जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति के इस्तीफे को 4 दिन पूरे होने जा रह हैं पर हैरानी है कि अब तक वो खास बात सामने नहीं आ सकी जिस कारण उन्हें अचानक सरकार से हटना पड़ा या. इस बारे में अब तक न धनखड़ ही कुछ कह सके हैं और न ही सरकार की ओर से कुछ ऐसी बात कही गई है जिससे कुछ सुराग लग सके.
अब तक धनखड़ के हटने की जितनी भी थियरी सामने आईं हैं वो सब सामान्य हैं. जिनसे लगता है कि हां एक कारण ये भी हो सकता है जगदीप धनखड़ को हटाए जाने का. पर अब तक वो मूल कारण सामने नहीं आया जो कुछ आसामान्य लगे. जिसे सुनकर ऐसा लगे कि हां, धनखड़ का ये काम ऐसा था कि सरकार की मजबूरी बन गई कि अब उन्हें बिना हटाये काम नहीं चलने वाला है.
जिस तरीके की बातें अब तक सामने आईं हैं उनसे स्पष्ट हो गया है कि धनखड़ खुश होकर नहीं गए हैं. दूसरे प्रधानमंत्री मोदी का उनके विदाई के लिए किया गया रूखा ट्वीट, अब तक किसी बीजेपी नेता का उनका हाल न लेना भी यह साबित करता है कि कुछ इतना खराब हुआ है जिसकी कोई चर्चा भी नहीं करना चाहता है.
जिस तरह धनखड़ बीजेपी और आरएसएस के प्रति अपनी स्वामीभक्ति प्रदर्शित करते रहे हैं उससे कम से कम ये तो लगता ही है कि उन्हें किसी छोटी मोटी बात के लिए नहीं हटाया गया होगा. दूसरे जिस तरह धनखड़ सैक होने के बाद भी अपना मुंह बंद किए हैं वो भी ये दर्शाता है कि कुछ न कुछ ऐसा हुआ है जिसे दोनों पक्ष ( धनखड़ और सरकार ) सामने लाने से बच रहा है. अगर बीजेपी सरकार ने उनके साथ जोर जबरदस्ती की होती तो बहुत उम्मीद थी कि वो सत्यपाल मलिक की तरह बागी हो गए होते. पर जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में विदाई भाषण देना भी उचित नहीं समझा. वो अब तक दोनों तरफ की चुप्पी यही बताती है कि बात कुछ ऐसी ही है जो सामने न आए तो बेहतर है.
धनखड़ का अभी तक जो व्यक्तित्व सामने आया है उससे तो यही लगता है की अगर उन्हें एक बार इशारा किया जाता तो सही रास्ते पर आ जाते. उन्हें पद से हटाने की नौबत ही नहीं आती. याद करिए कि उन्होंने अपनी पार्टी को खुश करने के लिए पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नाक में दम करने के लिए संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखने का संकोच नहीं किया. उन्होंने बीजेपी के पक्ष में जबरदस्त बैटिंग की थी. यही कारण रहा कि उन्हें शानदार प्रोमोशन मिला और वे देश के उपराष्ट्रपति बन गए. उन्हें पता था कि सरकार का रवैया जूडिशरी को लेकर क्या है. सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियों की बात हो या एक्टिविज्म, धनखड़ ने खुलकर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की. जरूरत होने पर उन्होंने पद पर रहते हुए राष्ट्रीय स्वयं संघ की तारीफ भी की.
उनके जीवन के पिछले कुछ साल ऐसे हैं जिन्हें इस तरह देखा जा सकता है कि वो किसी भी कीमत पर अपनी पार्टी के सर्वश्रेष्ठ कार्यकर्ता बने हुए दिखना चाहते थे. उन्हें बीजेपी के खास मुद्दे पता थे, उन्हें पता था कि बीजेपी के टॉप लीडर्स को क्या पसंद है. उन्होंने हर संभव कोशिश की उन मुद्दों पर वो अति सक्रिय दिखें. पर कहां गड़बड़ हो गई ये अभी तक सामने नहीं आ पाया है.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में बताया गया कि वो पीएम और प्रेसिडेंट की तरह अपनी फोटो सरकारी कार्यालयों में लगवाना चाहते थे , वो अपनी फ्लीट में मर्सडीज गाड़ियों को रखवाना चाहते थे. हो सकता है कि ये बातें सही रही हों पर इन बातों में इतना दम नहीं दिखता कि एक वाइस प्रेसिडेंट को घंटे भर के अंदर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए. यह भी कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग को राज्यसभा में शुरू करवा कर वो कांग्रेस के हाथ में खेलने लगे थे.पर ये तर्क भी इतना वजनदार नहीं है जिसे ये कहा जाए कि इसके चलते उन्हें रूसवा होकर कूचे से निकलना पड़े.
धनखड़ के इस्तीफे के दूसरे दिन पीएम मोदी एक बेहद रूखा ट्वीट करते हैं. पीएम के इस ट्वीट ये पता चलता है कि कोई बहुत बड़ी गलती की होगी धनखड़ ने जो अभी सामने नहीं आया है. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये खासियत रही है कि उन्होंने अपना और पार्टी का मजाक उड़ाने वालों को भी बहुत सम्मान दिया है. धनखड़ ने तो पार्टी की बहुत सेवा की है. फिल्म एक्टर सैफ अली खान रहे हों पंजाबी पॉप सिंगर दिलजीत दोसांझ , सभी के लिए उन्होंने अपने दरवाजे खोले और दिल खोलकर उनसे बातें की.
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