भारत में आम न केवल स्वाद के लिए, बल्कि उनकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय पहचान के लिए भी जाना जाता है. हर आम के नाम के पीछे कोई न कोई मजेदार इतिहास छुपा है. ऐसा कहा जाता है कि चौसा आम का नाम बिहार के चौसा कस्बे के नाम पर रखा गया, शेरशाह सूरी की ऐतिहासिक जीत की याद में रखा गया. वहीं, दशहरी आम का नाम उत्तर प्रदेश के दशहरी गांव में उगी खास किस्म को लेकर रखा गया. वहीं, लंगड़ा आम का नाम वाराणसी के एक लंगड़े फकीर के आंगन से शुरू हुई किस्म के आधार पर रखा गया. तो चलिए जानते आम के नाम के पीछे की कहानी.
चौसा आम का इतिहास क्या है?
चौसा आम का नाम भारत के इतिहास में प्रसिद्ध शेरशाह सूरी से जुड़ा हुआ है. इस आम का नाम बिहार के चौसा (Chausa) कस्बे के नाम पर रखा गया, जो एक ऐतिहासिक युद्ध के लिए जाना जाता है. साल 1539 में, शेरशाह सूरी और मुगल सम्राट हुमायूं के बीच एक प्रसिद्ध युद्ध हुआ था, जिसे "चौसा का युद्ध" कहा जाता है. यह युद्ध बिहार के चौसा कस्बे में हुआ था, जिसमें शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराया था. युद्ध जीतने के बाद शेरशाह सूरी ने खुद को हिंदुस्तान का सम्राट घोषित कर दिया. कहा जाता है कि शेरशाह सूरी को उस इलाके के खास आम बेहद पसंद थे. जीत के जश्न के दौरान वहां के स्वादिष्ट आमों की तारीफ करते हुए उन्होंने इन आमों का नाम "चौसा आम" रखा, ताकि इस जगह और जीत की याद बनी रहे.
दशहरी आम का इतिहास क्या है?
इसका नाम उत्तर प्रदेश के दशहरी गांव से लिया गया है. यह मीठा आम दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है. इस आम के बारे में कहा जाता है कि लखनऊ के पास काकोरी क्षेत्र के दशहरी गांव में एक आम का पेड़ उगाया गया था, जिसके फल स्वाद, मिठास और खुशबू में इतने खास थे कि वो काफी फेमस हो गए. स्थानीय लोग इस आम को "दशहरी आम" कहने लगे और धीरे-धीरे ये नाम पूरे देश में फैल गया. उस समय अवध के नवाबों को दशहरी आम इतना पसंद आया कि इसे राजसी आम कहा जाने लगा.
लंगड़ा आम का इतिहास क्या है?
लंगड़ा आम, उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध और पसंदीदा आमों में से एक है. इसका नाम सुनकर ही कई लोग चौंकते हैं कि आम का नाम "लंगड़ा" क्यों पड़ा? इसके पीछे एक ऐतिहासिक और दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है. ऐसा कहा जाता है कि यह आम पहली बार उत्तर प्रदेश के वाराणसी (बनारस) में उगाया गया था. कई साल पहले वाराणसी में रहने वाले एक साधु या फकीर, जो पैरों से लंगड़े थे, उनके घर के आंगन में एक आम का पेड़ उगा. जब उस पेड़ में फल आया, तो उसका स्वाद, मिठास और खुशबू इतनी बेहतरीन थी कि इलाके में उसकी चर्चा होने लगी. क्योंकि उस फकीर को लोग "लंगड़ा बाबा" कहकर पुकारते थे, इसलिए लोग उस आम को "लंगड़ा आम" कहने लगे.
केसर आम का क्या इतिहास है?
