बहुत से देश आपस में लड़ रहे हैं, जिनमें सुलह-समझौते का काम अमेरिका कर रहा है. हालांकि दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर का फायदा भले दिखे, लेकिन नुकसान भी हैं. जैसे हाल में अमेरिका के एक राज्य टेक्सास में आई बाढ़ पर चर्चा है कि वो कुदरती नहीं, बल्कि मैन-मेड है, यानी वेदर वेपन. सोशल मीडिया पर तो ये कंस्पिरेसी थ्योरी तैर ही रही है, कई अमेरिकी अधिकारी भी इसे हवा दे रहे हैं. फिलहाल ये केवल अटकलबाजी है, लेकिन वेदर वॉरफेयर पर बहस लगातार हो रही है.
टेक्सास में आई बाढ़ को लेकर ट्रंप प्रशासन के पूर्व एनएसए अधिकारी माइक फ्लिन ने लिखा- क्या कोई बता सकता है, ये किसने किया? यहां तक कि रिपब्लिकन सांसद मार्जरी टेलर ग्रीन ने एक बिल लाने की बात की. इसके तहत कोई भी शख्स या संस्था हवा में ऐसे केमिकल नहीं छोड़ सकते, जिनकी वजह से मौसम, टेंपरेंचर या सूरज की रोशनी से छेड़छाड़ होती हो. यानी यह एक तरह से वेदर मॉडिफिकेशन की तकनीक पर रोक लगाने की बात है.
अब ये वेदर मॉडिफिकेशन क्या बला है
यह एक तकनीक है, या यूं कहें कि सोच है, जिसमें इंसान धरती के क्लाइमेट और वेदर को जानबूझकर बदलने की कोशिश कर सकता है. इसमें बारिश भी है, सूखा भी और यहां तक कि भूकंप और सुनामी भी. इस विचार के पीछे कहने को तो पॉजिटिव रिजल्ट हैं, जैसे कुदरती आपदाओं पर काबू पा सकना या मौसम को ज्यादा बेहतर बना सकना, लेकिन इसकी शुरुआत नेगेटिव नोट पर हुई. और अब तो ये कथित तौर पर वेदर वॉरफेयर का रूप ले सकता है.
कब और किसने इस्तेमाल किया पहला वेदर वेपन
हरेक मॉर्डन और विवादास्पद तकनीक की तरह इसके पीछे भी यूएस रहा. उसने वियतनाम युद्ध के दौरान इसका उपयोग किया. छोटा सा देश जंग में हार नहीं मान रहा था. तब गुस्साए अमेरिका ने एक ऑपरेशन चलाया- ऑपरेशन पोपाय. इसमें उसने क्लाउड सीडिंग से आर्टिफिशियल बारिश करवाई, ताकि सैनिकों और रसद के रास्ते कीचड़ से भर जाएं और उनकी आवाजाही धीमी हो जाए.
ऐसा एकाध महीने नहीं, बल्कि साल 1967 से लगभग छह सालों तक चला. मई से अक्टूबर के बीच हर साल इतनी बारिश हुई कि वाकई सेना की सप्लाई चेन और मूवमेंट हल्का पड़ गया. आम लोग भी इससे बचे नहीं. लगातार बारिश से सड़कें टूट गईं, फसलें खराब हुईं और बाढ़ के हालात बन गए. ये पहला मौका था, जब मौसम को जंग में हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया.
पता लगने पर तत्कालीन अमेरिकी सरकार की भारी आलोचना हुई. और आगे कोई देश ऐसा न करे, इसके लिए एक संधि भी हुई, जिसका मकसद था ऐसे किसी भी हथियार या तकनीक पर रोक लगाना जिससे प्राकृतिक वातावरण को जानबूझकर बदला जाए और उसका दुश्मन के लिए नुकसान के लिए इस्तेमाल हो. यूएन की इस पहल के बाद खास फर्क नहीं पड़ा. किसी ने क्लाउड सीडिंग के जरिए हमला तो नहीं किया, लेकिन भीतर-भीतर एडवांस तकनीक पर कथित प्रयोग हो रहे हैं, और अमेरिका, रूस, चीन सभी एक-दूसरे पर आरोप भी लगा रहे हैं.
