प्रत्यर्पण संधि के बावजूद हाई प्रोफाइल अपराधियों को लौटाने से कब मना कर देते हैं देश?

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पंजाब नेशनल बैंक के लगभग 14000 करोड़ के फ्रॉड के आरोपी और भगोड़े व्यापारी मेहुल चोकसी को बेल्जियम से भारत लाने की कोशिश चल रही है. इस बीच केंद्र ने बेल्जियम सरकार को एक पत्र में बताया कि आरोपी को मुंबई के आर्थर रोड जेल के बैरक नंबर 12 में रखा जाएगा. वहां उसे साफ बिस्तर और खाने के अलावा खेलकूद और मनोरंजन की सुविधा भी मिलेगी.

बेल्जियम और भारत के बीच द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि है, और चोकसी भारतीय आरोपी है. ऐसे में बेल्जियम से उसे लौटाने के लिए क्यों भारत सरकार को डिटेल्ड चिट्ठी लिखनी पड़ रही है?

क्या संधि में ऐसा कोई नियम है, जो कैदियों के मानवाधिकार की गारंटी चाहता है, और अगर वो न दिखे तो आरोपी को भेजने से इनकार किया जा सकता है?

चिट्टी में दिया मानवीय व्यवहार और सुविधाओं का आश्वासन

इसी महीने की शुरुआत में जारी लेटर में मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स ने बेल्जियम प्रशासन को एक चिट्ठी के जरिए भरोसा दिलाया कि अगर चोकसी को भारत भेजा गया तो उसे आर्थर जेल में सारी जरूरी सुविधाएं मिलेंगी. पत्र में काफी डिटेल में बताया गया कि कमरे में कितना स्पेस होगा, कितना फर्निचर होगा और चोकसी को व्यायाम के लिए कितना समय मिलेगा. इससे पहले शराब कारोबारी विजय माल्या के मामले पर भी भारत सरकार ने ब्रिटेन को आश्वासन दिया था कि जेल में माल्या बिल्कुल सुरक्षित रहेगा. 

दरअसल, देश में अपराध करके दूसरे देशों में रह रहे कई आरोपी और अपराधी हैं, जिन्होंने तर्क दिया कि भारत की जेलें उनके लिए सुरक्षित नहीं. वहां लौटाए जाने पर उन्हें हिंसा का सामना करना पड़ेगा और जान का भी खतरा हो सकता है. मिसाल के तौर पर, आर्म्स डीलर संजय भंडारी यूके में हैं. भंडारी के वकीलों ने दावा किया कि अगर उसे भारत भेजा जाए तो दिल्ली की तिहाड़ जेल में उसपर हिंसा हो सकती है. इसके तुरंत बाद भारत सरकार ने सुरक्षा का आश्वासन देते हुए बताया था कि भंडारी की सेल के बाहर हर वक्त गार्ड होंगे, साथ ही CCTV सुविधा भी होगी. इसके बाद भी यूके कोर्ट ने आश्वासन को ठुकरा दिया. 

Mehul Choksi extradition (Photo- ANI)मेहुल समेत आर्थिक गबन करके भागे कई अपराधी विदेशों में रह रहे हैं. (Photo- ANI)

अब तक कितने भगोड़े लौटाए गए

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2002 से अब तक भारत के पास अलग-अलग देशों से 66 भगोड़े लौटाए गए. इनमें सबसे ज्यादा यूएई और फिर यूएस से लौटे. वहीं यूके से अब तक सिर्फ एक भगोड़ा प्रत्यर्पण के तहत वापस लौटाया गया. 

अब हालांकि हाई प्रोफाइल आरोपियों के प्रत्यर्पण की सुगबुहाहट तेज होती दिख रही है.

जुलाई में ब्रिटिश क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस की एक टीम तिहाड़ आई थी ताकि जेल की स्थिति और कैदियों को सुरक्षा को समझ सके. इस दौरान टीम ने हाई सिक्योरिटी वार्ड्स में कई कैदियों से बात भी की. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चूंकि भारत लगातार माल्या, भंडारी और नीरव मोदी जैसे फ्रॉड के आरोपियों को वापस लौटाने की मांग कर रहा है, इसलिए ही टीम ने जेल दौरा किया.

कब पड़ती है प्रत्यर्पण की जरूरत  

अक्सर अपने यहां अपराध करके आरोपी दूसरे देश भाग जाते हैं. इससे अव्वल तो उसे खोजने में मुश्किल आती है. दूसरा, अगर पता लग भी जाए तो वापस लाना आसान नहीं होता. हर देश का कानून अलग होता है और अपने यहां रहते हुए लोगों को देश आसानी से दूसरों को नहीं सौंप देते. इसे ही ठीक करने के लिए प्रत्यर्पण संधियां हुईं. इसके तहत दो देशों के बीच एग्रीमेंट होता है कि अगर उनका कोई आरोपी या अपराधी दूसरे देश पहुंच जाए, तो उसे वापस भेज दिया जाए. मिसाल के तौर पर अगर कोई अपराध करके भारत से ब्रिटेन चला जाए, और भारत उसकी वापसी चाहे तो ब्रिटिश सरकार उसकी बात मान सकती है. 

tihar jail (File Photo)हाल में एक ब्रिटिश टीम तिहाड़ जेल की व्यवस्था देखने आई. (File Photo)

कई बार देश इससे इनकार भी कर जाते हैं

अगर आरोपी कहे कि जिस देश में उसे भेजा जा रहा है वहां की जेलों में मानवाधिकार उल्लंघन होता है, तब वापसी टल सकती है. असल में, ज्यादातर देशों के कानून और इंटरनेशनल नियम कहते हैं कि किसी शख्स को ऐसे देश में न भेजा जाए, जहां उसकी जिंदगी या बुनियादी अधिकार खतरे में पड़ सकते हों. यूरोपियन कन्वेंशन ऑन ह्यूमन राइट्स में साफ है कि किसी अपराधी को भी ऐसे देश में नहीं भेजा जाएगा, जहां उसके साथ अमानवीय व्यवहार होने का डर हो. 

लेकिन आरोपी का बस डर जता देना काफी नहीं. ये साबित भी करना होता है. भारत से भागे अपराधियों के लिए सबसे आसान है, जेलों के खराब हाल की आड़ लेना. वे नए-पुराने डेटा के हवाले से या जेलों में मौत या मारपीट जैसी खबरों के हवाले से दोहराते हैं कि जेलों की स्थिति खराब है और वहां उनकी जिंदगी खतरे में आ जाएगी. 

कई बार अपराधी ये दावा करते हैं कि उन्हें राजनीतिक वजहों से ट्रैप किया जा रहा है और लौटने पर फेयर ट्रायल नहीं होगा, बल्कि उन्हें हमेशा के लिए कैद कर दिया जाएगा. तब भी प्रत्यर्पण का मामला अटक सकता है. 

संधि के आर्टिकल 5 के मुताबिक, गेस्ट देश किसी ऐसे आरोपी को भी लौटाने से मना कर सकता है जिसकी उम्र काफी कम हो. लेकिन कई बार अपने आपसी हितों को देखते हुए देश इसे नजरअंदाज कर अपराधी या आरोपी को वापस लौटा भी देते हैं.

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