तुर्की की परमाणु बम की हसरत हाल के सालों में वैश्विक भू-राजनीति के संदर्भ में चर्चा का विषय रही हैं. ईरान पर इजरायली और अमेरिकी हमले ने तुर्की की परमाणु बम की इच्छा को और भी बलवती कर दिया है. ईरान पर हुए हमले के बाद एक सर्वे में तुर्की के नागरिकों ने परमाणु बम की इच्छा को खुले रूप से जाहिर किया है.
ईरान पर तुर्की के हमले के बाद तुर्की की एजेंसी रिसर्च इस्तांबुल ने 1 से 15 जुलाई के बाद एक सर्वे किया. इसमें 71 प्रतिशत भागीदारों ने राय की दी कि अब समय गया है कि तुर्की को परमाणु बम विकसित करने के लिए काम शुरू कर देना चाहिए. जबकि 18 फीसदी लोगों ने परमाणु बम को जरूरी नहीं बताया.
वेबसाइट मिडिल आई में छपी खबर के अनुसार इस सर्वे में शामिल आधा लोग हमले की स्थिति तुर्की के एयर डिफेंस सिस्टम की जवाबी हमले की क्षमता पर संदेह करते हैं.
ये सर्वे बताता है कि ईरान पर हुए हमले के बाद तुर्की में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर अकुलाहट बढ़ी है.
परमाणु बम को लेकर क्या कहता है तुर्की का जनमत
तुर्की चाहता है कि उसके पास परमाणु क्षमता हो ताकि वह क्षेत्रीय तनावों में अपनी सैन्य ताकत दिखा सके और अपने विरोधी देशों जैसे इजराइल और पड़ोसी शक्तियों के खिलाफ मजबूत स्थिति में रहे. लेकिन तुर्की 1979 में परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर कर चुका है. तुर्की का ये कदम उसे वैधानिक रूप से परमाणु बमों को विकसित करने, हासिल करने या फिर टेस्ट करने से रोकता है.
लेकिन तुर्की का जनमत अब बदल रहा है. इस पोल में शामिल 71 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अंकारा को अब परमाणु बम हासिल करने के लिए काम शुरू कर देना चाहिए. इस शामिल में तुर्की भर से दो हजार लोगों ने राय दी थी.
बता दें कि एनपीटी के अलावा तुर्की नाटो का भी सदस्य है. अमेरिका ने तुर्की के इंजरलिक एयर बेस पर अपना सैन्य अड्डा बनाया हुआ है. विकीपीडिया समेत कई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस एयर बेस पर अमेरिका के लगभग 50 बी-61 परमाणु बम रखे गए हैं. अमेरिका का ये कदम नाटो की परमाणु साझेदारी रणनीति का हिस्सा हैं.
ये हथियार विशेष रूप से सुरक्षित भूमिगत स्टोर में रखे गए हैं और इनका उपयोग केवल अमेरिकी या नाटो की मंजूरी से ही संभव है. तुर्की के पास इनके लिए विशेष विमान या प्रशिक्षित पायलट नहीं हैं, इसलिए इनका उपयोग केवल अमेरिकी विमानों द्वारा ही किया जा सकता है.
तुर्की इस स्थिति से संतुष्ट नहीं है और एर्दोगान की सरकार परमाणु हथियार हासिल करने के लिए सक्रिय प्रयास कर रही है.
इस सर्वे में शामिल 71 फीसदी लोग मानते हैं कि अगर तुर्की पर हमला हुआ तो नाटो प्रभावी तरीके से अंकारा की रक्षा नहीं कर पाएगा.
इस्लामिक एटम बम की महात्वाकांक्षा
इसके अलावा तुर्की के इस्लामी दृष्टिकोण से भी यह महात्वाकांक्षा जुड़ी है. तुर्की के प्रभावशाली इस्लामी विद्वान विशेष रूप से हेरेतिन करमन जैसे प्रमुख धार्मिक विचारक तुर्की को परमाणु हथियार विकसित करने की सलाह देते हैं ताकि वह इजरायल को सैन्य रूप से काबू में कर सके और इस्लामी दुनिया के लिए अग्रणी नेतृत्व स्थापित कर सके.