कई ऐसे विवादित प्रोजेक्ट्स चर्चा में रहे
अमेरिका में हाई फ्रीक्वेंसी एक्टिव ऑरोरल रिसर्च प्रोग्राम नाम से एक प्रोजेक्ट है. इसका काम है वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में एनर्जी भेज कर उसके असर को जानना. हालांकि आलोचकों का मानना है कि वो मौसम में बदलाव के लिए ये सब कर रहा है. रूस और चीन दोनों ही अमेरिका पर आरोप लगा चुके हैं कि हार्प से तूफान, भूकंप और बाढ़ पर असर डाला जा सकता है.
चीन की वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी भी घेरे में रही. उसने साल 2008 के बीजिंग ओलंपिक से पहले क्लाउड सीडिंग की मदद से पहले ही बारिश करवा ली थी ताकि खेल के दौरान मौसम साफ रहे. कुछ साल पहले चीन की स्टेट काउंसिल कहा था कि जल्द ही वे 5.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर में क्लाउड सीडिंग और दूसरी तकनीकों से मौसम पर कंट्रोल कर सकने की क्षमता पा लेंगे. यानी वो पड़ोसी देशों तक पहुंच सकता है.
जियोइंजीनियरिंग भी इसका एक हिस्सा है. इसके तहत सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसों को हवा में छोड़कर सूरज की रोशनी को कम किया जाता है ताकि धरती का टेंपरेचर कम हो जाए. इससे ग्लोबल वार्मिंग कम हो सकती है. लेकिन अगर यही तकनीक किसी खास देश पर टारगेट की जाए तो वहां की खेती और जीवन पूरी तरह से खत्म हो सकता है क्योंकि सूरज की किरणें वहां पहुंच नहीं सकेंगी.
क्या वेदर वेपन का कोई प्रमाण है
ज्यादातर मामलों में इसके इस्तेमाल का कोई पक्का सबूत सामने नहीं आता. असल घटनाओं और आर्टिफिशियल तरीके से लाई गई तबाही के बीच फर्क करना मुश्किल है, खासकर जब ज्यादातर देशों में ये तकनीक है ही नहीं. सिर्फ वियतनाम जंग के बाद खुद यूएस की सीनेट ने माना था कि उन्होंने दुश्मन देश के मौसम से छेड़छाड़ की थी. हालांकि देश एक-दूसरे पर आरोप जरूर लगाते रहते हैं.
तो क्या यूएस किसी खास ताकत के निशाने पर
ये बात फिलहाल अटकलबाजी ही है लेकिन टेक्सास की घटना ने सवाल जरूर उठा दिए. फिलहाल अमेरिका ग्लोबल तनावों का केंद्र बना हुआ है. वो रूस के खिलाफ यूक्रेन को लंबी मदद देता रहा. ईरान और इजरायल युद्ध में उसने कथित मध्यस्थता की. चीन और ताइवान टेंशन में भी वो लगातार ताइवान की तरफ से बोलता रहा. रूस से उसके संबंध ट्रैडिशनली तनावभरे रहे. हाल में ट्रंप के आने के बाद बर्फ कुछ पिघलती लगी, लेकिन यूक्रेन की वजह से इसमें फिर ठंडापन आ गया.
इन सबके बीच अमेरिका अगर किसी खुफिया वेदर अटैक का शिकार हो भी जाए, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. लेकिन चूंकि वाइट हाउस या इंटेलिजेंस ने ऐसा कुछ नहीं कहा है तो फिलहाल इसे अटकल ही माना जा रहा है.
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