मुंबई का रियल एस्टेट मार्केट एक बड़े बदलाव से गुजर रहा है, और इसकी वजह है शहर में चल रही पुनर्विकास परियोजनाएं. रियल एस्टेट कंसल्टेंसी फर्म नाइट फ्रैंक इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2030 तक पुनर्विकास के जरिए करीब 1.30 लाख करोड़ रुपये के कुल 44,277 अपार्टमेंट बाजार में आने की उम्मीद है.
इस रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि पुनर्विकास से मिलने वाले 'फ्री-सेल' (free-sale) अपार्टमेंट से सरकार को भारी राजस्व प्राप्त होगा. इनमें स्टांप ड्यूटी के रूप में करीब 7,830 करोड़ रुपये और जीएसटी के रूप में लगभग 6,525 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है. यह आंकड़ा न केवल रियल एस्टेट सेक्टर की मजबूती को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि पुनर्विकास परियोजनाओं से शहर के आर्थिक विकास को भी गति मिलेगी.
बदल रही है शहर की तस्वीर
मुंबई में चल रहे पुनर्विकास प्रोजेक्ट्स शहर के रहने के माहौल और रियल एस्टेट बाजार को बदल सकते हैं. हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक, अब यह सेक्टर बहुत ज़्यादा महंगा हो गया है और एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है, जहां आगे क्या होगा, यह कहना मुश्किल है.
बढ़ती हुई प्रॉपर्टी की कीमतों से डेवलपर्स के लिए वादे पूरे करना मुश्किल हो रहा है. वहीं दूसरी तरफ, सोसायटी के लोगों की उम्मीदें भी बहुत ज़्यादा बढ़ गई हैं.
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रिपोर्ट के अनुसार, पुनर्विकास एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें आमतौर पर शुरू होने से लेकर फ्लैट सौंपने तक 8 से 11 साल का समय लगता है. कई सोसाइटियां, जिन्होंने 2020 में यह प्रक्रिया शुरू की थी, अब जाकर निर्माण या शुरुआती डिलीवरी चरण में पहुंची हैं. इस लंबी समयावधि के कारण, ये परियोजनाएं कई बाजार चक्रों, बदलती ब्याज दरों, और नीतिगत बदलावों के जोखिमों का सामना करती हैं.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जहां मुंबई के डेवलपमेंट कंट्रोल एंड प्रमोशन रेगुलेशन (DCPR) 2034 जैसे ढांचों ने परियोजनाओं की व्यवहार्यता में सुधार किया है, वहीं कुछ प्रमुख चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं. इनमें सर्वसम्मति बनाने संपत्ति के मालिकाना हक़ की स्पष्टता और नागरिक मंजूरियां प्राप्त करने जैसी समस्याएं शामिल हैं.
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