'बिहार के वोटर लिस्ट में संशोधन हमारा अधिकार, आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं', सुप्रीम कोर्ट में EC ने कहा

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बिहार में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसे चुनाव आयोग के किसी ऐसे किसी कदम से समस्या नहीं है, समस्या इसकी टाइमिंग से है. सुप्रीम कोर्ट कहा कि बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने के चुनाव आयोग के कदम में तर्क और व्यावहारिकता निहित है, लेकिन अदालत ने विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले होने वाली इस कवायद के समय पर सवाल उठाया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आपको यह करना ही था तो फिर आपने इतने देरी क्यों की? यह चुनाव से ठीक पहले नहीं होना चाहिए.

बता दें कि इस मामले में दायर कई याचिकाओं पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनावई हई. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने इस केस की सुनवाई की. 

वोटर लिस्ट रिवीजन अभी क्यों?

इस दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि "आपकी प्रक्रिया में समस्या नहीं है... समस्या समय की है." क्योंकि जिन लोगों को सूची से हटाया जा सकता है, उनके पास इसके अपील करने का समय नहीं होगा.

न्यायमूर्ति धूलिया ने आगे कहा, "इस प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है. सिवाय इसके कि चुनाव से पहले किसी व्यक्ति को मताधिकार से वंचित कर दिया जाएगा और मतदान से पहले उसके पास इसके खिलाफ अपील करने का समय नहीं होगा. एक बार मतदाता सूची अंतिम हो जाता है, तो अदालतें उसे नहीं छुएगी. जिसका अर्थ यह होगा कि वंचित व्यक्ति के पास चुनाव से पहले उसे इस लिस्ट को चुनौती देने का विकल्प नहीं होगा."

आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में मान्यता क्यों नहीं?

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में मान्यता न देने को लेकर चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल उठाया. अदालत में चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि सिर्फ आधार कार्ड से नागरिकता साबित नहीं होती है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आप वोटर लिस्ट में नाम किसी शख्स की नागरिकता साबित होने पर डालेंगे तो यह एक बड़ी कसौटी है. 

कोर्ट ने कहा कि यह होम मिनिस्ट्री का काम है. आप उसमे मत जाइए. उसकी अपनी एक न्यायिक प्रकिया है. फिर आपकी इस कवायद का कोई औचित्य नहीं रहेगा. 

मामले की सुनावई के दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए. उन्होंने दलील दी कि किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने की प्रक्रिया यह है कि एक व्यक्ति किसी के खिलाफ अपनी आपत्ति का सबूत देता है. फिर चुनाव आयोग सुनवाई के लिए नोटिस जारी करता है. लेकिन यहां सामूहिक रूप से 4-7 करोड़ लोगों को निलंबित कर दिया गया है और कहा गया है कि यदि आप फॉर्म नहीं भरते हैं तो आप बाहर हो जाएंगे.

इससे पहले याचिकाकर्ताओं में से एक वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने तर्क दिया कि चुनाव आयोग का ये संशोधन "मनमाना" और "भेदभावपूर्ण" है, क्योंकि यह मतदाता सूची में एक दशक से अधिक समय से शामिल मतदाताओं को अपनी नागरिकता फिर से सत्यापित करने के लिए बाध्य करता है. और ऐसा करने के लिए उन्हें आधार जैसे सरकारी पहचान पत्रों का उपयोग भी नहीं करना होगा.

वरिष्ठ वकील शंकरनारायणन ने कहा कि चुनाव आयोग का कहना है कि आखिरी बार रिवीजन 2003 में किया गया था. तब बिहार की जनसंख्या 4 करोड़ थी. अब बिहार की जनसंख्या काफी बढ़ गई है और इसके बाद 10 चुनाव भी हो चुके हैं. अब चुनाव से कुछ ही महीने पहले आयोग ये कदम उठा रही है. और 30 दिन में मतदाता सूची भी जारी होने हैं.

उन्होंने कहा कि हैरान करने वाली बात यह है कि आयोग कहता है कि वे आधार कार्ड को सत्यापन के लिए स्वीकार नहीं करेंगे. हालांकि इससे जुड़े कानून में बदलाव हुए हैं और ये मान्यता दी गई है कि आधार को सत्यापन के लिए स्वीकार किया जाएगा, लेकिन ये अब कहते हैं कि आधार को माना नहीं जाएगा.

आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं: EC

सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, आयोग ने कहा कि लोगों को उनके वोट देने के अधिकार से वंचित करने का कोई इरादा नहीं है. आयोग को मतदाता सूचियों में संशोधन करने का अधिकार है. चुनाव आयोग ने भरोसा दिया कि
सुनवाई और उचित प्रक्रिया के बिना किसी का भी नाम नहीं हटाया जाएगा. चुनाव आयोग ने गैर-सरकारी संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर आपत्ति जताई और कहा कि वे बिहार के मतदाता नहीं हैं.

चुनाव आयोग से सुप्रीम कोर्ट ने 3 सवालों पर मांगे जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधान सभा चुनाव के मद्देनजर मतदाता सूची संशोधन पर चुनाव आयोग से तीन सवाल पर जवाब मांगे हैं. ये तीन सवाल हैं-

चुनाव आयोग के पास ऐसे विशिष्ट मुहिम के लिए क्या कानूनी अधिकार है? 
इस मुहिम की प्रक्रिया क्या होगी?
और इसका समय क्या होगा?

कोर्ट ने पूछा कि पुनरीक्षण अभ्यास को आगामी चुनाव से क्यों जोड़ा जा रहा है? यदि इस प्रक्रिया की वजह से किसी को चुनाव से बाहर रखा गया तो क्या आप उनकी सुनवाई करेंगे?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या आप 6 महीने के भीतर संशोधन पूरा कर लेंगे? नियम कहता है कि प्रत्येक परिवार को सरकारी अधिकारी द्वारा सत्यापन के लिए एक दस्तावेज भौतिक रूप से भेजना होगा. क्या आप यह अभ्यास करेंगे?

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