2022 में उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने एक शिगूफा छोड़ दिया था. और, देखते ही देखते मीडिया से लेकर सत्ता के गलियारों तक, नीतीश कुमार के देश का उपराष्ट्रपति बनने की चर्चा होने लगी थी. बीजेपी की तरफ से उनके लिए उपराष्ट्रपति पद मुख्यमंत्री के एक्सचेंज ऑफर के रूप में होती - मजे की बात ये है कि एक बार फिर ऐसी ही चर्चा चलने लगी है.
तब नीतीश कुमार ने एक दिन पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में एक बार राज्यसभा जाने की इच्छा जाहिर कर दी थी. असल में, वो बता रहे थे कि हर सदन के सदस्य बन चुके हैं, बस राज्यसभा बची हुई है. और, उनकी ऐसी इच्छा भी है. नीतीश कुमार के बयान पर काफी राजनीतिक प्रतिक्रिया भी हुई थी.
उपराष्ट्रपति के पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद चुनाव आयोग नये उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया भी शुरू कर चुका है. रेस में नीतीश कुमार के साथ साथ राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा तक की चर्चा चल रही है.
अगर नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति बन जाते हैं!
फर्ज कीजिये नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति बन जाते हैं, तो सबसे ज्यादा खुशी किसे होगी - और कौन राहत की सांस लेगा?
अगर ऐसा संभव हो सका तो सबसे ज्यादा राहत लालू परिवार महसूस करेगा. क्योंकि, नीतीश कुमार ही तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने के सपने में दीवार बने हुए हैं. हाल के सर्वे में लोकप्रियता के मामले में तेजस्वी यादव आगे जरूर चल रहे हैं, लेकिन हालात अब भी नीतीश कुमार के पक्ष में ही हैं. क्योंकि केंद्र की बीजेपी सरकार भी उनके सपोर्ट से ही चल रही है, और बिहार में भी बीजेपी साथ साथ मैदान में डटी हुई है.
रही बात खुशी की, तो ऐसा अनुभव बीजेपी को हो सकता है. नीतीश कुमार के कुंडली मारकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाने के बाद से बीजेपी को कोई उपाय नहीं सूझ रहा है. मजबूरी में नीतीश कुमार को आगे करके सत्ता की राजनीति करनी पड़ रही है.
अगर कांग्रेस और गांधी परिवार की बात करें, तो नीतीश कुमार के उपराष्ट्रपति बनने या न बन पाने से उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है - क्योंकि, कांग्रेस को दिक्कत तो नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनने से ही है. कांग्रेस में प्रधानमंत्री का पद तो गांधी परिवार के वारिस होने के हिसाब से राहुल गांधी के लिए ही सुरक्षित है.
नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति क्यों नहीं बन सकते?
नीतीश कुमार के उपराष्ट्रपति बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा उनकी सेहत बन रही है. उनकी सेहत पर हमला बोलते हुए तेजस्वी यादव उनको अचेत मुख्यमंत्री कह कर संबोधित कर रहे हैं - और खुद नीतीश कुमार भी अपनी तरफ से कई मौकों पर ऐसी झलकियां पेश कर रहे हैं जिन्हें देखकर किसी के भी मन में शंका पैदा हो सकती है. कोई पौधा भेंट करता है, तो वो गमला ही उसके सिर पर रख देते हैं. मोदी से लेकर बीजेपी नेताओं के पैर छूने को बार बार दौड़ जाते हैं. ऐसे और भी कई वाकये हैं, जो उनके तंदुरूस्त होने पर शक पैदा करते हैं.
वैसे नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार और जेडीयू नेताओं की तरफ से बार बार यही बताया जाता है कि वो पूरी तरह तंदुरूस्त हैं. लेकिन, हर कुछ दिन बाद नीतीश कुमार ऐसा कुछ कर देते हैं कि उनके बेटे और साथी नेताओं के दावे कमजोर पड़ जाते हैं.
देखा जाये तो मुख्यमंत्री के कामकाज और उपराष्ट्रपति की कार्यशैली में काफी फर्क है. जिम्मेदारियों के हिसाब से देखें तो मुख्यमंत्री के पास ज्यादा काम और जवाबदेही है. अगर सपोर्ट स्टाफ की बात करें, तो मुख्यमंत्री और उपराष्ट्रपति दोनों की मदद के लिए ये सुविधा होती है - लेकिन दोनों के कामकाज में एक बुनियादी फर्क भी है.
मुख्यमंत्री के कामकाज की निगरानी के लिए नौकरशाहों से लेकर सरकारी कर्मचारियों की बहुत बड़ी सी टीम होती है. ज्यादातर काम ऑटोमेशन वाले मोड में भी चलते रहते हैं. नई योजनाएं और राजनीतिक फैसलों के लिए ही मुख्यमंत्री को खुद पहल करने की जरूरत होती है. लेकिन, उपराष्ट्रपति के मामले में ऐसा संभव नहीं है - खासकर तब जब संसद का सत्र चलता हो.
देश का उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा का पदेन सभापति होता है. बतौर सभापति उपराष्ट्रपति को राज्यसभा की कार्यवाही भी देखनी होती है. बिल्कुल वैसे ही जैसे लोकसभा में स्पीकर का काम होता है.
आम दिनों में तो नहीं, लेकिन संसद सत्र के दौरान उपराष्ट्रपति को सभापति की भूमिका में हर वक्त अलर्ट रहना होता है, वो भी तब जब पूरा देश लाइव टीवी पर देख रहा होता है. और नीतीश कुमार, बीते दिनों में जैसा व्यवहार कर चुके हैं - भला कौन जोखिम उठाना चाहेगा.
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