पिछले 11 साल में बीजेपी ने उत्तर भारत, मध्य भारत, पश्चिम भारत, पूर्वी भारत और पूर्वोत्तर पर करीब करीब एकछत्र अपना साम्राज्य फैला लिया है. पर बीजेपी की टीस है कि बंगाल अभी भी उसके हाथ से बाहर है. बीजेपी सारे दांव अपना कर भी टीएमसी को सत्ता से हटा नहीं सकी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा के हर तीर को भोथरा कर दिया. 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद ऐसी फिजां बनी थी कि लगता था कि 2021 का विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत निश्चित है. सारे ओपिनियन पोल और राजनीतिक विश्लेषकों ने बीजेपी की जीत की घोषणा कर रखी थी. टीएमसी में पार्टी छोड़ने की होड़ लगी हुई थी. पर ममता बनर्जी ने अपना दुर्ग बरकरार ही नहीं रखा बल्कि बीजेपी को बुरी तरह पटखनी भी दी. 2024 के लोकसभा चुनावों में भी यही हाल था. सारे ओपिनियन पोल यही कह रहे थे कि बीजेपी कई जगहों से हार रही है पर बंगाल में बड़ी बहुमत हासिल कर रही है. पर एक बार फिर बीजेपी को ममता के आगे घुटने टेकने पड़े.
जाहिर है कि बीजेपी के रणनीतिकारों को ऐसा लगा होगा कि कि अब बंगाल फतह के लिए नई रणनीति अपनानी होगी. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं. राज्य इकाई के नए नवेले बीजेपी अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य के आने के बाद बंगाल में यही चर्चा जोरों पर है कि पार्टी ने यहां अपनी धुन बदल दी है. उसने अपनी कट्टरपंथी राजनीति को यहां मध्यमार्गी बनाने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. समिक भट्टाचार्य हर रोज कोई भी ऐसा मौका नहीं छोड़ रहे हैं जिससे राज्य में ये संदेश जाए कि बीजेपी सबको साथ लेकर चलना चाहती है. वो बार-बार ऐसा संदेश देते हैं कि पार्टी की नजर में हिंदू -मुसलमान में कोई अंतर नहीं है. बस पार्टी मुस्लिम बच्चों की हाथ में पत्थर की जगह किताब रखना चाहती है.जाहिर है कि बीजेपी के इस बदले रुख से बहुत लोगों को हैरानी हो रही है. पर ये सही है कि बीजेपी ने यहां अलग राह पकड़ ली है. आइये देखते हैं कि ऐसा क्यू और कैसे हुआ है?
नए अध्यक्ष के आने के बाद मुसलमानों को लेकर बदली बदली नजर आ रही बीजेपी
समिक भट्टाचार्य इसी महीने पश्चिम बंगाल बीजेपी के नए अध्यक्ष बने हैं . उन्होंने कुर्सी संभालते ही पार्टी की मुस्लिम समुदाय के प्रति रणनीति में उल्लेखनीय बदलाव किया है. जिन लोगों ने पिछले दशक में वेस्ट बंगाल की राजनीति नजदीक से देखा है उन्हें पता होगा कि बीजेपी की रणनीति CAA-NRC जैसे ऐसे मुद्दों पर केंद्रित थी जिनसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंदुओं का ध्रुवीकरण किया जा सके. भट्टाचार्य ने इन सबसे अलग दृष्टिकोण अपनाया है. भट्टाचार्य कहते हैं कि बीजेपी मुसलमानों के खिलाफ नहीं, बल्कि कट्टरपंथ के खिलाफ है. हम उनके हाथ में पत्थर की जगह किताब देना चाहते हैं. वे मुस्लिम युवाओं से शिक्षा और रोजगार के लिए बीजेपी के साथ आने की अपील करते हैं. वो आरोप लगाते हैं कि टीएमसी ने मुसलमानों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया. इतना नहीं समिक कोलकाता की एक रैली में मुहर्रम और दुर्गा पूजा के जुलूसों को एक साथ शांतिपूर्ण आयोजन की वकालत करते हैं. यह पुरानी रणनीति से अलग है जब बीजेपी जय श्री राम जैसे नारे हिंदू मतदाताओं को लामबंद करने के लिए इस्तेमाल करती थी.
