भारत अपनी नौसेना की क्षमताओं को मजबूत करने के लिए दो बड़ी पनडुब्बी डील अंतिम रूप देने जा रहा है, जिनकी कुल लागत 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है. यह कदम चीन की बढ़ती समुद्री ताकत के बीच उठाया जा रहा है. अगले साल के मध्य तक ये डील फाइनल हो सकती हैं.
पहली डील तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की है, जो मुंबई के मझगांव डॉक लिमिटेड (MDL) और फ्रांस की नेवल ग्रुप के साथ संयुक्त रूप से बनाई जाएंगी. दूसरी डील छह डीजल-इलेक्ट्रिक स्टेल्थ पनडुब्बियों की है, जो जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS) के साथ MDL द्वारा बनेगी. ये डील नौसेना की अंडरवाटर वॉरफेयर क्षमता को बढ़ाएंगी.
यह भी पढ़ें: मोदी-जिनपिंग मुलाकात के बाद क्या अब बॉर्डर विवाद पर बदलेगी बातचीत की दिशा?
पहली डील: तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियां (लागत लगभग 36,000 करोड़ रुपये)
यह डील प्रोजेक्ट 75 का फॉलो-ऑन ऑर्डर है. 2023 में रक्षा मंत्रालय ने इसकी मंजूरी दी थी, लेकिन तकनीकी और व्यावसायिक मुद्दों पर बातचीत में देरी हुई.
- निर्माण: भारत की MDL और फ्रांस की नेवल ग्रुप के साथ संयुक्त रूप से मुंबई में बनेगी. पहले प्रोजेक्ट 75 के तहत MDL ने नेवल ग्रुप के सहयोग से छह स्कॉर्पीन (कलवारी क्लास) पनडुब्बियां बनाईं, जिनमें INS कलवारी, खंडेरी, करंज, वेला, वागीर और वागशीर शामिल हैं. आखिरी वाली जनवरी 2025 में कमीशन हुई.
- विशेषताएं: ये डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक पनडुब्बियां हैं, जो 1500 टन वजनी और 75 मीटर लंबी हैं. एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सिस्टम से लैस, जो 21 दिनों तक पानी के नीचे रहने की क्षमता देता है.
- हथियार: टॉरपीडो, एंटी-शिप मिसाइलें और माइन.
- महत्व: नौसेना की पुरानी पनडुब्बियों (रूसी किलो क्लास) को बदलेंगी. चीन की बढ़ती नौसेना (साउथ चाइना सी में) के खिलाफ हिंद महासागर में ताकत बढ़ाएंगी.
- समयसीमा: कॉन्ट्रैक्ट अगले साल की शुरुआत में साइन हो सकता है. पहली पनडुब्बी डिलीवरी कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के 6 साल बाद. व्यावसायिक बातचीत लगभग पूरी, लेकिन देरी से नौसेना चिंतित.
यह भी पढ़ें: 2 महीने में क्या बदल गया? चीन में ही तब राजनाथ ने किया साइन करने से इनकार, आज मोदी ने मनवा ली बात...
दूसरी डील: छह डीजल-इलेक्ट्रिक स्टेल्थ पनडुब्बियां (लागत लगभग 65,000-70,000 करोड़ रुपये)
यह प्रोजेक्ट 75 इंडिया (P-75I) है, जो 2021 में मंजूर हुआ था. यह 'मेक इन इंडिया' का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है.
- निर्माण: MDL और जर्मनी की TKMS के साथ. TKMS ने MDL के साथ पार्टनरशिप की, जो पहले टेंडर में Larsen & Toubro (L&T) और स्पेन की Navantia से आगे निकली. TKMS का ऑफर टाइप 214 का कस्टमाइज्ड वर्जन है, जो 3000 टन वजनी, AIP सिस्टम वाली और स्टेल्थ फीचर्स वाली पनडुब्बियां बनाएगा.
- विशेषताएं: स्टेल्थ डिजाइन, AIP से लंबे समय पानी के नीचे रहने की क्षमता, एडवांस्ड सेंसर्स और हथियार (टॉरपीडो, क्रूज मिसाइलें). ये पुरानी शिशुमार और सिंधुघोष क्लास को बदलेंगी.
- महत्व: नौसेना के पास अभी 16 कन्वेंशनल पनडुब्बियां हैं, जो 2030 तक घटकर 8 रह जाएंगी. चीन की 70+ पनडुब्बियों के खिलाफ हिंद महासागर में बैलेंस बनाएंगी. 45-60% स्वदेशी कंटेंट, जो आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देगा.
- समयसीमा: कॉस्ट नेगोशिएशन जल्द शुरू, 6-9 महीने में कॉन्ट्रैक्ट. पहली डिलीवरी साइन के 7 साल बाद, बाकी सालाना.
देरी के कारण और चुनौतियां
दोनों डीलों में देरी हुई...
- स्कॉर्पीन: 2 साल से अधिक देरी, तकनीकी-व्यावसायिक मुद्दों से. नेवल ग्रुप के साथ ToT (टेक्नोलॉजी ट्रांसफर) और AIP इंटीग्रेशन में समस्या.
- P-75I: 2021 से देरी, टेंडर में सख्त शर्तें (प्रूवन AIP) से कई कंपनियां बाहर. TKMS-MDL बिड अकेली बची। लागत महंगी (महंगाई, करेंसी फ्लक्चुएशन).
- MDL की क्षमता: MDL 11 पनडुब्बियां और 10 डिस्ट्रॉयर एक साथ बना सकता है, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाना पड़ेगा.
- चीन का खतरा: चीन की नौसेना तेजी से बढ़ रही (3 एयरक्राफ्ट कैरियर, 70+ पनडुब्बियां), इसलिए नौसेना को जल्द ताकत चाहिए.
ये डीलें नौसेना की अंडरवाटर क्षमता को दोगुना करेंगी, जो हिंद महासागर में चीन के खिलाफ जरूरी. 1.06 लाख करोड़ की लागत से 'मेक इन इंडिया' को बूस्ट मिलेगा. अगले साल मध्य तक कॉन्ट्रैक्ट साइन होने से पहली डिलीवरी 2031-32 तक. देरी से नौसेना चिंतित, लेकिन ये डीलें भारत को समुद्री महाशक्ति बनाएंगी.
---- समाप्त ----