रहे. बीच में एकाध बार आए लेकिन वे किसी सार्वजनिक मौके पर नहीं दिख रहे. माना जा रहा है कि वे कुछ ही दिनों में ब्राजील में होने जा रही ब्रिक्स समिट से भी वे गैरमौजूद रहेंगे. माहौल अलग है, इतना अलग कि इस पर कम्युनिस्ट पार्टी के री-अलाइमेंट की चर्चा भी होने लगी.
कितनी बड़ी बात है सार्वजनिक मौकों पर न दिखना
बीजिंग में यह बहुत बड़ी बात है. मई के आखिर से जिनपिंग की मौजूदगी एकदम से चली गई. न वे किसी परेड में आ रहे हैं. न कोई भाषण दे रहे हैं और न ही सरकारी मीडिया में दिख रहे हैं. सीएनएन की एक रिपोर्ट में टॉप खुफिया अधिकारियों के हवाले से कहा गया कि जिनपिंग की अनुपस्थिति में कुछ अनयूजुअल नहीं. वहां बड़े लीडर्स को साइडलाइन करने का इतिहास रहा. दस्तावेजों पर भले नाम रहे, लेकिन चुपके से पावर कहीं और चली जाती है.
बीच में संक्षिप्त मौजूदगी दिखी
जून में दो हफ्तों से ज्यादा की अनुपस्थिति के बाद जिनपिंग बेलारूस के राष्ट्रपति के साथ दिखे भी, लेकिन ये मीटिंग बहुत छोटी रही. बेलारूस की मीडिया ने खुद माना कि जिनपिंग पूरे वक्त थके हुए, बीमार दिख रहे हैं, और लग रहा था कि उनका ध्यान कहीं और है. खुद चीन की मीडिया में कुछ समय पहले उनका टाइटल गायब कर दिया गया और सीधे नाम से संबोधन गया. बाद में वैसे इस चूक को सही कर दिया गया, लेकिन खटका तो हो चुका था. लोगों का ध्यान जाने लगा कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है.
पावर ट्रांसफर कहां हो रहा है
तगड़े अनुमान हैं कि सत्ता भले ही जिनपिंग के हाथों में हो, लेकिन फैसले लेने की ताकत कहीं और जा रही है. इसमें एक नाम सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के फर्स्ट वाइस चेयरमैन जनरल झांग यूक्सिया का आ रहा है. माना जा रहा है कि वे और उनके समर्थक जिनपिंग से कुछ कम सख्त हैं. इससे पहले जिनपिंग पर आरोप लगे कि वे अपनी सोच को स्कूल-कॉलेजों की किताबों में शामिल कर रहे हैं ताकि बच्चों में भी वही आइडियोलॉजी डाली जा सके.
एक औऱ नाम चर्चा में है. वेंग यांग जो कि टेक्नोक्रेट रह चुके, उन्हें भी जिनपिंग की जगह आगे लाया जा सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, यांग को हाल में कम्युनिस्ट पार्टी का हेड बनाया गया. बेहद युवा ये चेहरा चीन में रिफॉर्म की बात कर सकता है. ये ज्यादा शांत, सुलझा हुआ और बाजार के अनुसार चलने वाला नेता हो सकता है, जिसकी चीन को फिलहाल ज्यादा जरूरत है ताकि वो अमेरिका की कुर्सी डिगा सके.
क्या चीन में कोई बड़ा लीडर अचानक गायब हुआ है
हां. कई बार बड़े नेता अचानक सार्वजनिक रूप से दिखना बंद हो गए. इसमें एक नाम जिनपिंग के पहले राष्ट्रपति रह चुके हू जिंताओ का आता है. साल 2022 को जब कम्युनिस्ट पार्टी का 20वां समारोह मनाया जा रहा था, हू को सबसे सामने ही अचानक हॉल से बाहर ले जाया गया. जिनपिंग उनके बगल में ही बैठे हुए थे लेकिन उन्होंने कोई एक्सप्रेशन नहीं दिया. कैमरों में यह सब रिकॉर्ड हो गया. पूर्व राष्ट्रपति को ले जाते हुए कोई सफाई नहीं दी गई, सिवाय इसके लिए उनकी सेहत खराब हो गई है.
पिछले दो से तीन सालों में बीजिंग में रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और सैन्य अधिकारी तक गायब हो गए. बाद में कहा गया कि उन पर भ्रष्टाचार या विश्वासघात के आरोप थे, लेकिन पार्टी ने कोई खुली जांच या ट्रायल नहीं दिखाया. सब गुपचुप चलता रहा.
अलीबाबा कंपनी के फाउंडर जैक मा भी कुछ समय के लिए गायब हो गए थे, जब उन्होंने सरकार की आलोचना की थी. कई महीने बाद वे लौटे तो ज्यादातर चुप रहने लगे. इससे अंदाज लग सकता है कि इस देश में बड़े नेता या अधिकारी चुपचाप साइडलाइन किए जा सकते हैं और इसमें जनता की मंजूरी मायने नहीं रखती, न ही उन्हें भीतरखाने चल रही खदबदाहट की भनक लगती है, जब तक सब फाइनल न हो जाए.
कैसे चुना जाता है राष्ट्रपति
वहां नियम था कि राष्ट्रपति दो कार्यकाल से ज्यादा सर्व नहीं कर सकते. लेकिन कोविड के पहले जिनपिंग ने इसे बदल दिया. संविधान में बदलाव से साफ था कि वे पूरी जिंदगी शासन करना चाहते हैं. ठीक रूस की तरह, जहां व्लादिमीर पुतिन ने भी संविधान में बदलाव करते हुए स्थाई पद की व्यवस्था कर दी. यहां वैसे भी राष्ट्रपति के चुनाव में जनता की सीधी भागीदारी नहीं होती, सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस तय करती है कि पार्टी को कौन लीड करेगा. जो भी पार्टी चलाता है, उसी के हाथ में देश की कमान भी चली जाती है. इस प्रोसेस में जनता का कोई हाथ नहीं रहता.
तो क्या अचानक नया प्रेसिडेंट चुना जा सकता है
आमतौर पर नहीं. ये कुछ खास हालात में होता है. मसलन, मौजूदा राष्ट्रपति खुद इस्तीफा दे दें, या उनके साथ कुछ अघट हो जाए या फिर पार्टी उन्हें हटाने का फैसला करे. नेशनल पीपल्स कांग्रेस वोटिंग के जरिए नए राष्ट्रपति के नाम का एलान करता है, लेकिन ये औपचारिकता ही होती है. असल फैसला पहले हो चुका होता है. साल 2013 में जब जिनपिंग राष्ट्रपति बने, तो उससे कुछ महीने पहले उन्हें पार्टी महासचिव बना दिया गया था. यही असली संकेत होता है कि अब वही लीडर बनेंगे.
कैसे तय होगा कि क्या चल रहा है
जिनपिंग पर जो कयास लग रहे हैं, वे सही हैं, या गलत, जल्द ही इसका फैसला हो सकता है. दरअसल 3 सितंबर को तियानमेन चौक पर एक बड़ा आयोजन है, जो कि जापान पर चीन की जीत के 80 साल होने पर मनाया जाएगा. हो सकता है कि इस दौरान जिनपिंग दिखें और भाषण दें.