उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अचानक इस्तीफा देने के बाद भारत की राजनीतिक मशीनरी में हलचल मच गई. इस बीच राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने उच्च सदन के कार्यवाहक सभापति का पदभार ग्रहण कर लिया है जो कि संवैधानिक रूप से उपराष्ट्रपति का पद होता है.
अब सभी का ध्यान देश के अगले उपराष्ट्रपति की दौड़ पर है और चुनाव आयोग को 19 सितंबर से पहले 60 दिनों के अंदर चुनाव कराना होगा. हालांकि, ये जनता द्वारा सीधा चुनाव नहीं है. उपराष्ट्रपति का चयन संसद के दोनों सदनों के सभी मौजूदा सांसदों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल हस्तांतरणीय वोटिंग सिस्टम के जरिए किया जाता है.
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उपराष्ट्रपति सिर्फ औपचारिक व्यक्ति नहीं होते. वह राज्यसभा की अध्यक्षता करते हैं और अक्सर महत्वपूर्ण विधायी बहसों और फैसलों का मार्गदर्शन करते हैं. नए उपराष्ट्रपति के चुनाव से पहले ये भूमिका महत्वपूर्ण विधेयकों को संसद में कैसे संभाला जाता है.
अब आगे क्या होगा?
- अधिसूचना: चुनाव आयोग आने वाले दिनों में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करेगा.
- नामांकन: राजनीतिक गठबंधन अपने उम्मीदवारों को नामित करेंगे.
- मतदान: सभी सांसद उम्मीदवारों को प्राथमिकता के क्रम में रैंक करेंगे.
- परिणाम: मतों की गणना आनुपातिक प्रणाली के आधार पर होगी ताकि विजेता का निर्धारण हो सके.
- शपथ ग्रहण: परिणामों की घोषणा के बाद नया उपराष्ट्रपति शपथ लेगा.
कैसे होता है उपराष्ट्रपति का चुनाव?
सामान्य चुनावों के विपरीत उपराष्ट्रपति का चयन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली द्वारा होता है. विजेता घोषित होने के लिए उम्मीदवार को एक कोटा पार करना होगा, जो कुल वैध मतों को दो से भाग देकर और एक जोड़कर की जाती है.
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यदि पहली गणना में कोई उम्मीदवार इस कोटे को हासिल नहीं करता तो सबसे कम प्रथम-वरीयता वाले मतों वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है. फिर उनके मतपत्रों को दूसरी वरीयता के आधार पर पुनर्वितरित किया जाता है. ये प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कोई उम्मीदवार बहुमत हासिल नहीं कर लेता.
मतदान के पात्र हैं 782 सांसद
संसद की वर्तमान संख्या के अनुसार छह रिक्त सीटों को छोड़कर, 782 सांसद मतदान के पात्र हैं. उपराष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए बहुमत का आंकड़ा 392 है. कोई भी उम्मीदवार जो पहली वरीयता या बाद की मतगणना के जरिए से 392 या उससे अधिक वोट हासिल कर लेगा, उसे विजेता घोषित किया जाएगा. हालांकि, यदि विपक्षी गठबंधन, इंडिया ब्लॉक, निर्दलीयों और छोटे दलों का समर्थन के साथ एक संयुक्त उम्मीदवार को उतारने में सफल नहीं होता तो बीजेपी के नेतृत्व वाला NDA गठबंधन अपने उम्मीदवार को नियुक्त करने की मजबूत स्थिति में रहेगा.
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