फडणवीस के ऑफर पर उद्धव की बंद कमरे में मुलाकात, राजनीतिक मजाक भी सीरियस हो जाते हैं

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उद्धव ठाकरे ने तो देवेंद्र फडणवीस के ऑफर को ‘मजाक’ करार दिया था, लेकिन मजाक-मजाक में ही मिल भी लिये. और मिले भी पूरे लाव-लश्कर के साथ. बेटा भी साथ में था, और कई विधायक भी. अब ये सब सिर्फ मजाक था, या पूरे 20 मिनट तक हंसी-मजाक का दौर चलता रहा, ये तो वहां मौजूद लोग ही जानते होंगे. 

मुलाकातें तो ऐसी 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद भी होती रहीं. किसानों का मुद्दा बताते हुए महाराष्ट्र के तमाम नेता तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिल आये थे. और एक बार तो शरद पवार भी किसानों के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल आये थे.

उद्धव ठाकरे पक्ष की मानें तो देवेंद्र फडणवीस के साथ भी मुलाकात उसी मुद्दे पर हुई है, जिस मुद्दे पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नेता राज ठाकरे मातोश्री के थोड़े करीब आये हैं. ये मुद्दा है, हिंदी थोपे जाने और मराठी भाषा का. शिवसेना (UBT) की तरफ से बताया गया है कि मुलाकात का मकसद महाराष्ट्र में तीसरी भाषा के विचार और हिंदी थोपे जाने के विरोध से जुड़ा था. 

एक बार तो ऐसे ही अजित पवार ने कुछ घंटे के लिए देवेंद्र फडणवीस के साथ गठबंधन की सरकार भी बना ली थी. बीजेपी के सहयोग के बदले उनको उनकी पसंदीदा डिप्टी की कुर्सी भी मिल गई थी. और वैसे ही जिन बातों को उद्धव ठाकरे मजाक मानकर चल रहे थे, उसकी गंभीरता तब सामने आई जब अचानक मालूम हुआ कि एकनाथ शिंदे बागी विधायकों के साथ मुंबई छोड़ दिया है. शरद पवार ने एक बार कहा भी था कि उद्धव ठाकरे को उन्होंने पहले आगाह करने की कोशिश भी की थी, लेकिन वो अनसुना कर दिये थे. 

मजाक कब गंभीर हो जाये, कहा नहीं जा सकता. ये सब उद्धव ठाकरे, और शरद पवार भी, से बेहतर भला कौन समझ सकता है. जरूरत तो उद्धव ठाकरे को भी है, और कुछ हद तक अब देवेंद्र फडणवीस को भी - मुश्किलें तो एकनाथ शिंदे की बढ़ने वाली हैं. 

‘मजाक’ के बाद की मुलाकात कैसी होती है?

मजाक की बात यहां इसलिए हो रही है, क्योंकि देवेंद्र फडणवीस के ऑफर को उद्धव ठाकरे ने ऐसा ही बताया था. देवेंद्र फडणवीस ने कहा था, 'देखिए उद्धव जी, 2029 तक हमारे वहां (विपक्ष में) आने का कोई स्कोप नहीं है... लेकिन,  आप यहां (सत्ता पक्ष) आ सकते हैं, इस पर विचार किया जा सकता है… हम अलग तरह से विचार कर सकते हैं… लेकिन, हम वहां जाएं ये ऑप्शन बचा नहीं है.'

मजाक के पीछे अगर कोई खास मंशा न हो तो मुलाकात अच्छी ही होती है. और, जिस तरह की खबरें आ रही हैं, अभी तो ये मुलाकात अच्छी ही लग रही है. क्योंकि, ऐसा होने के कई कारण हैं. और सबसे बड़े कारण एमएनएस नेता राज ठाकरे और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे हैं.

1. पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र के मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की बंद कमरे में मुलाकात करीब 20 मिनट तक हुई. 

2. ये बैठक विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कक्ष में हुई है.

3. मीटिंग में देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे के अलावा आदित्य ठाकरे और उनके कई साथी विधायक शामिल थे.

4. उद्धव ठाकरे ने बैठक में देवेंद्र फडणवीस को एक किताब भेंट की, जिसका नाम 'Why Should Hindi Be Imposed?' बताया गया है. 

5. उद्धव ठाकरे का आग्रह था कि मुख्यमंत्री ये किताब ​थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी की समीक्षा के लिए उनकी बनाई हुई समिति के अध्यक्ष नरेंद्र जाधव को सौंप दें. 

6. बताते हैं कि ये बैठक  विवादास्पद त्रिभाषा नीति और विधानसभा में विपक्ष के नेता की नियुक्ति को लेकर हुई है. 

7. शिवसेना (यूबीटी) की तरफ से बताया गया है कि विधान परिषद के चेयरमैन ऑफिस में देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे की मुलाकात का मकसद महाराष्ट्र में तीसरी भाषा और हिंदी थोपे जाने का विरोध करने वाले समाचार पत्रों के लेखों का एक संग्रह देना था.

क्या एकनाथ शिंदे की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र हाल फिलहाल जो भी हो रहा है, ये सारी गतिविधियां एकनाथ शिंदे के खिलाफ जा रही हैं. एकनाथ शिंदे तकनीकी रूप से असली शिवसेना के नेता हैं, जिसकी राजनीति में एंट्री ही मराठी मानुष के मुद्दे के साथ हुई थी, और मराठी बनाम हिंदी के मौजूदा विवाद में वो पूरी तरह मौन नजर आ रहे हैं - और, ये मौन एकनाथ शिंदे की राजनीति के लिए बहुत खतरनाक है. 

असल में एकनाथ शिंदे के जरिये बीजेपी को जो हासिल होना था, हो चुका है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद एकनाथ शिंदे की जरूरत बीजेपी के लिए खत्म हो चुकी है. अब वो सिर्फ ढो रही है. वो भी बेमन से. 

एकनाथ शिंदे की छटपटाहट बीजेपी भी समझ रही है. दिल्ली में बीजेपी नेता अमित शाह के साथ एकनाथ शिंदे की हाल की मुलाकात भी उसी का हिस्सा है - और पहली बार उद्धव ठाकरे को देवेंद्र फडणवीस की तरफ से दिए गए ऑफर का मकसद भी छुटकाना पाना ही लगता है. 

देवेंद्र फडणवीस बीएमसी सहित महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव से पहले एकनाथ शिंदे को उनकी हद में रखने का ठोस उपाय खोज रहे हैं - अब उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस का नया संवाद किसी नतीजे पर पहुंचे न पहुंचे, लेकिन अगर एकनाथ शिंदे टेंशन में आते हैं, तो दोनों को भी खेल में मजा आएगा. 

अब सवाल ये है कि देवेंद्र फडणवीस पर लगातार बरसते रहने वाले उद्धव ठाकरे क्या फिर से बीजेपी से हाथ मिलाने को तैयार होंगे?

संभावना इसलिए बन रही है, उद्धव ठाकरे के मन में क्या चल रहा है. उद्धव ठाकरे किसे बड़ा दुश्मन मानते हैं - देवेंद्र फडणवीस को या एकनाथ शिंदे को?

निश्चित तौर पर देवेंद्र फडणवीस शिवसेना की बर्बादी के सूत्रधार हो सकते हैं, लेकिन धोखा तो एकनाथ शिंदे ने ही दिया है. 

और गुस्सा तो देवेंद्र फडणवीस के मन भी है ही - पांच साल मुख्यमंत्री रहने के बाद एकनाथ शिंदे के डिप्टी सीएम के रूप में एक एक दिन काटना कितना मुश्किल रहा होगा, वही जानते होंगे.

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