पिछले साल अक्टूबर में इजरायल और आतंकी गुट हमास के बीच लड़ाई शुरू हुई. हमास चूंकि गाजा पट्टी से काम करता है, लिहाजा जंग में गाजा लगभग तबाह हो गया. यह दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले इलाकों में से एक है तो जाहिर है कि जंग का असर आम लोगों पर भी हुआ. संयुक्त राष्ट्र का दावा है कि पट्टी में रहने वाली बड़ी आबादी भुखमरी से जूझ रही है. लेकिन इस सबके बाद भी फिलिस्तीनी क्षेत्र को अकालग्रस्त घोषित नहीं किया जा रहा. इसकी क्या वजह हो सकती है?
अभी कैसी स्थिति है
मई के आखिर में यूएन ने चेताया था कि गाजा को तुरंत मदद न मिले तो दो ही दिनों में दस हजार से ज्यादा बच्चों की मौत हो सकती है. इससे पहले भी कई चेतावनियां दी जा चुकीं. हालात वाकई भयावह हैं भी. लगभग दो दशक से घेराबंदी झेल रहे इस इलाके को इजरायल के साथ-साथ पड़ोसियों जैसे मिस्र ने भी कंट्रोल में रखा ताकि वहां के लोग बाहर न आ-जा सकें. कई बार इसे खुली जेल कहा जा चुका, जहां के लोग जीने-खाने के लिए बाहरी मदद पर निर्भर रहे. हाल में खाने का इंतजार करते बहुत से लोगों की भी इजरायली हमले में मौत हो गई. कुल मिलाकर, गाजा पट्टी अकाल के मुहाने पर खड़ी है.
तब क्षेत्र को अकालग्रस्त क्यों नहीं माना जा रहा
किसी भी इलाके को अकालग्रस्त घोषित करने के कुछ तय मानक होते हैं, जो यूएन एजेंसियां ही तय करती हैं. वे यह चेक करती हैं कि हालात कितने गंभीर हैं कि उसे अकाल माना जा सके. ये डिक्लेयर करने के लिए तीन कंडीशन्स होनी चाहिए
- कम से कम 20 फीसदी आबादी बेहद गंभीर खाद्य संकट से जूझ रही हो.
- हर दस हजार में से कम से कम दो लोगों की मौत रोज भूख से हो रही हो.
- पांच साल से कम उम्र के हर तीन में एक बच्चा कुपोषण का शिकार हो.

तब क्या गाजा अकालग्रस्त नहीं
हो सकता है. इसकी वजह भी है. युद्धग्रस्त इलाके में मदद करने वाली एजेंसियों की पहुंच काफी कम हो जाती है. ऐसे में दूरदराज से या सुनी-सुनाई जानकारी ही मिल पाती है. तब हो सकता है कि सही डेटा तक पहुंच ही न हो. लड़ाई के हालात में सर्वे करना, सटीक आंकड़े जुटाना बेहद मुश्किल हो जाता है.
कई बार राजनीतिक प्रेशर और इंटरनेशनल दखल भी होता है. कई बार कुछ देश नहीं चाहते कि किसी इलाके को अकालग्रस्त घोषित किया जाए क्योंकि अगर ऐसा हो तो उनके खिलाफ इंटरनेशनल स्तर पर एक्शन हो सकता है. ऐसा कई बार हो चुका. जैसे सोमालिया में साल 2011 के दौरान दो लाख से ज्यादा लोगों की भूख से मौत हो गई. अकाल भी उसी साल घोषित हुआ, जबकि स्थिति लंबे समय से खराब थी.
अल-कायदा से जुड़ा एक संगठन अल-शबाब देश के कई हिस्सों पर कब्जा कर चुका था. वो किसी भी इंटरनेशनल एड एजेंसी को भीतर आने नहीं दे रहा था. यहां तक कि रेड क्रॉस की एंट्री भी रुकी हुई थी. इस आतंकी गुट ने मदद पहुंचाने वाली संस्थाओं पर हमले शुरू कर दिए ताकि लोग बाहर अटके रहें. अमेरिका समेत तमाम वेस्ट ने डर के चलते सहायता रोक दी. जब तक मामला कुछ शांत हुआ, काफी नुकसान हो चुका था.
इंटीग्रेटेड फूड सिक्योरिटी फेज क्लासिफिकेशन ययानी अकाल तय करने वाले इंटरनेशनल सिस्टम को काफी देर से डेटा मिल सका. यही वजह है कि जुलाई में घोषणा होते तक लाखों मौतें हो चुकी थीं. दो साल बाद यूएन ने माना कि अगर पहले मदद दी जाती, तो कई जानें बच सकती थीं. लेकिन ये तभी होता जब अकालग्रस्त होने की बात साफ हो पाती.

गाजा के साथ क्या स्थिति हो सकती है
गाजा पट्टी को अगर आधिकारिक तौर पर अकालग्रस्त मान लिया जाए तो इससे तेल अवीव पर भारी दबाव बनेगा. जिनेवा कन्वेंशन के मुताबिक, युद्ध कर रहे देश की जिम्मेदारी होती है कि वो लोगों की जान बचाने के लिए राहत दे. यूएन के साथ इसमें सरकार भी काम कर सकती है ताकि सही डेटा जा सके. लेकिन समस्या यही है कि गाजा में तो हमास का राज है, जिसे खुद एक आतंकी संगठन माना जा रहा है.
हमास पर पहले भी आरोप लग चुका कि वो जंग में खुद को बचाने के लिए आम लोगों का इस्तेमाल कर रहा है. उसकी हिंसा के कई वीडियो भी वायरल हो चुके. ऐसे में फिलिस्तीनी आबादी अगर अकाल पीड़ित कहलाए तो इसकी जिम्मेदारी हमास पर भी होगी. उसपर भी प्रेशर बढ़ेगा कि वो बचे हुए बंधकों को लौटा दे और सरेंडर कर दे. हमास भले ही अलग-थलग लगता रहे लेकिन उसके भी कई शुभचिंतक हैं, जो लगातार आर्थिक और हथियारों से मदद करते आए. परदे की ओट में काम कर रहे ये देश भी कुछ जोर लगा रहे होंगे.
अगर अकाल घोषित हो जाए, तो इजरायल को
- हमले रोकने या काफी सीमित करने पर मजबूर किया जा सकता है.
- वो सारे रास्ते खोलने पड़ सकते हैं जो उसने सुरक्षा के नाम पर बंद कर रखे हैं.
- अगर वो ऐसा न करे तो भारी दबाव बन सकता है, और कई पाबंदियां लग सकती हैं.
- यही हाल हमास का होगा, जो दूसरे देशों की शह पर प्रॉक्सी वॉर चला रहा है.
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