वैदिक कर्मों के प्रति श्रद्धा भक्ति रखने वाले मनुष्यों के लिए पार्थिव लिंग सभी लिंगों में सर्वश्रेष्ठ हैं. इसके पूजन से मनोवांछित फलों मिलते हैं, ऐसा महत्व शिव पुराण, रुद्र संहिता और रावण संहिता में भी बताया गया है. जिस तरह सतयुग में रत्न का, त्रेता में स्वर्ण का, द्वापर में पारे का महत्व है, उसी तरह कलयुग में पार्थिव लिंग का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है.
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पुराणों में पार्थिव शिवलिंग की पूजा का महत्व बताया गया है.
वैसे तो शिवालय वर्ष भर शिवभक्तों से गुलजार रहते ही हैं, लेकिन सावन मास के आते ही शिवालयों की रौनक और बढ़ जाती है. गंगाजल लेकर शिवलिंगों का अभिषेक करते और हर-हर महादेव का उद्घोष करते श्रद्धालुओं का दिख जाना आम बात है. हर, शिवजी का ही एक नाम है, जो हरि (विष्णुजी) के नाम के सापेक्ष है. इसके अलावा हर-हर महादेव का एक अर्थ यह भी है, हम सभी महादेव हैं. यह अर्थ सनातन के उस अद्वैत सिद्धांत की ओर ले जाता है, जिसकी साकार कल्पना का नाम 'अहम् ब्रह्मास्मि' है और उसका ही दूसरा रूप शिवोऽहम् है.
अहं ब्रह्मास्मि और शिवोऽहम्
ये दोनों ही कॉन्सेप्ट दो होते हुए भी एक ही हैं और यह कहते हैं कि संसार में जो कुछ भी दिख रहा है और जो नहीं भी दिख रहा है, वह ब्रह्म है, वही शिव है. ये व्याख्या हमें फिर से ऋग्वेद की ओर ले चलती है, जहां लिखा है एकम् सत विप्रः बहुधा वदंति. इसी सूक्त की व्याख्या छान्दोग्य उपनिषद कुछ इस तरह करते हुए कहता है, 'एकोहं बहुस्याम:'. यानि कि मैं एक हूं और बहुत होना चाहता हूं. लिङ्ग पुराण के अनुसार शिवलिंग निराकार ब्रह्मांड वाहक है, अंडाकार पत्थर ब्रह्मांड का प्रतीक है और पीठम् ब्रह्मांड को पोषण व सहारा देने वाली सर्वोच्च शक्ति है.
क्या कहता है स्कंद पुराण
इसी तरह की व्याख्या स्कन्द पुराण में भी है, इसमें यह कहा गया है "अनंत आकाश (वह महान शून्य जिसमें समस्त ब्रह्मांड बसा है) शिवलिंग है और पृथ्वी उसका आधार है. समय के अंत में, समस्त ब्रह्मांड और समस्त देवता व इश्वर शिवलिंग में विलीन हो जाएंगे." महाभारत में द्वापर युग के अंत में भगवान शिव ने अपने भक्तों से कहा कि आने वाले कलियुग में वह किसी विशेष रूप में प्रकट नहीं होगें, वह निराकार और सर्वव्यापी रहेंगे. उनका यही निराकार स्वरूप शिवलिंग है.
किस युग में किस धातु के लिंगम का रहा है महत्व?
वैदिक कर्मों के प्रति श्रद्धा भक्ति रखने वाले मनुष्यों के लिए पार्थिव लिंग सभी लिंगों में सर्वश्रेष्ठ है. इसके पूजन से मनोवांछित फलों मिलते हैं, ऐसा महत्व शिव पुराण, रुद्र संहिता और रावण संहिता में भी बताया गया है. जिस तरह सतयुग में रत्न का, त्रेता में स्वर्ण का, व द्वापर में पारे का महत्व है, उसी तरह कलयुग में पार्थिव लिंग का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. नदियों में गंगा, व्रतों में शिवरात्रि का व्रत, दैवी शक्तियों में ‘देवी पराशक्ति’ श्रेष्ठ हैं ,वैसे ही सब लिंगों में ‘पार्थिव लिंग’ श्रेष्ठ है.
पार्थिव लिंग का पूजन धन-वैभव, आयु और लक्ष्मी देने वाला तथा संपूर्ण कार्यों को पूर्ण करने वाला है. जो मनुष्य भगवान शिव का पार्थिव लिंग बनाकर प्रतिदिन पूजा करता है उसे सहज ही शिव पद और शिवलोक मिल जाता है. पार्थिव शिवलिंग की निष्काम भाव से पूजन करने वाले को मुक्ति मिल जाती है. पार्थिव लिंग की संख्या मनोकामना पर निर्भर करती है.
पार्थिव शिवलिंग की संख्या
बुद्धि की प्राप्ति के लिए एक हजार पार्थिव शिवलिंग, धन की प्राप्ति के लिए डेढ़ हजार शिवलिंगों तथा वस्त्र आभूषण प्राप्ति हेतु 500 शिवलिंगों का पूजन करें . भूमि का इच्छुक 1000, दया भाव चाहने वाला 3000, तीर्थ यात्रा करने की चाह रखने वाले को 2000 तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए इच्छुक मनुष्य को एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों की पूजा-आराधना करें. पार्थिव लिंगों की पूजा करोड़ यज्ञों का फल देने वाली है तथा उपासक को भोग और मोक्ष प्रदान करती है. इसके समान कोई और श्रेष्ठ नहीं इस प्रकार शिवलिंग का नियमित पूजन भवसागर पार करने का सबसे सरल तथा उत्तम उपाय है.
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