दिमाग में कौन सा खलल चोरी के लिए उकसाता है, अमेरिका में बड़ी आबादी जूझ रही

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कुछ रोज पहले अमेरिका से एक वीडियो फैली, जिसमें एक भारतीय महिला पर दुकान से सामान चुराने का आरोप लगा. महिला ठीक-ठाक समृद्ध दिख रही है और अपनी सफाई में हर्जाना भरने की बात भी कर रही है. घटना को लेकर भारतीय आदतों को घेरा जा रहा है. वहीं अध्ययन कहते हैं कि भारत नहीं, बल्कि अमीर देशों में शॉपलिफ्टिंग के मामले सबसे ज्यादा रिपोर्ट होते रहे. तो क्या शॉपलिफ्टिंग सामान्य चोरी से कुछ अलग चीज है और क्या इसका जरूरत या अमीरी-गरीबी से कोई संबंध नहीं!

किस मामले की हो रही चर्चा

अमेरिका के इलिनॉय में एक इंडियन महिला पर स्टोर से एक लाख कीमत का सामान चोरी करने का आरोप लगा. स्थानीय पुलिस का कहना है कि महिला ने प्रेग्नेंट होने की बात कहते हुए दुकान में कई घंटे बिताए और फेक प्रेग्नेंसी की आड़ में बिना पेमेंट बाहर निकलना चाहा. वैसे तो ये घटना पुरानी है लेकिन वीडियो हाल में वायरल हुआ. कुछ समय पहले टेक्सास में भी एक भारतीय स्टूडेंट पर इसी तरह का आरोप लगा. इसका असर देश की छवि पर हो सकता है, बल्कि होने ही लगा है. चोरी को लेकर उन्हें ट्रोल किया जा रहा है. 

शॉपलिफ्टिंग पर हुए अध्ययन हालांकि कुछ और कहते हैं. नेशनल एसोसिएशन फॉर शॉपलिफ्टिंग प्रिवेंशन (एनएएसपी) के मुताबिक, हर 11वें अमेरिकी ने कभी न कभी बिना कीमत चुकाए दुकान से कुछ न कुछ उठाया होगा. रिपोर्ट ये भी कहती है कि 75 फीसदी शॉपलिफ्टर ऐसा किसी प्लानिंग के तहत नहीं करते, बल्कि बिना सोचे-समझे बस कर जाते हैं. 

shoplifting cases in america (Representational Photo- Unsplash) विकसित देशों में शॉपलिफ्टिंग ज्यादा बड़ी समस्या है. (Representational Photo- Unsplash)

अमेरिका ही नहीं, कई पश्चिमी देशों में यह आम समस्या रही. मसलन, यूके को ही लें तो पिछले साल वहां दुकान से चोरी के मामले रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए थे. ब्रिटिश रिटेल कंसोर्टियम का कहना है कि इससे होने वाला सालाना नुकसान 18000 करोड़ से ऊपर चला जाता है. जर्मनी, स्विट्जरलैंड और बेहद ईमानदार कहलाते जापान में भी शॉपलिफ्टिंग का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. 

क्या है इस टर्म का मतलब

शॉपलिफ्टिंग का मतलब है किसी दुकान से सामान चुरा लेना, भले ही आपकी जेब में पैसे हों. लोग ग्राहक होने का दिखावा करते हुए सामान उठाते और चुपचाप निकल जाते हैं. ये हर बार बीमारी नहीं, लेकिन कुछ मामलों में इसे मानसिक स्थिति से भी जोड़ा जाता है. इसे क्लेप्टोमेनिया कहते हैं. यह एक तरह का मनोवैज्ञानिक डिसऑर्डर है जिसमें प्रभावित व्यक्ति को कुछ भी चुराने की तेज इच्छा होने लगे.

महिलाओं की बीमारी कहा गया 

19वीं सदी में फ्रांस की बेहद अमीर घरानों की महिलाएं दुकानों से या दूसरों से घरों पर छुटपुट सामान चुराती पकड़ी गईं. इसके बाद इसे लेडीज डिजीज कहा जाने लगा ताकि अमीर घरों की महिलाओं को कोई सजा न हो, लेकिन फिर ये आदत पुरुषों में भी दिखी. तब जाकर इसपर कुछ रिसर्च हुई और क्लेप्टोमेनिया का भेद खुला. यह एक तरह का इम्पल्स कंट्रोल डिसऑर्डर है, जिसमें पीड़ित का दिमाग कुछ चुरा लेने की तरफ जाता है. 

CCTV to stop theft (Photo- Unsplash) अलग-अलग देशों में शॉपलिफ्टिंग पर लगाम के लिए अलग सजाएं हैं. (Photo- Unsplash)

शॉपलिफ्टिंग हालांकि क्लेप्टोमेनिया से थोड़ी अलग बात है. ये कैलकुलेटेड मूव होता है, जिसमें किसी का नुकसान या खुद को फायदा पहुंचाने की मंशा हो. कई बार लोग एड्रेनलिन रश के लिए भी ऐसा कर जाते हैं, जिससे थोड़ी देर के लिए उनका मूड बढ़िया हो जाए.

दरअसल ये एक तरह का कोपिंग मेकेनिज्म है, जिसमें किसी तनाव को दूर करने के लिए लोग छुटपुट अपराध कर जाते हैं. यह खालीपन को भरने का अपना तरीका है. जैसे कुछ लोग ज्यादा खाने लगते हैं, या कुछ लोग नशा करने लगते हैं, वैसे ही कुछ लोग चोरी करने लगते हैं. बाद में उन्हें इसका पछतावा भी होता है. 

तो क्या शॉपलिफ्टिंग चोरी नहीं

मूल रूप से तो ये भी चोरी का ही एक रूप है, लेकिन दोनों के इरादों और तरीकों में फर्क होता है. चोर कहीं से भी, और कितनी भी बड़ी चोरी कर डालता है और लगातार करता रहता है. वहीं शॉपलिफ्टर दुकानों से सामान चुराते हैं और एड्रेनलिन रश कम होने पर पछताते भी हैं. 

अमेरिका में शॉपलिफ्टिंग को मामूली अपराध की कैटेगरी में रखा जाता है. अलग-अलग राज्यों में इसकी सजा अलग है. लेकिन बहुत बार छोटी चोरी पर सिर्फ चेतावनी देकर ही छोड़ दिया जाता है. यूके में यह थेफ्ट अंडर द थेफ्ट एक्ट के तहत आता है और जुर्माने के बाद चोर जा सकता है. वहीं कई देशों में पहली बार पकड़ाने पर काउंसलिंग या कम्युनिटी सर्विस जैसी बातें भी होती हैं ताकि आदत छूट सके. अगर आरोपी क्लेप्टोमेनिया से जूझ रहा हो तो कोर्ट उसे राहत देते हुए इलाज भी दिलवा सकती है. 

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