करमन का मानना है कि वैश्विक परमाणु अप्रसार संधि उपनिवेशवादी मानसिकता पर आधारित है और तुर्की जैसे देश को इससे बाहर आकर अपनी सुरक्षा स्वयं सुनिश्चित करनी चाहिए.
यहां तुर्की और पाकिस्तान के सैन्य संबंधों की चर्चा जरूरी है. तुर्की ने पाकिस्तान को हथियार और ड्रोन सप्लाई कर उसके साथ सैन्य संबंध मजबूत किए हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि तुर्की परमाणु हथियारों के संदर्भ में पाकिस्तान से मदद ले सकते हैं. क्योंकि कई मोर्चे पर दोनों देशों के सामरिक हित मेल खाते हैं.
हालांकि तुर्की सरकार ने हाल के वर्षों में रक्षा उद्योग में भारी निवेश किया है फिर भी वायु रक्षा प्रणालियों को लेकर जनता का विश्वास कम ही है. सर्वेक्षण में शामिल लगभग आधे लोगों को हमले की स्थिति में तुर्की की वायु रक्षा प्रणालियों की प्रभावशीलता पर संदेह है.
ईरानी बैलिस्टिक मिसाइलों द्वारा इज़राइल की एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम को भेदने और उन्हें भारी नुकसान पहुंचाने में हाल ही में मिली सफलता ने तुर्की के भीतर देश की अपनी रक्षात्मक क्षमताओं को लेकर बहस को और तेज कर दिया है.
मिडिल ईस्ट आई में छपी रिपोर्ट में लंदन मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर एर्डी ओज़टर्क ने कहा कि ये निष्कर्ष मध्य पूर्व, बाल्कन और काकेशस में बढ़ते क्षेत्रीय संघर्षों के बीच लोगों की बढ़ती चिंता को दर्शाते हैं.
प्रोफ़ेसर ओज़टर्क ने कहा, "बाहरी ख़तरे की व्यापक भावना तुर्की समाज को उन सुरक्षा उपायों पर विचार करने के लिए प्रेरित कर रही है जो पहले वर्जित थे इनमें परमाणु अवरोध का विकल्प भी शामिल है."
ओज़टर्क ने आगे कहा कि लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक विभाजन के बावजूद सुरक्षा संबंधी चिंताएं तुर्की समाज को एक समान मानसिकता के इर्द-गिर्द एकजुट कर रही हैं.
तुर्की का सिविल न्यूक्लियर प्लांट तैयार होने वाला है
तुर्की वर्तमान में रूस की रोसाटॉम कंपनी के साथ साझेदारी में अपना पहला असैन्य परमाणु ऊर्जा संयंत्र, अक्कुयु, बना रहा है. 20 अरब डॉलर की लागत वाले इस संयंत्र में चार रिएक्टर होंगे जिनकी संयुक्त क्षमता 4,800 मेगावाट होगी. अगले साल चालू होने पर यह तुर्की की लगभग 10 प्रतिशत बिजली की जरूरतों को पूरा करेगा.
इजरायल की मीडिया जैसे कि हायोम अखबार का दावा है कि तुर्की स्वतंत्र रूप से यूरेनियम एनरिचमेंट पर जोर दे रहा है जो परमाणु हथियार विकास की ओर इशारा करता है. हालांकि तुर्की ने आधिकारिक तौर पर परमाणु हथियार कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है. हालांकि राष्ट्रपति एर्दोगन ने कहा है कि वह इस क्षेत्र में केवल इजरायल के पास परमाणु हथियार होने को स्वीकार नहीं करते.
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