गोल्डन डोम: बैलेस्टिक, हाइपरसोनिक और क्रूज मिसाइलों का संहारक, रेंज में पूरी दुनिया... ट्रंप के गोल्डन डोम में S-400 से अलग क्या?

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ज्यादा दिन नहीं हुए. याद कीजिए 8-9 मई की रात. पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइलों  से भारत के सीमावर्ती शहरों को पाट दिया था. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत के एयरबेस पाकिस्तानी मिसाइल अटैक की चपेट में थे. संकट की इस अभूतपूर्व स्थिति में भारत के मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तान को सुन्न कर देने वाला उत्तर दिया. पाकिस्तान के सारे मिसाइलों को भारत के आकाशतीर मिसाइल डिफेंस सिस्टम, S-400 बैट्री ने आसमान में ही इंटरसेप्ट कर ध्वस्त कर दिया. ये मॉर्डन वारफेयर की रीढ़ कहे जाने वाले मिसाइल डिफेंस सिस्टम का कमाल था. इसकी काबिलियत और उपयोगिता ने मिलिट्री एक्सपर्ट को चकित कर दिया.

रडार, सैटेलाइट और AI-आधारित सेंसर पर काम करने वाले मिसाइल डिफेंस खतरों को तुरंत पहचानकर मिसाइलों को हवा में ही नष्ट करते हैं, जिससे नागरिक और सैन्य ढांचे सुरक्षित रहते हैं. ये सिस्टम युद्ध के दौरान जवाबी कार्रवाई के लिए समय प्रदान करते हैं और रणनीतिक संतुलन बनाए रखते हैं. 

7 अक्टूबर 2023 को इजरायल में हुए हमास के हमले में भी इजरायल के मिसाइल डिफेंस सिस्टम आयरन डोम ने अद्भुत काम किया था और दर्जनों ड्रोन और मिसाइलों को हवा में ही क्षत-विक्षत कर दिया. ये हथियार आज भी इजरायल की रक्षा करता आ रहा है. 

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मिसाइल डिफेंस सिस्टम की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आ रहे हैं और जंगों के दौरान डिफेंस मैकेनिज्म को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने अमेरिका के लिए एक ऐसा मिसाइल डिफेंस तैयार किया है जो अमेरिकी एयर स्पेस को अभेद्य, अजेय और अखंडनीय बना देगा. 

ट्रंप ने इस मिसाइल डिफेंस सिस्टम को नाम दिया है गोल्डन डोम. खरबों से भी आगे की लागत, अद्यतन तकनीक, सैटेलाइट से निगरानी और इस प्रोजेक्ट में एलन मस्क की एंट्री ट्रंप के इस फ्यूचर वेपन को चमत्कार असर से युक्त और घातक बनाने जा रही है. 

अमेरिका को किससे हमले का खतरा है? सबसे शक्तिशाली देश को क्यों पड़ी स्वर्ण डोम की जरूरत

लेकिन सवाल है कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश को खतरा किससे है? अमेरिका अभी प्रत्यक्ष रूप से किसी देश से भी जंग नहीं लड़ रहा है. दुनिया के मानचित्र पर जहां कहीं भी उसका मिलिट्री एंगेजमेंट है भी तो दुश्मन बहुत छोटे हैं, जैसे यमन में हूती, अफ्रीका के कुछ विद्रोही संगठन. लेकिन ट्रंप आने वाले समय की लड़ाइयों और इलेक्ट्रानिक वॉरफेयर को ध्यान में रखकर ये फैसला ले रहे हैं. 

ट्रंप ने इस प्रोजेक्ट की घोषणा करते हुए किसी देश से संभावित खतरे का नाम नहीं लिया. लेकिन उन्होंने इतना जरूर कहा कि ये सिस्टम विदेशी मिसाइल अटैक से बचाने के काम आएगा. आखिर ये विदेशी 'दुश्मन' कौन हो सकते हैं?

अमेरिका को मुख्य रूप से चीन, रूस, ईरान, और उत्तर कोरिया जैसे देशों से मिसाइल हमलों का खतरा है. The Wall Street Journal मानता है कि चीन और रूस की हाइपरसोनिक मिसाइलें, बैलिस्टिक मिसाइलें, और AI-आधारित हथियार अमेरिका के लिए भविष्य में सुरक्षा चुनौती पैदा कर सकते हैं. 

