उपराष्ट्रपति चुनाव: वोटिंग से बाहर हुए तीन दल किसका गेम बनाएंगे, किसका बिगाड़ेंगे?

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उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मंगलवार को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक मतदान होगा. एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और 'इंडिया' ब्लॉक के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी के बीच सीधा मुकाबला है. वोटिंग से ठीक पहले बीजेडी, बीआरएस और अकाली दल ने मतदान से दूरी बनाने का ऐलान कर दिया है, जिसके चलते मुकाबला काफी रोचक हो गया है.

संसद के दोनों सदन- लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग करते हैं. 'नंबर गेम' के लिहाज से एनडीए के राधाकृष्णन का पलड़ा भारी है, लेकिन 'इंडिया' ब्लॉक ने बी. सुदर्शन को आगे कर विपक्ष को एकजुट रखने का दांव चला.

हालांकि, मतदान से ठीक पहले विपक्ष के 3 दलों ने वोटिंग से दूरी बना ली है, जिनमें बीजेडी, बीआरएस और अकाली दल शामिल हैं. इन 3 दलों के पास कुल 14 सांसद हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इसका असर किस पर पड़ेगा और किसका 'नंबर गेम' बिगड़ेगा?

बीजेडी-बीआरएस-अकाली दल वोटिंग से दूर

उपराष्ट्रपति चुनाव से ओडिशा के पूर्व सीएम नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी और तेलंगाना के पूर्व सीएम केसीआर की बीआरएस के बाद पंजाब की शिरोमणि अकाली दल ने भी दूरी बना ली है. इन तीनों दलों ने ऐलान किया है कि वे न ही एनडीए के राधाकृष्णन का समर्थन करेंगे और न ही 'इंडिया' ब्लॉक के सुदर्शन रेड्डी को वोट देंगे. इसके चलते जीत-हार के आँकड़े में फेरबदल तय है.

बीआरएस के 4 राज्यसभा सांसद, बीजू जनता दल के 7 राज्यसभा सांसद और शिरोमणि अकाली दल के एक लोकसभा और 2 राज्यसभा सांसद हैं. तीनों दलों ने अपने सांसदों को मतदान से दूर रहने को कहा है.

तीन दलों की दूरी का क्या पड़ेगा सियासी प्रभाव

1. बीजेडी, बीआरएस और अकाली दल के सांसद सदस्यों की संख्या मिलाकर 14 होती है. मौजूदा समय में लोकसभा में 542 और राज्यसभा में 239 सांसद हैं. इस तरह दोनों सदनों के कुल सदस्य 781 हैं, जिसके लिहाज से जीत के लिए उम्मीदवार को कम से कम 391 सांसदों का समर्थन चाहिए.

2. तीनों दलों के वोटिंग से दूरी बनाए रखने के चलते सबसे पहला असर 'नंबर गेम' पर पड़ेगा. इस तरह अब दोनों सदनों के सांसदों की संख्या 767 ही रह गई है. जीत के लिए कम से कम 384 सांसदों का समर्थन चाहिए.

3. तीनों दल विपक्ष के हैं, लेकिन पिछले 11 सालों से सरकार के नजदीक रहे हैं. मोदी सरकार के हर संकट में साथ खड़े रहे हैं. अकाली दल तो एनडीए का हिस्सा ही रहा है, लेकिन बीजेडी और बीआरएस गठबंधन में न होने के बाद भी साथ देती रही हैं.

4. 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में भी इन्होंने एनडीए के जगदीप धनखड़ का समर्थन किया था. इस बार के चुनाव में वोटिंग से दूरी बनाए रखने का असर एनडीए की जीत के मार्जिन पर पड़ेगा. वहीं, दूसरी तरफ, इसे विपक्ष के लिए भी सियासी झटका माना जा रहा है.

5. कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी जैसे गैर-राजनीतिक चेहरे को प्रत्याशी बनाकर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल का समर्थन जुटा लिया, लेकिन समूचे विपक्ष को एकजुट नहीं रख सकी. बीजेडी और बीआरएस के साथ अकाली दल का विश्वास नहीं जीतना साफ दिखाता है कि तीनों विपक्षी दल अभी भी कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रहे हैं.

6. एनडीए के पास दोनों सदनों में कुल 425 सांसदों का समर्थन मौजूद है. वाईएसआरसीपी ने एनडीए उम्मीदवार राधाकृष्णन को समर्थन दिया है, जिसके बाद अब एनडीए के पास 436 सांसदों के वोट हो रहे हैं. आँकड़ों में देखा जाए तो एनडीए उम्मीदवार की जीत तय है. वहीं, विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी के साथ 324 वोट हो रहे हैं. इस तरह से जीत के लिए 112 वोटों का अंतर साफ दिख रहा है.

हालांकि, सात सांसद निर्दलीय हैं, जिन्होंने अभी तक किसी का समर्थन नहीं किया है. इसके अलावा, जेडपीएम और आम आदमी पार्टी की स्वाति मालीवाल ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टी चिह्न नहीं होते, इसलिए व्हिप लागू नहीं होता. इस वजह से दल-बदल कानून भी लागू नहीं होता, क्रॉस वोटिंग करने पर सांसद की सदस्यता जाने का भी खतरा नहीं होता है.

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