22 जुलाई को उन 3 घंटों में क्या हुआ था... कैसे धनखड़ के इस्तीफे तक पहुंच गई बात?

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संसद के मॉनसून सत्र का पहला दिन हंगामेदार रहा. विपक्ष हमेशा की तरह सरकार पर हमलावर रहा. लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में रहा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का पद से इस्तीफा. 

संसद के मॉनसून सत्र की शुरुआत पर पार्लियामेंट बिल्डिंग के बाहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया को संबोधित करते हुए राष्ट्रहित में एकता की जरूरत की प्रतिबद्धता जताई. इसके बाद सत्र के दौरान हमेशा की तरह स्थगन, वॉकआउट और विपक्ष के आरोपों का सिलसिला शुरू हुआ. 

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि उन्हें बोलने से रोका गया, जबकि मंत्रियों को खुलकर बोलने का मौका मिला. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की प्राथमिकता में कुछ अहम मुद्दे शामिल थे, जैसे हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के महाभियोग की प्रक्रिया, ऑपरेशन सिंदूर और चुनाव से पहले बिहार में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) पर चर्चा. 

संसद की प्रक्रिया सामान्य अवरोधों के साथ आगे बढ़ती दिख रही थी लेकिन शाम होते-होते उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे ने पूरे घटनाक्रम का रुख ही बदल दिया. 74 वर्षीय धनखड़ अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति बने थे और उनका कार्यकाल 2027 तक था. 

अब सवाल है कि क्या जस्टिस यशवंत वर्मा के कैश एट होम मामले में धनखड़ की कथित जल्दबाजी ही उनके इस्तीफे की असली वजह थी? क्या उनके कदम सरकार की उस रणनीति के खिलाफ थे, जो इस समय न्यायपालिका से टकराव नहीं चाहती? यह एक ऐसा घटनाक्रम है जिसने संसद के तूफानी माहौल में भी सबका ध्यान अपनी ओर खींचा.

धनखड़ के इस्तीफे के पीछे छिपी है कोई बड़ी बात?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की आधिकारिक घोषणा रात 9:25 बजे हुई. उन्होंने ने स्वास्थ्य का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया.

लेकिन विपक्षी नेताओं का कहना है कि मामला सिर्फ स्वास्थ्य का नहीं है. बात कुछ और है. पूरे दिन चली बैठकों और राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान न तो धनखड़ अस्वस्थ लगे और न ही उन्होंने खराब स्वास्थ्य का कोई संकेत दिया.

राज्यसभा के सभापति के रूप में धनखड़ दिनभर बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की बैठकों में शामिल रहे और न्यायपालिका से जुड़े कुछ अहम घोषणाओं की तैयारी कर रहे थे.

BAC की बैठक के अलावा उन्होंने विपक्षी नेताओं से भी मुलाकातें कीं, लेकिन कहीं से यह संकेत नहीं मिला कि वह किसी परेशानी में हैं या इस्तीफा देने वाले हैं.

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति का अचानक इस्तीफा चौंकाने वाला है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा कि निस्संदेह, जगदीप धनखड़ को अपने स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए. लेकिन यह पूरी तरह अप्रत्याशित इस्तीफा किसी गहरी बात की ओर इशारा करता है. हालांकि यह अटकलें लगाने का समय नहीं है.

जयराम रमेश ने यह भी बताया कि मंगलवार दोपहर एक बजे के लिए धनखड़ ने BAC की बैठक तय कर रखी थी. उन्होंने कहा कि धनखड़ ने सरकार और विपक्ष  दोनों को बराबरी से जवाब दिया था. उन्होंने कल 1 बजे बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक रखी थी और कल ही न्यायपालिका से जुड़े कुछ अहम ऐलान करने वाले थे.

तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर सोमवार को ऐसा क्या हुआ कि उपराष्ट्रपति जो 22 जुलाई को सदन के कामकाज की तैयारी कर रहे थे, उन्होंने 21 जुलाई को रात 9:25 बजे अचानक इस्तीफा दे दिया?

राज्यसभा की कार्यवाही और धनखड़ का इस्तीफा

सोमवार को राज्यसभा की कार्यवाही दोपहर लगभग 4:36 बजे स्थगित कर दी गई थी. लेकिन उससे पहले एक बड़ा घटनाक्रम हुआ. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह पुष्टि की कि उन्हें जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की मांग वाला एक प्रस्ताव मिला है, जिस पर 50 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर हैं. इसके साथ ही न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के तहत इस प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत हुई.

इस दौरान कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि लोकसभा में भी ऐसा ही एक प्रस्ताव लाया गया है, तो धनखड़ ने सचिवालय को निर्देश दिया कि इसकी पुष्टि करें.

जब मेघवाल ने इस बात की पुष्टि की कि लोकसभा में भी यह नोटिस दिया गया है, तो धनखड़ ने सचिवालय से कहा कि इस दिशा में आवश्यक कदम उठाए जाएं. 

धनखड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि जजेस (इंक्वायरी) एक्ट के तहत यदि दोनों सदनों में एक ही दिन नोटिस दिए जाते हैं, तो आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त समिति का गठन लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति मिलकर करते हैं. 

