राधारानी कौन हैं? कवियों की कल्पना या पौराणिक देवी... पुराणों से लेकर साहित्य तक कहां-कैसा है जिक्र

6 days ago 1

वृंदावन में श्रीकृष्ण अपने ग्वाल-बालों के साथ नंद बाबा की गाय चराने गए हैं. यह दुपहरी का समय है. नदी तट पर सभी खेल-कूद कर रहे हैं. उधर से कुछ गोपियां दही-माखन बेचने निकली हैं, कुछ पानी भरने आई हैं. श्रीकृष्ण अपने साथियों संग उन गोपियों के दही-माखन चुरा ले रहे हैं. इसी दौरान कृष्ण की नजर उनमें से सबसे अलग सबसे अलबेली गोपी पर पड़ती है. उसका रूप, रंग, छवि देखकर कृष्ण दंग से रह जाते हैं और फिर उससे पूछते हैं तुम कौन हो? 

भक्त कवि सूरदास ने श्रीकृष्ण के इसी प्रश्न को कविता बना दिया है, इसकी बानगी देखिए. 

बूझत स्याम कौन तू गोरी।
कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥

(राधा को पहली बार देखकर श्रीकृष्ण ने पूछा कि ओ गोरी! तुम कौन हो? कहां रहती हो? किसकी पुत्री हो? हमने पहले कभी ब्रज की इन गलियों में तुम्हें नहीं देखा.)

ये पहली बार था, जब श्रीकृष्ण का राधा से मिलन हुआ और इसी पहली मुलाकात में उन्होंने राधा से जो प्रश्न किया कि ओ गोरी! तुम कौन हो? लगता है कि परब्रह्म के मुख से निकला ये प्रश्न आजतक ब्रह्मांड में ही तैर रहा है. लिहाजा आज भी यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि देवी राधा कौन हैं और कहां से आई हैं?

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देवी राधा कौन हैं?
इस प्रश्न का उत्तर ब्रह्नवैवर्त पुराण पर में बहुत सटीक मिलता है. ब्रह्मवैवर्त का अर्थ है, ब्रह्म (ऊर्जा) का विवर्तन, यानी ऊर्जा या शक्ति का रूपातंरण. आसान भाषा में कहें कि कई अलग-अलग रूपों में बंट जाना. 

इस पुराण में श्रीकृष्ण को ही सबसे बड़ा देवता और परमसत्ता -परब्रह्म कहा गया है. जिनसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा आदि सभी प्रकट हुए हैं. यह जो परब्रह्म है वह ज्योति स्वरूप है, स्त्री और पुरुष नहीं है.

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे!तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:

(हृदय में उतरने वाले सत्य स्वरूप आनंद के रूप में और इस जगत कि उत्पत्ति का जो कारण हैं, जो हर प्रकार के ताप, शाप का विनाश करते हैं. ऐसे ज्योतिरूप श्रीकृष्ण को हम सभी नमस्कार करते हैं.)

ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण और नारायण (विष्णु) को अलग-अलग बताता है. हालांकि इसमें यह भी कहा गया है कि श्रीकृष्ण ने नारायण को अपना ही स्वरूप, स्वभाव, गुण, प्रकृति और ऊर्जा देकर सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी भी दी. इसीलिए नारायण श्रीकृष्ण के ही आदेश और उनकी ही कलाओं से अलग-अलग अवतार लेते हैं. श्रीकृष्ण के ही बाएं भाग से शिव प्रकट हुए और उनकी इच्छा से उत्पन्न नाभिकमल से ब्रह्मा प्रकट हुए. इस तरह सृष्टि की रचना हुई.

कैसे प्रकट हुईं देवी राधा?
अब इसके बाद ही इस पुराण में श्रीकृष्ण के ही वामांग (बाएं अंग) से राधा के प्रकट होने का वर्णन भी है. नैमिषारण्य तीर्थ में ऋषि शौनक को सौति जी जब यह वर्णन कर रहे होते हैं तब शौनक उनसे पूछते हैं कि सृष्टि की रचना के बाद परब्रह्म श्रीकृष्ण ने क्या किया?

सौति जी बोले- इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण गोलोक में ही स्थित रासमंडल में पहुंचे. यहां वह चंदन के आसन पर बैठ गए. इसी दौरान उनके बाएं भाग से एक सोलह वर्ष की दिव्य कन्या प्रकट हुई. जिसका स्वरूप लक्ष्मी का ही था. कन्या ने दौड़कर एक फूल तुरंत ही भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया और श्रीकृष्ण की आराधिका बन गई. श्रीकृष्ण की वह आराधिका, राधिका नाम से जानी गई, जिसे श्रीकृष्ण ने बहुत प्रेम और भाव से राधा कहा. 