ईरान का परमाणु कार्यक्रम और उसकी लंबी दूरी की मिसाइल क्षमता भी खतरे के रूप में उभर रही है. 

हूती, हमास जैसे नॉन स्टेट एक्टर्स ने भी अमेरिका को अपनी हवाई रक्षा को मजबूत करने के लिए प्रेरित किया है. खासतौर पर हाइपरसोनिक मिसाइलें, बैलिस्टिक मिसाइलें, ड्रोन हमले, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित खतरे अमेरिका के लिए चिंता का विषय हैं. 

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में ही इस डिफेंस सिस्टम का वादा किया था. इस प्रोग्राम की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा, "मैंने अमेरिकी लोगों से वादा किया था कि मैं अपने देश को विदेशी मिसाइल हमले के खतरे से बचाने के लिए अत्याधुनिक मिसाइल रक्षा कवच का निर्माण करूंगा. और आज हम यही कर रहे हैं."

गोल्डन डोम की रेंज में पूरी दुनिया

गोल्डन डोम सैटेलाइट का एक नेटवर्क पर काम करेगा जो आने वाली मिसाइलों का पता लगाएगा, उन्हें ट्रैक करेगा और संभावित रूप से उन्हें रोक देगा. यह शील्ड मिसाइल का पता लगाने और उन पर नज़र रखने के लिए सैकड़ों उपग्रहों को तैनात कर सकेगा.

ट्रंप ने कहा कि एक बार बन जाने के बाद ये गोल्डन डोम दुनिया के दूसरे छोर से भी छोड़े जाने पर और स्पेस से भी अटैक किए जाने पर अमेरिका की रक्षा करेगा. ट्रंप के अनुसार गोल्डन डोम हाइपर सोनिक मिसाइल, बैलेस्टिक मिसाइल और एडवांस क्रूज मिसाइल सभी को हवा में ही संहार कर देगा. 

Golden Dome को लेकर ट्रंप का प्लान क्या है?

राष्ट्रपति ने ट्रंप ने कहा है कि वे अपने मौजूदा कार्यकाल के अंत तक एक गोल्डन डोम को देखना चाहते हैं. यानी कि 2029 तक. इस परियोजना की अनुमानित लागत 175 अरब डॉलर है, जिसके लिए शुरुआती चरण में 25 अरब डॉलर का बजट प्रस्तावित किया गया है. 

एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स को इस सिस्टम के प्रमुख हिस्सों को विकसित करने का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया है. इस डिफेंस सिस्टम को  एलन मस्क की स्पेसएक्स, पलांटिर (सॉफ्टवेयर) और एंडुरिल (ड्रोन निर्माता) के साथ मिलकर इसे बनाएगी. 

कैसे करेगा काम, नेक्स्ट लेवल की तकनीक 

गोल्डन डोम फ्यूचर वेपन होगा जो अमेरिका के लिए मल्टी लेयर इंटरसेप्टर्स का काम करेगा और ये 360 डिग्री थ्रेट डिटेक्शन की तरह काम करेगा. ये डिफेंस सिस्टम अंतरिक्ष आधारित सेंसर से लैस होगा. यानी कि इस सिस्टम के रेंज में जो क्षेत्र आएंगे उस ओर बढ़ने वाले किसी भी खतरे को स्पेस में मौजूद सैटेलाइट के सेंसर डिटेक्शन कर लेंगे. और गोल्डन डोम को आगे के एक्शन के लिए तैयार कर देंगे. पॉपुलर मैकेनिक्स नाम की साइंस पत्रिका के अनुसार पूरे अमेरिका पर निगाह रखने के लिए गोल्डन डोम 1000 से अधिक सैटेलाइट्स नेटवर्क से कनेक्ट होगा. 

