राजस्थान में चलने वाली स्लीपर बसों के नंबर नागालैंड, अरुणाचल के क्यों? समझिए पूरा गेम

6 hours ago 1

आग लगने की घटनाओं के बाद सड़क पर तेज स्पीड से चलने वाली स्लीपर बसें खबरों में हैं. स्लीपर बसों में यात्रियों की सुरक्षा को लेकर काफी सवाल उठ रहे हैं. वैसे क्या आपने कभी नोटिस किया है कि राजस्थान में चलने वाली स्लीपर बसों में कई बसों के नंबर नागालैंड के होते हैं. ऐसे में सवाल है कि आखिर नॉर्थ इंडिया के जिलों में ट्रेवल्स वाले नागालैंड नंबर वाली गाड़ियां क्यों चलाते हैं, इसके पीछे का क्या कारण है....

दरअसल, अगर आप जयपुर से दिल्ली या आसपास के राज्यों में ट्रेवल करते हैं तो देखने को मिलेगा कि स्लीपर बसों में कई बसों के नंबर राजस्थान, हरियाणा के नहीं हैं. जबकि ये बसें अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड नंबरों की होती हैं. आप नीचे दिए गए टिकट के स्क्रीनशॉट से समझ सकते हैं कि आसपास के राज्यों से दिल्ली आने वाली बसों के नंबर किस तरह के होते हैं... (ये जयपुर से दिल्ली या हरिद्वार जाने वाली टिकट्स हैं, जिसमें आप देख सकते हैं कि बस ऑपरेटर नागालैंड या अरुणाचल नंबर की बसों से यात्रा करवा रहे हैं.)

स्लीपर बस

क्यों होते हैं नॉर्थ ईस्ट राज्यों के नंबर?

दरअसल, बस ऑपरेटर्स आरटीओ टैक्स बचाने के लिए इस ट्रिक का इस्तेमाल करते हैं. राजस्थान के ऑपरेटर्स भी नागालैंड जैसे राज्यों से बस का चेसिस खरीदते हैं और रजिस्ट्रेशन भी वहां ही करवाते हैं. ऐसे में में नंबर वहीं के होते हैं. ऐसा करके वे टैक्स में मोटी बचत कर लेते हैं. इसके बाद वे बस का नेशनल परमिट लेकर उन्हें राजस्थान लोकल या आसपास के राज्यों में चलाकर टैक्स की बचत कर लेते हैं.

इस मामले में ट्रांसपोर्ट विभाग (राजस्थान) के मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर कैलाश शर्मा ने आजतक को बताया कि ऐसा करने से बस ऑपरेटर को टैक्स की बचत होती है और ऐसा करके वे साल के लाखों रुपये बचा लेते हैं.

कितने रुपये का कर लेते हैं फायदा?

कैलाश शर्मा ने बताया कि अगर कोई राजस्थान से टूरिस्ट परमिट लेता है तो उसे एक बस पर करीब 40 हजार रुपये महीने देने होते हैं. इसके बाद जब वे किसी भी राज्य में जाते हैं, तो उन्हें वहां का राज्य का टैक्स अलग देना होता है. जैसे अगर कोई बस जयपुर से महाराष्ट्र जा रही है तो उसे गुजरात और महाराष्ट्र का टैक्स देना होगा. मगर दूसरे राज्य से बस खरीदने पर काफी कम टैक्स लगता है. नागालैंड जैसे राज्यों से बस लाने में टैक्स 10 गुना तक कम पड़ता है.

कैलाश शर्मा के अनुसार, अगर नॉर्थ ईस्ट के राज्यों से बस खरीदते हैं तो एक क्वाटर का सिर्फ 12 हजार के आसपास टैक्स देना होता है यानी महीने का सिर्फ 3-4 हजार रुपये. इससे उन्हें करीब 37 हजार हर महीने का टैक्स का फायदा होता है. इसके साथ ही ये लोग AITP 2023 के तहत बस को रजिस्टर करवा लेते हैं, जिससे उन्हें अलग अलग राज्यों में लगने वाला टैक्स नहीं देना होता. AITP में बस मालिकों को एक क्वाटर का 90 हजार रुपये टैक्स देना होता है, जिससे उनका स्टेट टैक्स भी बच जाता है.

कैलाश शर्मा के अनुसार, अगर औसत देखें तो बस ऑपरेटर को ऐसे 1 लाख से ज्यादा का टैक्स पड़ता है, लेकिन अगर दूसरे राज्य से बस लाते हैं तो ये 20-25 हजार रुपये में निपट जाता है. इससे बस ऑपरेटर इन दूसरे राज्यों से बस लाकर राजस्थान में बस चलाते हैं.

सबसे कम कहां है टैक्स?

रिपोर्ट्स के अनुसार, सबसे कम टैक्स नागालैंड और मेघालय में है. इसके साथ ही देश के अन्य हिस्सों में टैक्स के रेट यहां से ज्यादा है. राजस्थान में सीट के आधार पर टैक्स डिसाइड होता है. हालांकि, यह सिस्टम सिर्फ टैक्स बचाने के लिए ही है, इसके अलावा अन्य नियमों को पालन राज्यों के हिसाब से होता है और बॉडी से जुड़े क्लीयरेंस स्टेट वाइज ही लिए जाते हैं.

---- समाप्त ----

Read Entire Article