इस तरह श्रीकृष्ण गोलोक में श्रीराधा के साथ निवास करते हैं और गोप-गोपिकाओं के साथ रहने के कारण गोपबंधु-गोपिका वल्लभ, राधास्वामी, राधावल्लभ कहलाते हैं.

श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन?
ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक अध्याय आता है 'श्रीकृष्ण जन्मखंड'. इस खंड में राधा का वर्णन बहुत विस्तार से आया है. इसके मुताबिक, गर्ग ऋषि ने श्रीकृष्ण के नामकरण के वक्त उनका सारा रहस्य नंद और यशोदा को बताया था. गर्ग जी कहते हैं कि यह बालक ब्रह्मांड नायक है. इस समय द्वापर का अंतिम चरण है और कलियुग भी आने वाला है, इसलिए यह इस युग में कृष्ण वर्ण के हैं. इससे पहले के युगों में इन्होंने श्वेत, रक्त और पीतवर्ण के शरीर धारण किए हैं. इस आधार पर गर्ग ऋषि ने बालक का नामकरण श्रीकृष्ण किया और बताया कि प्रभु का यह नाम गोलोक में ऐसा ही है. यह बालक उन्हीं का अवतार है. 

गोलोक में श्रीकृष्ण के राधा से जुड़े हैं कई नाम
गोलोक में यह कृष्ण, पीताम्बर, कंसध्वंसी, विष्टरश्रवा, देवकीनन्दन, श्रीश, यशोदानन्दन, हरि, सनातन, अच्युत, विष्णु, सर्वेश, सर्वरूपधृक्‌, सर्वाधार, सर्वगति, सर्वकारणकारण, ण्धाबन्धु, राधिकात्मा, राधिकाजीवन, राधिकासहचारी, राधामानसपूरक, राधाधन, राधिकाड़, राधिकासक्तमानस, राधाप्राण, राधिकेश, राधिकारमण, राधिकाचित्तचोर, राधाप्राणाधिक, प्रभु, परिपूर्णतम, ब्रह्म, गोविन्द और गरुडध्वज नाम से भी जाने जाते हैं. इसलिए हे नन्द! ये सभी नाम अब अपने-अपने अर्थ को सार्थक करने ही आए हैं.

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ब्रह्मवैवर्त पुराण में कई बार आया है देवी राधा का नाम
यहां पर ध्यान देने वाली बात है ब्रह्म वैवर्त पुराण में गर्ग मुनि ने कई-कई बार राधा, राधिका, राधे और राधारानी जैसे नामों का उल्लेख किया है. नंद पूछते हैं कि हे मुनिवर! राधा-बन्धुसे लेकर राधाप्राणाधिक तक जो नाम-समूह बताये गये हैं, उनमें जो राधा नाम आया है, वह राधा कौन हैं और किसकी पुत्री है?

गर्ग मुनि बोले- हे नंद. यह तुमने बहुत ही बड़ा रहस्य पूछ लिया. फिर भी मैं जो बता पाऊंगा उतना कहूंगा.

तब गर्ग ऋषि बताते हैं कि इसे मैंने भगवान‌ शंकर से सुना है. किसी समय गोलोक में श्रीदामा और राधा के बीच विवाद हो गया था. श्रीदामा ने राधारानी को शाप दे दिया और इसी के कारण राधा रानी को गोकुल में आना पड़ा है. इस समय वे वृषभानु गोपकी बेटी हैं और कलावती कीर्ति उनकी माता हैं. राधा श्रीकृष्णके अर्धांग से प्रकट हुई हैं. नंद ऐसा समझ लो कि एक ही मूर्ति दो रूपोंमें विभक्त हो गयी है. इसमें कौन स्त्री हैं कौन पुरुष यह बता पाना असंभव है, लेकिन संसार राधा को स्त्री संपूर्ण स्त्री और श्रीकृष्ण के संपूर्ण पुरुष मानेगा.

सिर्फ राधा कहने की कोशिश भर से मिल जाती है मुक्ति
गर्ग ऋषि कहते हैं कि राधा का नाम अपने आप में मुक्ति दिलाने वाला, सिद्धि देने वाला और कई यज्ञों-जापों के बराबर फल देने वाला है. राधाका 'रेफ' करोड़ों जन्मों के पाप और शुभ-अशुभ कर्मभोग से छुटकारा दिलाता है. इससे अधिक व्याख्या कर पाने में मेरी बुद्धि असमर्थ है. आप ऐसा समझ लें कि श्रीकृष्ण से ही उत्पन्न श्रीकृष्ण की ही आराधना करने वाली उनकी ही माया परमप्रिय शक्ति आराधिका हैं, जिन्हें श्रीकृष्ण राधा, राधिके और राधे कहकर प्रेम से पुकारते हैं.

