अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हेकड़ी खत्म हो चुकी है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मबल काम आया. ट्रंप के बड़बोलेपन पर उनकी अडिग चुप्पी के बावजूद दुनिया के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति भारत से ट्रेड डील फाइनल करने का मौका तलाश रहा है. जाहिर है कि किसी भी देश की कूटनीति उस देश के फायदे के लिए ही होती है. अमेरिका भी अगर भारत से डील के लिए मरे जा रहा है तो उसके पीछे कहीं न कहीं उसकी कोई कमजोरी ही है. जिसे वो भारत से डील करके कम करना चाहता है.
वैसे बहुत से कारण हैं जिनके चलते डोनाल्ड ट्रंप जैसा शख्सियत भी भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति सकारात्मक रुख अपनाने को मजबूर हुआ है. और बार-बार भारत को महान देश और मोदी को महान दोस्त बता रहा है. ट्रंप बार- बार अपने सोशल मीडिया पोस्ट में जल्द ही ट्रेड डील पर बातचीत करने की इच्छा जताई है.
यह रुख तब और ध्यान देने योग्य है, जब ट्रम्प ने पहले भारत की अर्थव्यवस्था को मृत करार दिया था और भारत पर 50% टैरिफ लगाया था. जाहिर है कि ट्रंप के इस बदलाव और भारत के साथ ट्रेड डील की उत्सुकता कई सवाल उठाती है. आइये देखते हैं कि अमेरिका की ऐसी कौन-सी वाणिज्यिक और आर्थिक मजबूरियां हैं, जो उसे भारत के साथ समझौता करने के लिए मजबूर कर रही हैं?
1-भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंध
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध लंबे समय से मजबूत रहे हैं. 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 212 बिलियन डॉलर तक पहुंचा, जिससे अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना. भारत अमेरिका को स्टील, एल्युमीनियम, दवाइयां, टेक्सटाइल, और डिजिटल सेवाएं निर्यात करता है, जबकि अमेरिका से भारत ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, और रक्षा उपकरण आयात करता है. अगस्त 2025 में ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया, भारत के रूस से तेल खरीदने और चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों पर नाराजगी भी जताई.
एक समय तो ऐसा आ गया था कि रात को सोने में भी ट्रंप को भारत और मोदी के सपने आने लगे थे. कोई भी दिन ऐसा नहीं होता था जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत को कोसने का कोई मौका छोड़ रहे थे. सितंबर आते आते हवा का रूख नरम हो गया. अमेरिका बार-बार भारत के साथ ट्रेड डील की बातचीत को आगे बढ़ाने की इच्छा जताने लगा .
पीएम मोदी ने भी सकारात्मक जवाब दिया, यह कहते हुए कि भारत-अमेरिका मित्रता मजबूत है और व्यापारिक वार्ता दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगी. इस बदलाव के पीछे अमेरिका की कई आर्थिक और वाणिज्यिक मजबूरियां हैं, जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है.
2-अमेरिका की वाणिज्यिक और आर्थिक मजबूरियां
अमेरिका की भारत के साथ ट्रेड डील की उत्सुकता के पीछे कई कारण हैं. 2025 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.8% रही, जो वैश्विक अनुमानों से अधिक है. भारत जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है. यह वृद्धि भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाती है, खासकर सेमिकंडक्टर, टेक्सटाइल, और डिजिटल सेवाओं में. ट्रम्प की अमेरिका फर्स्ट नीति के तहत भारत जैसे बड़े और तेजी से बढ़ते बाजार को नजरअंदाज करना अमेरिकी कंपनियों के लिए नुकसानदेह हो सकता है.
भारत का 1.4 अरब का जनसंख्या आधार और बढ़ता मध्यम वर्ग अमेरिकी उत्पादों और सेवाओं के लिए एक आकर्षक बाजार है. अमेरिकी कंपनियां जैसे ऐपल, टेस्ला, और अमेजन भारत में निवेश बढ़ा रही हैं, और ट्रेड डील के बिना टैरिफ बाधाएं इनके लिए लागत बढ़ा सकती हैं. भारत अमेरिका को 120 बिलियन डॉलर से अधिक का सामान निर्यात करता है, जिसमें दवाइयां, सॉफ्टवेयर, और टेक्सटाइल शामिल हैं. इन क्षेत्रों में टैरिफ बढ़ाने से अमेरिकी उपभोक्ताओं को उच्च कीमतें चुकानी पड़ सकती हैं, जिससे महंगाई बढ़ने का खतरा है.
3- ग्लोबल सप्लाय चेन में भारत की भूमिका
सेमीकंडक्टर और प्रौद्योगिकी: भारत ने सेमिकॉन इंडिया 2025 जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सेमीकंडक्टर उत्पादन में निवेश बढ़ाया है. अमेरिकी कंपनियां जैसे माइक्रोन और इंटेल भारत में सेमिकंडक्टर संयंत्र स्थापित कर रही हैंं. भारत के साथ तनाव बढ़ाना इन निवेशों को जोखिम में डाल सकता है, जो ग्लोबल सप्लाय चेन के लिए महत्वपूर्ण हैं.
ट्रंप की नीति चीन पर निर्भरता कम करने की है, और भारत मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाओं के माध्यम से वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर रहा है. भारत के साथ ट्रेड डील न होने से अमेरिका को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में नुकसान हो सकता है, क्योंकि भारत अन्य देशों (जैसे जापान, यूरोपीय संघ) के साथ व्यापार बढ़ा रहा है.
