भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) के चेयरमैन मनोज त्रिपाठी ने कहा है कि पंजाब के बांधों में हालात अब स्थिर हो रहे हैं. यह खबर राज्य के बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए राहत भरी है. मौसम विभाग (IMD) के पूर्वानुमान के मुताबिक, 7 सितंबर को केवल मामूली बारिश की संभावना है, इसके बाद 15 सितंबर तक सूखे हालात बने रहने की उम्मीद है. फिलहाल ब्यास, भाखड़ा और रंजीत सागर तीनों ही बांध खतरे के स्तर से नीचे हैं.
पानी का स्तर घटाने की कोशिश
त्रिपाठी ने कहा कि इन जलाशयों ने पंजाब को बड़ी तबाही से बचाया है. उन्होंने बताया कि अगर बांध नहीं होते तो जून में ही बड़े पैमाने पर तबाही आ चुकी होती. खासकर भाखड़ा बांध ने भारी बरसात के पानी को रोकने में अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने यह भी बताया कि अगर पहले हरियाणा को ज्यादा पानी छोड़ दिया जाता, तो इस समय जलाशय का स्तर 3 से 4 फीट नीचे होता और भारी बारिश के पानी के पानी को सहेजने के लिए और क्षमता बच जाती.
हरियाणा ने 88 एमसीएम पानी की मांग की थी, जिसे छोड़ा जा सकता था, लेकिन त्रिपाठी ने कहा कि मानसून की अनिश्चितता को देखते हुए सतर्क रवैया अपनाना जरूरी था. यह सिर्फ पंजाब-हरियाणा ही नहीं बल्कि सभी सरकारों का एहतियाती रुख होता है. हमें बांधों में पानी का स्तर काफी हद तक घटाना चाहिए.
सूखे मौसम में होगी गाद की खुदाई
सिल्ट (गाद) के जमाव पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि फिलहाल सिल्ट बांधों से काफी दूर है. हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि हिमाचल प्रदेश, जिसने पहले इस पर आपत्ति जताई थी, अब ड्राई एक्सकेवेशन (सूखे मौसम में गाद की खुदाई) को मंजूरी दे चुका है. त्रिपाठी ने कहा कि ड्राई एक्सकेवेशन किया जा रहा है, वहां गाद के ढेर हैं. इन्हें सूखे मौसम में निकाला जा सकता है और फिर नीलामी भी की जा सकती है. उन्होंने बताया कि जलाशय की ड्रेसिंग (गाद की सफाई) के लिए एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी को भी बुलाया गया है.
सामने आया पानी का पुराना विवाद
पानी बांटने का मुद्दा एक बार फिर पंजाब और हरियाणा के बीच पुराना विवाद सामने ले आया है. त्रिपाठी ने कहा कि पानी छोड़ने का कोई भी फैसला चारों साझीदार राज्यों के बीच तालमेल से होना चाहिए. उन्होंने यह भी दोहराया कि पंजाब का बीबीएमबी में असली हिस्सा 39% है, न कि 60% जैसा कि अक्सर कहा जाता है. हरियाणा का हिस्सा 29% है, जबकि राजस्थान का हिस्सा केवल 27% है.
मुख्य आंकड़े साझा करते हुए त्रिपाठी ने बताया कि ब्यास में इस साल (2025) 11.70 बीसीएम पानी का बहाव आया है, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 9.52 बीसीएम था. वहीं, भाखड़ा बांध में इस साल 9.11 बीसीएम पानी आया है. साल 1988 में यह रिकॉर्ड 16.85 बीसीएम तक पहुंच गया था, जबकि इस सीजन में पानी का स्तर सावधानी से नियंत्रित रखा गया और 16.79 बीसीएम से ऊपर नहीं जाने दिया गया. उन्होंने कहा कि पहली बार ब्यास में इतना ज्यादा पानी आया है.
बांधों का रोल समझना जरूरी
त्रिपाठी ने बताया कि हालात पर नजर रखने के लिए बीबीएमबी दिन में तीन बार बैठक कर रहा है. एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इस बार पानी के अभूतपूर्व बहाव के साथ-साथ असामान्य बारिश ने भी बांधों में पानी की स्थिति बिगाड़ी थी. लेकिन अब सबसे बुरा वक्त शायद गुजर चुका है. त्रिपाठी ने कहा कि इन्हीं बांधों की वजह से सुरक्षा संभव हो पाई है उन्होंने सभी साझेदार राज्यों से अपील की कि वे बाढ़ प्रबंधन और लंबी अवधि की जल सुरक्षा में बांधों की अहम भूमिका को समझें.
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