हिमालय के ऊंचे पहाड़ों में बसा लद्दाख, जो कभी प्राचीन सिल्क रूट का हिस्सा था. जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान के गंभीर संकट का सामना कर रहा है. लद्दाख में याकों की संख्या में भारी कमी आ रही है. याकों को को चराना, दूध दुहना और ऊन इकट्ठा करना लद्दाख के लोगों की जीवनशैली का अहम हिस्सा है. PHOTO: AP
लद्दाख में बढ़ती गर्मी के कारण तेजी से पिघलते ग्लेशियर, अनियमित बारिश और पहाड़ों पर घटती बर्फ से चरवाहों और उनके पशुओं दोनों पर सीधा असर पड़ रहा है. चरवाहों की पारंपरिक जीवनशैली अब खतरे में पड़ गई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय यह क्षेत्र ग्लोबल वार्मिंग के प्रति ज्यादा संवेदनशील है. PHOTO: AP
गर्मी बढ़ने से याक बीमार पड़ रहे हैं. उनकी प्रजनन दर में भी कमी आ रही है. हिमालय का तापमान पिछले कुछ दशकों में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ गया है. लद्दाख में बढ़ती गर्मी और बर्फबारी में कमी ने स्थिति को गंभीर बना दिया है. PHOTO: AP
बढ़ते तापमान और बर्फबारी में कमी के कारण घास के मैदान सूख रहे हैं. ये मैदान कभी ग्लेशियरों से बहकर आने वाले पानी से हरे-भरे रहा करते थे. घास की कमी के कारण चरवाहों को अपने याकों को दूर ले जाना पड़ता है जिससे उनका समय और मेहनत दोनों ज्यादा लगती है. PHOTO: AP
लद्दाख के याक चरवाहों को चांगपा भी कहा जाता है. ये चरवाहे याक के दूध, ऊन और मांस पर निर्भर होते हैं. युवा पीढ़ी के लोग पारंपरिक जीवनशैली छोड़ पैसों के लिए शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर हैं. PHOTO: AP
73 वर्षिय कुंजियास डोल्मा ने अपना जीवन याकों के बीच बिताया है. लद्दाख के त्सोल्टक गांव में याक के दूध से बने मक्खन के साथ तस्वीर में दिखाई दे रही हैं. PHOTO: AP
लद्दाख के कोरजाक गांव में याक की खाल और बालों को सुखाने के लिए ले जाती त्सेरिंग डोल्मा. सदियों ये याक चरवाहे पहाड़ों से पिघलकर आने वाली बर्फ पर ही निर्भर रहे हैं. PHOTO: AP
लद्दाख के त्सो मोरीरी गांव में अपने अस्थायी घर के बाहर ऊन से कंबल बुनती नामग्याल डोलमा. याक चरवाहे अपनी आजीविका के लिए याक के दूध से बने उत्पादों और उसकी ऊन से बने कपड़ों पर निर्भर होते हैं. पर याकों की संख्या में आ रही कमी ने उनकी आय को घटा दिया है. PHOTO: AP
तस्वीर में सोनम चौपाल बकरी के बच्चे को गोद में लिए हुए दिखाई दे रहा हैं. याकों की संख्या में हो रही कमी के कारण चरवाहों ने भेड़-बकरियों जैसे दूसरे मवेशियों को भी पालना शुरू कर दिया है. PHOTO: AP
कुंजियास डोल्मा और उनके पति त्सेरिंग अंगचोक अपने रेबो के बाहर तस्वीर में दिखाई दे रहे हैं. रेबो, याक के ऊन से बना एक पारंपरिक टैंट होता है. इसका इस्तेमाल चांगपा चरवाहों द्वारा लद्दाख की कठोर जलवायु का सामना करने के लिए किया जाता है. PHOTO: AP