पहले की आक्रामक, हिंदुत्व-केंद्रित और ध्रुवीकरण-आधारित रणनीति की तुलना में भट्टाचार्य संतुलित और बंगाल के स्थानीय संदर्भों को ध्यान में रखने वाली रणनीति अपनाते नजर आते है. बंगाल में बीजेपी की रणनीति किस कदर बदल चुकी है ये समिक के इस बयान से समझना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा कि राज्य में राजनीतिक हिंसा के 90% पीड़ित मुस्लिम हैं.
ध्रुवीकरण की रणनीति काम नहीं आई बंगाल में
पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने लंबे समय तक एक्स्ट्रीम ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई . बीजेपी को लगता था कि हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने के लिए टीएमसी को मुस्लिम समर्थक साबित करना काफी होगा. यह रणनीति खासकर 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनावों में स्पष्ट देखी गई थी.
बीजेपी ने हिंदू पहचान को मजबूत करने के लिए जय श्री राम जैसे नारों और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर अपना फोकस बनाया. 2019 में जय श्री राम नारा टीएमसी के खिलाफ प्रतीकात्मक हथियार बन गया. ममता बनर्जी को देखते ही बीजेपी कार्यकर्ता जय श्रीराम के नारे लगाते और ममता बनर्जी कुछ तीखी प्रतिक्रिया दे देतीं.
इसी तरह बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठ को बड़ा मुद्दा बनाया, खासकर बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में. CAA को हिंदू शरणार्थियों के पक्ष में पेश किया गया, जबकि NRC को अवैध मुस्लिम प्रवासियों के खिलाफ बताया गया. इससे मुस्लिम समुदाय में बीजेपी के प्रति अविश्वास गहराया. बीजेपी ने यह साबित करने की कोशिश की कि टीएमसी मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए कुछ भी कर सकती है.
इमामों को भत्ते और मुस्लिम-प्रधान क्षेत्रों में विशेष योजनाओं आदि को टार्गेट करके बीजेपी ने इस आरोप को और पुख्ता करने की कोशिश की. इस तरह बीजेपी ने हिंदू मतदाताओं के बीच यह धारणा बनाई कि टीएमसी केवल मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करती है. उदाहरण के लिए, 2021 में बीजेपी ने टीएमसी की नीतियों को वोट जिहाद से जोड़ा. बीजेपी को इसका फायदा हुआ . पर सत्ता में आने के लिए इतना ही काफी नहीं था.
क्यों बीजेपी के लिए रणनीति बदलना मजबूरी बन गया
शुरुआत में तो ध्रुवीकरण की रणनीति बीजेपी के लिए फायदेमंद रही. कम से कम बंगाल में दूसरे नंबर की पार्टी बनने में बीजेपी की यह रणनीति बहुत काम आई पर टीएमसी को धूल चटाने के लिए पार्टी को इससे आगे कुछ करना होगा. बंगाल की जटिल सामाजिक-राजनीतिक परिवेश के चलते बीजेपी को यह समझ में आ गया कि यहां अगर सत्ता में आना है तो संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा.
दरअसल हिंदुओं के ध्रुवीकरण ने बंगाल की 30% मुस्लिम आबादी को पूरी तरह अलग कर दिया. हालत यह हो गई कि बंगाल में टीएमसी को बिना कुछ किए 30 परसेंट वोट मिलने निश्चित हो गए. सोचिए बंगाल में 30 परसेंट वोट के साथ टीएमसी की शुरूआत होती है. CAA-NRC और घुसपैठ जैसे मुद्दों ने बीजेपी के प्रति मुस्लिम समुदाय में गहरा अविश्वास पैदा किया. टीएमसी ने इसका फायदा उठाकर मुस्लिम वोटों को एकजुट किया. मुसलमानों को लगता है कि अगर बीजेपी को हराना है तो कांग्रेस और लेफ्ट को एक वोट नहीं जाना चाहिए. बीजेपी को इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए समावेशी रुख अपनाना जरूरी हो गया.
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