भारत ने टेक्सटाइल निर्यात के लिए 40 से अधिक देशों के साथ बातचीत शुरू की है, जो अमेरिकी टैरिफ के जवाब में वैकल्पिक बाजारों की तलाश का हिस्सा है. इससे अमेरिकी टेक्सटाइल आयातकों को नुकसान हो सकता है, जो भारत पर निर्भर हैं.
4- टैरिफ के जवाबी प्रभाव और आर्थिक दबाव
ट्रम्प के 50% टैरिफ के जवाब में भारत ने अमेरिकी उत्पादों पर बिना जवाबी टैरिफ की धमकी दिए खेल कर रहा है. भारत ने जीएसटी सुधार करके अमेरिकी कोला कंपनियों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. भारत ने 350 सीसी तक की बाइक पर जीएसटी कम कर दिया. उसके ऊपर के बाइक को 40 परसेंट वाले स्लैब में डाल दिया. जाहिर है कि इसका सीधा प्रभाव हर्ले डेविडसन पर पड़ा है. हर्ले डेविडसन ट्रंप के दिल के कितने करीब है इस तरह देख सकते हैं कि भारत के संदर्भ में बात करते हुए वो इस बाइक ब्रैंड का नाम जरूर लेते हैं. 2019 में जब ट्रम्प ने भारत का जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (GSP) दर्जा खत्म किया, भारत ने अमेरिकी बादाम, सेब, और रासायनिक उत्पादों पर शुल्क बढ़ाया. इस बार भी भारत की जवाबी कार्रवाई अमेरिकी व्यवसायों, विशेष रूप से कृषि और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों, को नुकसान पहुंचा सकती है.
ट्रम्प की टैरिफ नीति ने अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पहले ही दबाव डाला है. भारत से आयातित सामानों पर उच्च टैरिफ से इलेक्ट्रॉनिक्स, और टेक्सटाइल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे अमेरिका में महंगाई बढ़ने का खतरा है.
5- भू-राजनीतिक मजबूरियां और रणनीतिक हित, चीन के खिलाफ संतुलन
भारत क्वाड (Quad) का महत्वपूर्ण सदस्य है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए बनाया गया है. मोदी की चीन यात्रा के बाद ट्रंप की टिप्पणी गौर करने लायक थी. ट्रंप ने अपनी फीलिंग ऐसे जाहिर की जैसे भारत जैसा दोस्त अमेरिका से चीन के प्रभाव में खो गया हो. हालांकि ट्रंप की यह सब कहकर दबाव बनाने की कोशिश ही थी. लेकिन भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और SCO में सक्रियता ने दिखाया कि वह अपनी नीतियां स्वतंत्र रूप से तय करता है. भारत को अलग-थलग करना अमेरिका के लिए भू-राजनीतिक रूप से नुकसानदेह हो सकता है, क्योंकि भारत चीन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण साझेदार है.
भारत का रूस से तेल खरीदना और रक्षा सौदे (जैसे S-400) ट्रम्प के लिए चिंता का विषय रहे हैं. हालांकि, भारत की यह नीति वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्थिरता और रूस पर निर्भरता को संतुलित करने के लिए महत्वपूर्ण है. ट्रंप को यह अहसास हुआ होगा कि भारत को दंडित करने से वह रूस और चीन के और करीब जा सकता है, जो अमेरिका के हितों के खिलाफ है.
6. ट्रंंप की घरेलू और वैश्विक छवि
ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति ने अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों पर दबाव बढ़ाया है. भारत जैसे बड़े बाजार के साथ तनाव बढ़ाना उनकी घरेलू लोकप्रियता को नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर जब महंगाई पहले से ही एक मुद्दा है. लगातार अमेरिकी थिंक टैंक भारत को लेकर ट्रंप के रवैये की आलोचना कर रहे हैं.इसके चलते लगातार ट्रंप घरेलू मोर्चे पर विलेन बनते जा रहे हैं.जाहिर है कि यह बात समझते ही ट्रंप ने पलटी मार दी है.
ट्रम्प ने दावा किया कि उन्होंने चीन और इंग्लैंड के साथ व्यापारिक समझौते किए हैं. भारत के साथ ट्रेड डील उनकी वैश्विक व्यापार रणनीति को मजबूत करने का हिस्सा हो सकता है, जिससे उनकी छवि एक सफल सौदेबाज की बने.
7-भारत की जवाबी रणनीति़
भारत ने ट्रंप के टैरिफ के जवाब में मेक इन इंडिया और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा दिया. पीएम मोदी ने सेमिकॉन इंडिया 2025 में कहा कि भारत का विकास हर अनुमान से बेहतर रहा है. यह रणनीति भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाती है, जिसने ट्रम्प को बातचीत की मेज पर लौटने के लिए मजबूर किया. भारत ने टेक्सटाइल और अन्य व्यवसायों के निर्यात के लिए 40 से अधिक देशों के साथ बातचीत शुरू की, जो अमेरिका के लिए एक चेतावनी है कि भारत अन्य बाजारों की ओर बढ़ सकता है.
पीएम मोदी ने ट्रंप के तीखे बयानों का जवाब सधी हुई कूटनीति से दिया, बिना सीधे फोन कॉल के. मोदी ने अपने जवाबी ट्वीट में अमेरिका के लिए सकारात्मक रूख अपनाया पर ट्रंप का फिर भी नहीं लिया.
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