प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन ने साल 2024 तक हर ग्रामीण घर में स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने का वादा किया था. लेकिन छत्तीसगढ़ में यह योजना कागजी भ्रष्टाचार का एक शानदार उदाहरण बन गई है. योजना पर अब तक 11,600 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, फिर भी नल सूखे पड़े हैं और ग्रामीण पानी के लिए मीलों पैदल चल रहे हैं.
2024 तक पानी पहुंचाने का था लक्ष्य
आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट कागजों पर दिखाई गई जानकारी और ग्रामीणों को मिल रही वास्तविक मदद के बीच के अंतर को साफ तौर पर उजागर करती है. साल 2019 में लॉन्च किए गए जल जीवन मिशन का मकसद साल 2024 तक हर ग्रामीण घर में पाइप से पानी मुहैया कराना था. छत्तीसगढ़ में सरकारी रिकॉर्ड का दावा है कि पिछली कांग्रेस सरकार के तहत 80% से ज्यादा काम 2022 और 2024 के बीच पूरा हो गया है.
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जमीनी हकीकत कुछ और कहानी बयां करती है. आजतक की पड़ताल के मुताबिक वास्तव में सिर्फ 17.5 फीसदी काम ही पूरा हुआ है. सरगुजा जिला अब भी साफ पेयजल की पहुंच से दूर है, जहां टूटे नल और सूखे टैंक इसकी गवाही देते हुए नजर आ रहे हैं. उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा में 569 गांवों में से सिर्फ 14 गांवों में ही नलों से पानी पहुंच रहा है, जो कि सिर्फ 2.5 फीसदी कवरेज है.
पाइप लाइन बिछी, पानी नहीं आया
मध्य छत्तीसगढ़ का हाल भी सरगुजा से अलग नहीं है. इस इलाके में पाइप लाइन तो बिछाई गई, लेकिन कोई टैंक या बोरवेल नहीं लगाया गया. मध्य छत्तीसगढ़ के कई गांवों में पाइप लाइन बिछाने के बावजूद पानी का कोई सोर्स नहीं है. यहां न तो बोरवेल है, न ही वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, सिर्फ खानापूर्ति के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर दिया गया है.
धमतरी के बिजनपुरी गांव के लोग आज भी बर्तनों में भरकर पानी ले जाने को मजबूर हैं. कीचड़ से सने कुएं से पानी ले जाती महिलाएं जल जीवन मिशन की सच्चाई को बताने के लिए काफी हैं. बिजनापुरी गांव में 1000 से ज़्यादा लोग रहते हैं, यहां महिलाएं आज भी पानी लाने के लिए घंटों पैदल चलती हैं. गांव में सिर्फ दो ही चालू पानी के स्रोत हैं. इस बीच दस्तावेज़ों से पता चलता है कि इस इलाके में 100% पानी की सप्लाई हो रही है.
बड़ी रकम खर्च, नतीजे शून्य
छत्तीसगढ़ में जल जीवन मिशन के तहत खर्च हुई 11 हजार करोड़ की रकम का ज्यादातर हिस्सा 2022 और 2024 के बीच खर्च हुआ था, जो कि 60% से भी अधिक है. लेकिन नतीजे इस भारी भरकम रकम की तुलना में काफी कम हैं. इलाके के ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने नलों से पानी आते कभी नहीं देखा. साथ ही कुछ लोगों ने बताया कि पाइप तो बिछ गए हैं, लेकिन पानी कहां है? हर दिन दो-दो घंटे पानी के लिए जाना पड़ता है. राजनांदगांव जिले में भी स्थिति गंभीर बनी हुई है, जहां डोमा टोला पंचायत के बुंदेलीकला गांव में लोग अब नाउम्मीद हो गए हैं.
दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश की कई कंपनियों को ठेके दिए गए, जिनमें से कई को पाइप लाइन निर्माण में बहुत कम या कोई विशेषज्ञता नहीं थी. सूत्रों का दावा है कि इन कंपनियों का चयन उचित तकनीकी जांच के बिना किया गया था.
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पीएचई विभाग का दावा है कि 50 फीसदी गांवों को कवर कर लिया गया है. लेकिन क्षेत्रीय दौरे इन दावों का खंडन करते हैं. पूर्व लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गुरु रुद्र गुरु ने योजना के इस फेज की देखरेख की थी. साल 2024 तक काम पूरा होने की मूल समय-सीमा के साथ, नई सरकार के सामने विश्वसनीयता की एक बड़ी चुनौती है. क्या वह खर्च किए गए ₹11,600 करोड़ की जांच करेगी? क्या जवाबदेही तय की जाएगी, या यह भी कागजी कार्रवाई में दब जाएगा?
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