लोकसभा में पेश किया गया प्रस्ताव द्विदलीय था. यानी उस पर बीजेपी सहित 152 सांसदों के हस्ताक्षर थे, जबकि राज्यसभा में जो प्रस्ताव लाया गया था, वह केवल विपक्ष के सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित था.

कई जानकारों का कहना है कि राज्यसभा में केवल विपक्ष की ओर से लाए गए प्रस्ताव को स्वीकार करना शायद सत्ता पक्ष को नागवार गुजरा. संविधान के जानकार और न्यायिक सुधारों के प्रबल पक्षधर रहे धनखड़ के लिए जस्टिस वर्मा का मामला एक निर्णायक मौका बन सकता था.

इससे पहले एक और रोचक घटनाक्रम तब हुआ जब ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बोल रहे थे, तभी बीजेपी के राज्यसभा नेता जेपी नड्डा ने हस्तक्षेप किया.

इस दौरान नड्डा को धनखड़ की तरफ इशारा करते हुए सुना गया कि रिकॉर्ड में नहीं जाएगा, जो मैं कहूंगा सिर्फ वही रिकॉर्ड में जाएगा.
इस कांग्रेस ने धनखड़ के अपमान के तौर पर देखा. हालांकि नड्डा ने बाद में सफाई दी कि उनकी यह टिप्पणी विपक्ष के सांसदों के लिए थी, न कि सभापति के लिए.

बिहार से लोकसभा सांसद पप्पू यादव ने कहा कि बीजेपी को संविधान या लोकतांत्रिक मूल्यों की परवाह नहीं है. धनखड़ जी ने निष्पक्षता से काम किया और यही बात सत्ता पक्ष को रास नहीं आई. नड्डा की टिप्पणी को वह निजी अपमान मान बैठे. यह मामला उनके स्वास्थ्य से जुड़ा नहीं है.

धनखड़ की बैठक में नड्डा और रिजीजू की गैरमौजूदगी

कांग्रेस पार्टी ने कहा कि राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की दूसरी बैठक में जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू की गैरहाजिरी से उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ आहत थे.

कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने बताया कि वो पूरी तरह स्वस्थ थे. उन्होंने संसद की कार्यवाही का संचालन हमेशा की तरह हंसमुख अंदाज में किया. लेकिन सोमवार दोपहर को कुछ ऐसा हुआ जिसने उन्हें आहत किया और संभव है कि इससे सरकार भी असहज हुई हो.

जेपी नड्डा और किरेन रिजीजू दोपहर 12.30 बजे हुई पहली बैठक में मौजूद थे. चूंकि वह बैठक अनिर्णायक रही, इसलिए तय किया गया कि दूसरी बैठक शाम 4:30 बजे फिर से बुलाई जाएगी. लेकिन दूसरी बैठक में सरकार की ओर से केवल केंद्रीय मंत्री एल. मुरुगन मौजूद रहे, जबकि नड्डा और रिजीजू ने हिस्सा नहीं लिया.

संक्षेप में कहा जाए तो, धनखड़ का रवैया न्यायपालिका के प्रति टकरावपूर्ण रहा है. जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई करने के मौके पर तुरंत सक्रिय हो जाना और इस मामले में विपक्ष के सुर में सुर मिलाना, शायद सरकार को असहज लगा हो. 

न्यायपालिका का मानना है कि कैश एट होम मामले में जस्टिस वर्मा के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करना पूरी तरह से उनका अधिकार क्षेत्र है.

21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली दो न्यायाधीशों की पीठ ने याचिकाकर्ता वकील मैथ्यूज नेदुमपारा को फटकार भी लगाई, क्योंकि उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस वर्मा का नाम बिना जस्टिस जैसे औपचारिक संबोधन के लिया था.

सरकारी सूत्रों ने मीडिया को बताया कि उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सरका को विश्वास में लिए बिना जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था. धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे गए इस्तीफे में कहा कि स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और चिकित्सा सलाह का पालन करते हुए मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं.

जगदीप धनखड़ के 23 जुलाई की यात्रा योजना पर उपराष्ट्रपति सचिवालय द्वारा साझा की गई एक पोस्ट से यह भी संकेत मिला कि इस्तीफे का फैसला बहुत कम समय में लिया गया. इस पोस्ट में कहा गया कि भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 23 जुलाई, 2025 को राजस्थान के जयपुर की एक दिवसीय यात्रा पर रहेंगे. यह पोस्ट सोमवार को दोपहर 3:53 बजे साझा की गई थी.

इंडिया टुडे टीवी को सूत्रों ने बताया कि जयराम रमेश ने शाम 7:30 बजे उपराष्ट्रपति धनखड़ को फोन किया था, जिस पर धनखड़ ने कहा कि वह अपने परिवार के साथ हैं और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं इसलिए कल बात करेंगे.

जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पोस्ट में बताया कि कल दोपहर 1 बजे से 4:30 बजे के बीच कुछ बेहद गंभीर हुआ, जिसके चलते नड्डा और रिजीजू ने जानबूझकर दूसरी बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) बैठक में हिस्सा नहीं लिया. और अब अप्रत्याशित रूप से जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया. 

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