एक तर्क यह दिया जाता है कि ब्रह्नमवैवर्त पुराण में जो राधा या राधिका शब्द आया है, उसका स्पष्ट अर्थ श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा नहीं है, लेकिन श्रीकृष्ण जन्म खंड में गर्ग मुनि जिस उपासिका शक्ति का वर्णन कर रहे हैं, उसके श्लोक के अन्वय करने पर स्पष्ट हो जाता है कि यह वृषभानु गोप की पुत्री, गोलोक में रहने वाली राधिका की ही बात हो रही है. 

गर्ग मुनि द्वारा कहे गए श्लोक को देखें...

राधाबन्धू राधिकात्मा राधिकाजीवन: स्वयम
राधिकासहचारी च. राधामानसपूरक:॥

राधाधनो राधिकाड़ो_ राधिकासक्तमानस:
राधाप्राणो राधिकेशो राधिकारमण: स्वयम्‌॥

तर्क कई उत्तर एक
एक तर्क यह बार-बार दिया जाता है कि श्रीकृष्ण से जुड़ा जो भागवत पुराण उनकी लीला कथा है, उसमें राधा नाम का जिक्र कहीं नहीं मिलता है, इसलिए राधा पौराणिक नहीं मिथकीय चरित्र है. इस तर्क का उत्तर ऐसे दिया जा सकता है कि हम जिन पुराणों को आज अलग-अलग देखते हैं वह सभी एक-एक पुराण नहीं बल्कि एक ही पुराण के अलग-अलग चैप्टर हैं. महामुनि व्यास ने ही इनका बंटवारा कर इन्हें 18 भागों में बांटा. भागवत में अवतार लेकर आए श्रीकृष्ण की कथा है, इसलिए यह ब्रह्म वैवर्त पुराण का ही एक अंश है.

समाज में राधारानी का दर्जा श्रीकृष्ण से भी ऊपर 
खैर, राधारानी के विषय वर्णन पर फिर से लौटते हैं. असल में राधा पौराणिक चरित्र हों या न हों लेकिन राधा को समाज में श्रीकृष्ण से भी उच्च स्थान प्राप्त इसलिए हो जाता है, क्योंकि राधा होना किसी स्त्री का परिचय भर नहीं है. यह नाम, यह संज्ञा अपने आप में एक भावना है. यह भावना प्रेम की भावना कहलाती है. त्याग-संपूर्ण समर्पण की भावना कहलाती है. प्रेम-त्याग और समर्पण कभी किसी रिश्ते और बंधन का मोहताज नहीं होता है. 

शक्ति पर विजय पाकर बड़ी बन जाती है भक्ति
लोक सिर्फ दो ही तत्वों की पूजा करता है, जिनमें एक है शक्ति और दूसरा है भक्ति. इतिहास में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां भक्ति ने ऊपर उठकर शक्ति पर विजयी पाई है. राधारानी इसी भक्ति भाव की पहचान हैं और इसीलिए लोक के हृदय में वह कुमारीजी, श्रीजी, लक्ष्मीजी और यहां से होते-होते परम सत्ता भगवती बन जाती हैं और सहज पूजने योग्य बन जाती हैं. कहते हैं कि श्रीकृष्ण छली हैं, नटखट हैं, त्रिभंगी हैं और भक्तों को बहुत नाच नचाते हैं, लेकिन ऐसे त्रिभंगी, छलिया, नटवर को सीधा रखती हैं श्रीजी. इसलिए श्रीजी के नाम का स्मरण भर करना, करोड़ों बार हरे कृष्ण-हरे कृष्ण का जाप है.

साहित्य में देवी राधा
कविवर बिहारी इसीलिए जब श्रीकृष्ण से खुद पर कृपा करने की प्रार्थना करते हैं तो वह सीधे उनका नाम नहीं लेते हैं, बल्कि उन्हें राधा के स्वामी कहकर पुकारते हैं. क्योंकि वह जानते हैं कि श्रीकृष्ण अगर न भी सुनें, लेकिन ममतामयी राधाजी जरूर सुनेंगी और उन्होंने सुन लिया तो कृष्ण न सुनें ऐसा हो नहीं सकता. 
 

'मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झांई परैं, स्यामु हरित-दुति होइ॥'

साहित्य और लिखित दस्तावेजों की बात करें तो राधा का उल्लेख 'गाथा सत्तासई या गाथा सप्तसती' नामक ग्रंथ में भी किया गया है, जो राजा हल द्वारा प्राकृत भाषा में रचित 700 छंदों का संग्रह है. यह ग्रंथ पहली या दूसरी शताब्दी ई. के आसपास लिखा गया था. गाथा सप्तसती में राधा का स्पष्ट उल्लेख किया गया है.

मुखमरूतेन त्वं कृष्ण गोराजो राधिकाय अपानयन
एतसं बल्लविनम् अन्यसं अपि गौरवम् हरसि।।
 
(हे कृष्ण! जैसे आप अपने मुख से राधा के मुख की धूल उड़ा देते हैं, वैसे ही आप अन्य ग्वालिनों का वैभव भी हर लेते हैं. और ऐसे ही मेरे दुख भी हर लो.')

लोक की कथाओं में देवी राधा
इसके बाद राधा रानी का जिक्र लोककथाओं में आना शुरू होता है और फिर वह आठवीं सदी तक प्रेम और भक्ति की प्रतीक बन जाती हैं. इन लोककथाओं और कविताओं में राधा का जो वर्णन किया गया है वह उन्हें अनायास ही देवी बना देता है. वह लोक की चेतना और वेदना दोनों का प्रतिनिधित्व करती हैं. ब्रज काव्य में तो वह बिल्कुल ही मध्यमवर्गीय घरेलू परिस्थिति को सामने रखने वाली नायिका बन जाती हैं. जहां पति, पिता, सास, ननद, पीहर, प्रिय और ढेर सारी सामाजिक वर्जनाएं हैं. राधा इन वर्जनाओं को तोड़कर प्रेम व समर्पण को तवज्जो देती हैं. 

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जयदेव के गीत गोविंद काव्य में राधारानी
आठवीं सदी के बाद राधा की प्रमुखता से मौजूदगी 12वीं शताब्दी में जयदेव द्वारा संस्कृत में रचित गीत गोविंद के साथ-साथ निम्बार्काचार्य की दार्शनिक रचनाओं में मिलती है. जयदेव ने राधा और कृष्ण को स्पष्ट तौर पर प्रेमी-प्रेमिका मानते हुए उनकी प्रेम लीला का वर्णन ऐसा किया है कि जैसा कि कालिदास ने कुमार संभव में शिव और पार्वती के प्रेम मिलाप का वर्णन किया है. राधा जो कि अब तक पौराणिक भाषा शब्दावली में श्रीकृष्ण की सहचरीं और योगमाया थीं. गीत गोविंद लिखे जाने के बाद उनके लिए स्पष्ट तौर पर प्रेमिका शब्द का प्रयोग होना शुरू हुआ. 

विद्यापति के मैथिल काव्य में राधिका देवी
जयदेव के बाद और 13वीं-15वीं सदी में विद्यापति ने भी मैथिल में राधा-कृष्ण काव्य की रचना की. इस तरह दोनों के गीत काव्य से ब्रजभाषा में भक्ति-काव्य लिखने वाले सन्त कवियों ने इसे अपनाया और आगे बढ़ाया. कुछ और आगे आने पर मुक्तक के रूप में लिखे गए पदों में राधा-कृष्ण का प्रेम महत्त्वपूर्ण हो गया. कृष्ण-काव्य पूरी तरह मुक्तक का क्षेत्र बन गया. 

भक्त कवि सूरदास के काव्य में देवी राधा
फिर आते हैं संत भक्त कवि सूरदास, जिन्होंने वल्लभाचार्य के कहने पर श्रीमद्भागवत की कथा को पदों में गाया. इस तरह राधा-कृष्ण के प्रेम का शृंगार पक्ष थोड़ा धुंधला पड़ा और भक्ति और प्रेम का पक्ष फिर से उजला होता गया. इसलिए राधा का जिक्र, उनका वर्णन, उनका परिचय उनकी गाथा किसी पुराण में मिले न मिले वह लोक में लोगों के हृदय में सिर्फ अपनी भाव भक्ति के जरिए गहरी पैठ बनाए हुए हैं. कोई माने या नकारे लेकिन राधा के प्रति कृष्ण का प्रेम उतना ही सच है, जितना धरती-आकाश और चांद-सूरज का होना सच है. त्रिलोकीनाथ भले ही परमसत्ता के पद पर आसीन हों, लेकिन वह इसी भाग्यशाली राधा के ही आधीन हैं.

तभी तो अष्टछाप के संत कवियों में से एक परमानंद दास जीवन भर यह पद गाते रहे... 
राधे तू बड़ भागिनी कौन तपस्या कीन,
तीन लोक तारण तरन सो तेरे आधीन।।

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