बांग्लादेश में कथित 'क्रांति' कर आमूल-चूल बदलाव का दावा करने वाले छात्र नेता कुर्सी प्रेम में बुरी तरह से घिर चुके हैं. अब ये नेता बांग्लादेश की चुनाव पद्धति में ही बदलाव चाहते हैं कि ताकि चुनाव में कम वोट पाकर भी इस 'क्रांति' के चुनिंदा चेहरे कुर्सी का सुख भोग सकें. बांग्लादेश में पिछले साल अगस्त में आंदोलन के जरिये सत्ता बदलाव करने वाले छात्रों ने बांग्लादेश की सरकार से मांग की है कि देश की चुनाव प्रणाली में बदलाव लाया जाए आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional representation) को लागू किया जाए.
बता दें कि इन छात्रों ने (National Citizen Party-NCP) नाम से नई पार्टी बनाई है और चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसी ही मांग बांग्लादेश की कई छोटी छोटी इस्लामिक पार्टियां कर रही हैं.
लेकिन खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने इस मांग का कड़ा विरोध किया है. बीएनपी ने कहा है कि जो लोग आनुपातिक चुनाव प्रणाली की बात कर रहे हैं, उनके पीछे एक मकसद है. जो लोग राष्ट्रीय चुनाव से पहले स्थानीय सरकार के चुनाव चाहते हैं उनके पीछे भी एक मकसद है.
BNP के प्रवक्ता सलाहुद्दीन अहमद ने कहा कि ऐसी मांग करने वाले लोग या तो वे चुनाव में देरी चाहते हैं, या वे बांग्लादेश में कोई चुनाव नहीं चाहते हैं. उन्होंने आगे कहा कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली बांग्लादेश की राजनीतिक संस्कृति के लिए अनुपयुक्त है.
कैसे होता है आनुपातिक प्रतिनिधित्व से चुनाव
आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional representation) एक चुनावी प्रणाली है जिसमें पार्टियों को मिलने वाली सीटें उनके द्वारा प्राप्त वोटों के अनुपात में होती हैं. उदाहरण के लिए, अगर किसी पार्टी को चुनाव में 10% वोट मिलते हैं, तो उसे संसद में लगभग 10% सीटें मिलेंगी.
यह प्रणाली छोटी पार्टियों और अल्पसंख्यक समूहों को बेहतर प्रतिनिधित्व देती है, क्योंकि यह सिस्टम भारत और बांग्लादेश में वर्तमान में मौजूद फर्स्ट पास्ट द पोस्ट की तुलना में अधिक समावेशी होती है, जिसमें सबसे ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार ही जीतता है.
सरकार बनाने के लिए किसी एक पार्टी या गठबंधन को संसद में बहुमत (50% से अधिक सीटें) चाहिए होता है. आनुपातिक प्रतिनिधित्व में अक्सर किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता, क्योंकि वोट कई पार्टियों में बंट जाते हैं. ऐसे में पार्टियां आपस में गठबंधन करती हैं. जिसमें सबसे बड़ी पार्टी का नेता आमतौर पर प्रधानमंत्री या समकक्ष पद पर होता है.
बीएनपी की यह प्रतिक्रिया तब आई जब प्रमुख कट्टरपंथी पार्टियों में से एक इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश (आईएबी) द्वारा देश भर से बड़ी संख्या में समर्थकों को राजधानी में एकत्रित कर एक रैली की गई थी. इस रैली में उन्होंने आनुपातिक प्रतिनिधित्व सिस्टम से आम चुनाव कराने और इस आम चुनाव से पहले स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की मांग की थी.
NCP क्यों चाहती है चुनाव का नया सिस्टम
चुनाव को लेकर विवाद ने बीएनपी को उसके पूर्व सहयोगी जमात के खिलाफ खड़ा कर दिया है. क्योंकि BNP को लगता है कि वो अकेले दम पर सत्ता में आ सकती है. वहीं जमात को लगता है कि प्रचंड समर्थन के बावजूद उसे ज्यादा वोट नहीं मिलेंगे और वो सत्ता से बाहर रह जाएगी. ऐसे ही संकेत एनसीपी को मिल रहे हैं. एनसीपी जानती है कि देश में राजनीतिक बदलाव लाने का क्रेडिट मिलने के बाद भी उसे अकेले दम पर सत्ता नहीं मिलने वाली है. इसलिए एनसीपी के छात्र नेता चाहते हैं कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व से चुनाव हो ताकि दो चार या 10 सीटें मिलने पर भी सत्ता में शामिल हुआ जा सके. इससे इस आंदोलन के बड़े चेहरों को बांग्लादेश की संसद में जाने का मौका मिल सकता है.
NCP और इस्लामिक पार्टियों की मांग
आईएबी ने ये प्रस्ताव बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी और नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) की मांगों को मजबूत करने के लिए किया है. नेशनल सिटिजन पार्टी इस पार्टी को लगातार उठा रही है.
आईएबी की इस रैली में जमात के प्रतिनिधि भी शामिल हुए, जिसमें बांग्लादेश में इस्लामी ताकतों से अधिक एकता का आह्वान किया गया.
बता दें कि बांग्लादेश के मौजूदा माहौल में बीएनपी सत्ता की प्रमुख दावेदार बनकर उभरी है. अगस्त में शेख हसीना को अपदस्थ किए जाने के बाद बीएनपी बांग्लादेश के राजनीतिक डिस्कोर्स में सबसे ज्यादा चर्चा में है.
पिछले साल 5 अगस्त को जब हसीना की सरकार को गिराया गया तो वे भारत चली आईं. यह कदम स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन (एसएडी) नाम के मंच के नेतृत्व में हिंसक सड़क आंदोलन के परिणामस्वरूप उठाया गया.
इसके बाद नोबेल पुरस्कार विजेता 85 वर्षीय यूनुस तीन दिन बाद अंतरिम सरकार की कमान संभालने के लिए पेरिस से ढाका पहुंचे.
इसके बाद स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एनसीपी का गठन किया. इस पार्टी ने जमात सहित दक्षिणपंथी और इस्लामिक समूहों के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए.
बता दें कि बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने कहा है कि देश में आम चुनाव इस साल दिसंबर और जून 2026 के बीच चुनाव होंगे.