केसर आम को आमों का "रानी" भी कहा जाता है. इसके नाम के पीछे भी ऐतिहासिक और प्राकृतिक रहस्य छिपा है. केसर आम की शुरुआत भारत के गुजरात राज्य से मानी जाती है. खासतौर पर गुजरात के गिरनार हिल्स और जूनागढ़ जिले में इसकी खेती होती है. कहा जाता है कि 1931 में जूनागढ़ के नवाब ने जब इस खास आम को पहली बार खाया, तो उसकी खुशबू और रंग देखकर हैरान रह गए. आम का गूदा सुनहरे केसर के रंग जैसा था और काफी थी. इसके रंग को देखते हुए नवाब ने तुरंत इस आम को "केसर आम" नाम दे दिया क्योंकि इसका रंग केसर जैसा और स्वाद भी शाही था.
मालदा आम का क्या इतिहास है?
मालदा आम का नाम पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध जिले मालदा पर रखा गया है. इस जिले को "आम की नगरी" कहा जाता है. पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले में आम की खेती सदियों पुरानी है. ऐसा माना जाता है कि यहां के आम मुगल काल से लेकर अंग्रेजों के समय तक शाही दरबारों में भेजे जाते थे. मालदा आम शब्द का इस्तेमाल सिर्फ एक किस्म के लिए नहीं, बल्कि इस क्षेत्र में पैदा होने वाली कई बेहतरीन किस्मों के लिए होता है.
अल्फांसो आम का इतिहास क्या है?
अल्फांसो आम को स्थानीय भाषा में हापुस आम भी कहा जाता है, इसे भारत के महाराष्ट्र, गोवा, और कर्नाटक क्षेत्रों में उगाया जाता है. यह आम भारत में पुर्तगालियों की देन माना जाता है. 16वीं सदी में जब पुर्तगालियों ने भारत में व्यापार और उपनिवेश की शुरुआत की, तो वे साथ में कई विदेशी फल और पौधे भी लेकर आए. अल्फांसो डी अल्बुकर्क (Afonso de Albuquerque), एक प्रसिद्ध पुर्तगाली सैन्य कमांडर और भारत में पुर्तगाली शासन स्थापित करने वाले प्रमुख व्यक्तित्व थे. कहा जाता है कि उन्हीं के नाम पर इस खास किस्म के आम का नाम "अल्फांसो" रखा गया. पुर्तगालियों ने आम की पारंपरिक किस्मों में ग्राफ्टिंग (कलम विधि) द्वारा सुधार किया, जिससे अल्फांसो आम की बेहतरीन, रसीली और मीठी किस्म तैयार हुई.
सिंदूरी आम का इतिहास क्या है?
सिंदूरी आम भारत की एक लोकप्रिय किस्म है, जो अपने अनोखे रंग और बेहतरीन स्वाद के लिए जानी जाती है. इसका नाम "सिंदूरी" इसलिए पड़ा क्योंकि इसका रंग पकने पर बिल्कुल सिंदूर (हल्का लाल-नारंगी) जैसा दिखाई देता है. सिंदूरी आम की खेती मुख्य रूप से उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, और झारखंड में होती है. सिंदूरी आम का नाम उसकी रंगत और सुंदरता के कारण पड़ा. जब आम पकता है, तो उसका ऊपरी हिस्सा हल्का लाल या नारंगी हो जाता है, जो बिल्कुल सिंदूर जैसा चमकता है.
बैगनपल्ली आम का इतिहास क्या है?
बैगनपल्ली आम, जिसे कई जगह "बंगनपल्ली आम" या "सफेदा आम" भी कहा जाता है, दक्षिण भारत में बेहद लोकप्रिय है. इसका नाम आंध्र प्रदेश के नंद्याल जिले के बैगनपल्ली कस्बे पर रखा गया है. आंध्र प्रदेश के बैगनपल्ली (Banganapalle) कस्बे में इस किस्म के आम की खेती सबसे पहले बड़े पैमाने पर शुरू हुई. कहते हैं कि यह आम वहीं के स्थानीय राजाओं और नवाबों उगाया गया था. इसी कस्बे के नाम पर इसे "बैगनपल्ली आम" कहा जाने लगा.
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