गोल्डन डोम फ्यूचर वेपन शॉर्ट, मीडियम, और लॉन्ग रेंज मिसाइलों को हवा में ही नष्ट करने की क्षमता से लैस होगा. गौरतलब है कि इजरायल का मौजूदा आयरन डोम की अपनी सीमा है, हमास के हमले के दौरान हमें देखने को मिला था कि कई ड्रोन आयरन डोम से मिस हो गए थे. आयरन डोम मुख्य रूप से शॉर्ट-रेंज रॉकेट्स और मिसाइलों को रोकने के लिए डिजाइन किया गया है, जबकि गोल्डन डोम लंबी दूरी की मिसाइलों, ड्रोन, और AI-आधारित खतरों को भी नष्ट करने में सक्षम होगा.

इस प्रोजेक्ट के तहत मौजूदा अमेरिकी मिसाइल डिफेंस सिस्टम जैसे GMD और Aegis BMD को हाइपरसोनिक मिसाइलों को मार गिराने के लिए सक्षम बनाने हेतु अपग्रेड किया जाएगा, फिर ये सिस्टम गोल्डन डोम का हिस्सा होंगे. 

यह सिस्टम किसी भी खतरे को तेजी से ट्रैक करेगा और अमेरिका को तत्काल चेतावनी देगा, जिससे जवाबी कार्रवाई के लिए समय मिलेगा. 

यह सिस्टम अमेरिका की दूसरी स्ट्राइक क्षमता (पहले हमले के बाद जवाबी कार्रवाई) को बढ़ाएगा और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे जैसे बिजली ग्रिड, सैन्य ठिकानों, और सरकारी भवनों को सुरक्षित रखेगा. 

राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि कनाडा ने भी इस परियोजना में रुचि दिखाई है, अगर ऐसा होता है तो गोल्डन डोम पूरे नॉर्थ अमेरिका को किसी भी खतरों के खिलाफ अभेद्य बना देगा. 

S-400 से कैसे अलग होगा गोल्डन डोम

S-400 अभी की दुनिया का उच्च श्रेणी का मिसाइल डिफेंस सिस्टम है. इसे रूस ने विकसित किया है. भारत इसी मिसाइल सिस्टम को इस्तेमाल कर रहा है. यह मुख्य रूप से ग्राउंड-बेस्ड है और शॉर्ट-टू-मीडियम रेंज (400 किमी तक) की मिसाइलों को रोकने के लिए डिजाइन किया गया है, जबकि गोल्डन डोम एक स्पेस-बेस्ड, मल्टी-लेयर सिस्टम है जो लॉन्ग-रेंज, हाइपरसोनिक, और बैलिस्टिक मिसाइलों सहित किसी भी दिशा से आने वाले खतरों को नष्ट करने में सक्षम होगा. गोल्डन डोम हजार से ज्यादा सैटेलाइट्स, लेजर हथियार, और AI-आधारित सेंसर का उपयोग करेगा, जिससे यह 360-डिग्री थ्रेट डिटेक्शन और इंटरसेप्शन देगा. जबकि S-400 की क्षमता सीमित है और ग्राउंड-बेस्ड रडार पर निर्भर है. 

ट्रंप की चुनौतियां क्या है?

डिफेंस विशेषज्ञों का मानना है कि गोल्डन डोम का निर्माण बेहद महंगा और तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण होगा. बता दें कि ट्रंप ने शुरुआती तौर पर ही भारी भरकम 25 अरब डॉलर रकम को जारी कर दिया है. 

अमेरिका द्वारा इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के बाद आर्म्स रेस की चुनौती का सामना कर रही दुनिया में एक और हथियार रेस शुरू हो सकता है. ये रेस होगा मिसाइल डिफेंस सिस्टम का. अमेरिका द्वारा इस गेम में कूदने के बाद रूस और चीन जैसे देश इस सिस्टम के जवाब में अपनी मिसाइल तकनीक को और उन्नत कर सकते हैं, जिससे वैश्विक हथियारों की होड़ बढ़ सकती है. 

स्पसे फोर्स के जनरल को कमान

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस प्रोजेक्ट की कमान जनरल माइकल गुटेलिन को सौंपी है. गोल्डन डोम अमेरिका की रक्षा को अभेद्य बनाने की दिशा में एक महत्वाकांक्षी कदम है. यह सिस्टम न केवल बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों से सुरक्षा प्रदान करेगा, बल्कि भविष्य के AI और ड्रोन-आधारित खतरों को भी निष्क्रिय करेगा.
 

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