संसद के मॉनसून सत्र में सरकार को घेरने की विपक्षी कवायद पहले से ही शुरू हो गई है. 21 जुलाई से शुरू होने जा रहे मॉनसून सेशन के लिए गर्मागर्म मुद्दा तो बिहार में वोटर लिस्ट से जुड़ा SIR ही है, लेकिन पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर का मामला अभी तक कांग्रेस की तरफ से खत्म नहीं हुआ है. क्योंकि, संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने की कांग्रेस की डिमांड ठुकरा कर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी ने जख्मों को भरने भी नहीं दिया है.
संसद में सरकार को घेरने के लिए जो हथियार तैयार किए जा रहे हैं, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में सैलानियों पर हुआ आतंकवादी हमला ज्यादा असरदार हो सकता है - और ऐसे माहौल में जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने का मामला भी काफी प्रभावी हो सकता है.
और यही वजह है कि राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने को लेकर पत्र लिखा है. राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं, और मल्लिकार्जुन खड़गे राज्यसभा में. संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग भी दोनों कांग्रेस नेताओं ने करीब करीब ऐसे ही की थी.
कांग्रेस ने उठाया जम्मू कश्मीर के स्टेटहुड का मुद्दा
मोदी के नाम प्रेषित कांग्रेस नेताओें ने पत्र में लिखा है, 'हम सरकार से गुजारिश करते हैं कि वो संसद के मॉनसून सत्र में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए विधेयक लाए. और, ‘हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वो केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए भी विधेयक लाए.'
मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने पत्र के जरिए कहा है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग जायज है. कांग्रेस नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी के दो इंटरव्यू का हवाला देते हुए याद दिलाया है कि कैसे सरकार की तरफ से कई मंचों से जम्मू-कश्मीर के लोगों से पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया गया है. लगे हाथ ये भी याद दिलाया है कि जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य है जिसे दो हिस्सों में बांटने के बाद केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है.
लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग
प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में कांग्रेस ने लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की है. असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्र पहले से ही शामिल हैं.
कांग्रेस का कहना है कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने से वहां के लोगों के लिए अपनी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करना आसान हो जाएगा, क्योंकि संविधान की छठी अनुसूची कुछ जनजातीय क्षेत्रों को विशेष दर्जा देती है, जिससे उनको अपने मामलों के प्रबंधन के लिए अधिक स्वायत्तता मिलती है.
कांग्रेस की मांग है कि सरकार लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए कानून लाए. ऐसा हो पाया, तो लद्दाख के लोगों की सांस्कृतिक, विकासोन्मुख और राजनीतिक आकांक्षाएं पूरा करने की दिशा में एक अहम कदम होगा, और उनके अधिकार, जमीन और उनकी पहचान की भी हिफाजत हो सकेगी.
कांग्रेस के लेटेस्ट डिमांड के मायने
संसद के स्पेशल सेशन की डिमांड तो नहीं पूरी हो सकी, लिहाजा अब मॉनसून सेशन में ही भरपाई की सारी कोशिशें हो पाएंगी. संसद में सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास मुद्दे तो बहुतेरे हैं, लेकिन पहलगाम अटैक और ऑपरेशन सिंदूर के बाद सीजफायर पर कांग्रेस को भड़ास निकालने का मौका अब तक नहीं मिल पाया है.
ऊपर से सरकार की तरफ से शशि थरूर के पॉलिटिकल हाइजैक की खुन्नस भी कांग्रेस नेतृत्व के मन में भरी पड़ी है - ऐसे में जम्मू-कश्मीर के स्टेटहुड का मामला ज्यादा माकूल लगा होगा.
जम्मू-कश्मीर का जिक्र आएगा, पहलगाम अटैक की बात आएगी ही. पहलगाम अटैक की बात होगी, तो ऑपरेशन सिंदूर की भी चर्चा होगी - और ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा होगी, तो सीजफायर पर हंगामा करने से कौन रोक पाएगा भला.
स्टेटहुड का मुद्दा उठाने का फायदा ये है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी साथ में खड़े हो गये हैं. कांग्रेस की डिमांड का स्वागत करते हुए उमर अब्दुल्ला ने राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का आभार जताया है.
EVM और INDIA के मुद्दे पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर देने वाले उमर अब्दुल्ला कहते हैं, हमें लंबे समय से इंतजार था कि विपक्ष संसद में हमारी आवाज उठाए… अब संसद में हमारी आवाज बुलंद होगी. ये अच्छी बात है, जम्मू कश्मीर के लोग लंबे समय से पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किए जाने की मांग कर रहे हैं.
कहने को तो कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के साथ सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा है, लेकिन सरकार में शामिल नहीं है. और, उमर अब्दुल्ला की तरफ से भी कभी कांग्रेस की परवाह नहीं देखी गई है - जम्मू-कश्मीर के स्टेटहुड का मुद्दा उठाकर कांग्रेस ने सूबे की सियासत में भी पांव जमाने की नये सिरे से प्रयास किया है.
देखना है कांग्रेस को संसद में विपक्ष का कितना सपोर्ट मिल पाता है, क्योंकि स्पेशल सेशन के मुद्दे पर तो शरद पवार और अरविंद केजरीवाल की पार्टियों ने हाथ पीछे खींच लिये थे - देखना है तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों का क्या रुख होता है.
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