भारत से इतना क्यों चिढ़ने लगे ट्रंप? अब दिल्ली दौरा भी किया रद्द, QUAD समिट में होने वाले थे शामिल

6 days ago 1

अमेरिका और भारत के रिश्तों में पिछले कुछ समय से कड़वाहट साफ नजर आ रही है. इस बीच भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपना भारतीय दौरा भी रद्द कर दिया है. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का क्वाड शिखर सम्मेलन में भारत आने का अब कोई कार्यक्रम नहीं है. अमेरिकी अखबार में शनिवार को छपी इस रिपोर्ट में ट्रंप के कार्यक्रम से जुड़े सूत्रों का हवाला दिया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सूचित किया था कि वे साल के अंत में भारत आएंगे, लेकिन अब उन्होंने इस प्लान को कैंसिल कर दिया है. इस रिपोर्ट में किए गए दावे पर फिलहाल अमेरिका और भारत, दोनों ही सरकारों की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है.

दरअसल, भारत इस साल के अंत में क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है. इससे पहले, ट्रंप प्रशासन ने जनवरी में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित की थी, ठीक उसी समय जब ट्रंप ने अपना दूसरा राष्ट्रपति कार्यकाल शुरू किया था.

भारत-अमेरिका रिश्तों में कड़वाहट

रिपोर्ट में बताया गया है कि व्यापारिक तनावों के बीच ट्रंप और मोदी के बीच संबंध बिगड़ने लगे हैं. विशेष रूप से ट्रंप के बार-बार किए गए दावों ने स्थिति को और जटिल कर दिया है. ट्रंप लगातार दावा कर रहे हैं कि उन्होंने मई में भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिन के सैन्य संघर्ष को सुलझाने में मदद की थी. हालांकि, भारत ने इन दावों को लगातार खारिज किया है.

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप के भारत-पाकिस्तान युद्ध को हल करने के दावों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नाराज कर दिया. यह तनाव की शुरुआत थी. मोदी का ट्रंप के प्रति धैर्य धीरे-धीरे कम हो रहा था.

17 जून को दोनों नेताओं की फोन पर 35 मिनट हुई थी बात

दोनों नेताओं के बीच 17 जून को 35 मिनट की फोन कॉल हुई थी. यह कॉल उस समय हुई जब ट्रंप कनाडा में जी-7 शिखर सम्मेलन से लौट कर वॉशिंगटन जा रहे थे. इस शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी भी मौजूद थे. योजना थी कि दोनों नेता सम्मेलन के दौरान आमने-सामने मुलाकात करेंगे, लेकिन ट्रंप जल्दी लौट गए. प्रस्थान से पहले भारतीय प्रधानमंत्री ने ट्रंप से फोन पर बातचीत की.

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कनाडा के कनानास्किस से एक वीडियो संदेश में कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप को स्पष्ट रूप से बता दिया कि न तो अमेरिका-भारत व्यापार समझौते पर कोई चर्चा हुई थी और न ही भारत-पाकिस्तान संघर्ष में अमेरिकी मध्यस्थता का कोई प्रस्ताव था. मिस्री ने कहा था कि सीजफायर की बातचीत भारत और पाकिस्तान के सशस्त्र बलों के बीच मौजूदा सैन्य चैनलों के माध्यम से हुई थी, जिसकी पहल पाकिस्तान ने की थी.

मिस्री ने बताया था कि पीएम मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप को दृढ़ता से कहा कि भारत अपने और पाकिस्तान के बीच संघर्ष में किसी भी मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता और न ही कभी करेगा.

नोबेल प्राइज की महत्वाकांक्षा और टकराव

रिपोर्ट के मुताबिक, 17 जून की कॉल के दौरान ट्रंप ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान युद्ध को खत्म करने का श्रेय लिया और दावा किया कि पाकिस्तान उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की योजना बना रहा है. यह पुरस्कार पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को मिल चुका है और अब ट्रंप इसके लिए खुलकर अभियान चला रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया, “सूत्रों के अनुसार, ट्रंप का इशारा था कि मोदी को भी उनका समर्थन करना चाहिए.”

हालांकि, मोदी ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि सीजफायर में अमेरिका का कोई योगदान नहीं था और यह भारत-पाकिस्तान के बीच सीधे सुलझाया गया था.

ट्रंप ने मोदी की आपत्ति को नजरअंदाज़ कर दिया, लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री का ट्रंप के नोबेल अभियान को समर्थन न देना दोनों नेताओं के रिश्तों में दरार डालने वाला अहम कारण बना.

व्हाइट हाउस ने फोन कॉल की कभी नहीं की पुष्टि

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि व्हाइट हाउस ने कभी भी इस कॉल को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया और न ही ट्रंप ने इसे सोशल मीडिया पर साझा किया. 10 मई से अब तक, ट्रंप सार्वजनिक रूप से 40 से अधिक बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने ही भारत-पाक युद्ध रुकवाया.

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया, "यह कहानी उस अमेरिकी राष्ट्रपति की भी है, जो नोबेल पुरस्कार पाना चाहता है. लेकिन उसकी यह चाहत भारत की राजनीति की सबसे संवेदनशील और अटल हकीकत से टकरा गई- भारत और पाकिस्तान के बीच का संघर्ष."

भारत पर 25% टैरिफ दंडात्मक कदम?

रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति ने रूस से तेल खरीदने के लिए भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला किया किसी स्पष्ट नीति से अधिक दंडात्मक कदम प्रतीत होता है. अखबार ने लिखा, “भारत पर लगाए गए भारी जुर्माने व्यापार घाटे को कम करने या रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के युद्ध के लिए धन रोकने के सुसंगत प्रयास की बजाय इसलिए हैं कि उसने अमेरिका की बात नहीं मानी."

सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में भारत के चेयर रिचर्ड रोसो ने कहा, “यह मुद्दा सिर्फ रूस से अधिक है. अगर यह रूस को निचोड़ने की नीति में बदलाव था, तो ट्रम्प रूसी हाइड्रोकार्बन खरीदने वाले देशों पर द्वितीयक प्रतिबंध लगाने वाले कानून का समर्थन कर सकते थे. केवल भारत को निशाना बनाना यह दर्शाता है कि यह रूस से कहीं अधिक है.”

सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में भारत मामलों के अध्यक्ष रिचर्ड रॉसो ने कहा कि यह मसला केवल रूस से जुड़ा नहीं है. उन्होंने कहा, “अगर यह सचमुच रूस पर दबाव डालने की नीति होती, तो ट्रंप उन कानूनों का समर्थन कर सकते थे जिनमें रूसी हाइड्रोकार्बन खरीदने वाले देशों पर सेकेंडरी प्रतिबंध लगाने की बात थी. लेकिन भारत को अलग से निशाना बनाना बताता है कि मामला केवल रूस का नहीं है.”

अखबार ने आगे यह भी दावा किया कि जब टैरिफ वार्ताएं ठप पड़ गईं तो ट्रंप ने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से कई बार संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी कॉल्स का जवाब नहीं दिया.

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