नेपाल की सड़कों पर रविवार को हजारों की संख्या में उतरे युवाओं ने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सरकार की मनमानी के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया. इसे 'जनरेशन जेड रेवोल्यूशन' (Gen-Z Revolution) नाम दिया गया है. प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार के हालिया सोशल मीडिया बैन के फैसले से भड़के इस आंदोलन के मूल में देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और असमानता है.
काठमांडू सहित पोखरा, बीराटनगर और बुटवल जैसे शहरों में प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर उतरकर ओली सरकार का विरोध किया. राजधानी काठमांडू में प्रदर्शनकारी संसद भवन में घुस गए, तोड़फोड़ और आगजनी की. नेपाल के अलग-अलग शहरों में पुलिस के साथ झड़पों में अब तक कम से कम 16 लोगों की मौत हो चुकी है और 100 से अधिक घायल हुए हैं. प्रदर्शनकारी, ज्यादातर 28 वर्ष से कम उम्र के युवा हैं, जो स्कूल-कॉलेज यूनिफॉर्म पहनकर सड़कों पर उतरे. वे 'भ्रष्टाचार बंद करो, सोशल मीडिया नहीं' और 'ओली इस्तीफा दो' जैसे नारे लगा रहे थे.
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मैतिघर मंडला (काठमांडू के मध्य में स्थित एक प्रतीकात्मक स्मारक) से शुरू हुआ प्रोटेस्ट मार्च न्यू बनेश्वर स्थित संसद भवन तक पहुंचा, जहां सुरक्षाबलों ने बैरिकेड्स तोड़ने पर आंसू गैस, वाटर कैनन और फिर लाइव फायरिंग की. काठमांडू जिला प्रशासन ने दोपहर 1 बजे से रात 10 बजे तक कर्फ्यू लगा दिया, जबकि नेपाल आर्मी को भी तैनात किया गया.
सोशल मीडिया बैन ने किया आग में घी का काम
ओली सरकार ने 4 सितंबर को फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स (ट्विटर), यूट्यूब, व्हाट्सएप समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया, क्योंकि ये रजिस्ट्रेशन की शर्तें पूरी नहीं कर पाए. सरकार का दावा है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और नियमन का मामला है, लेकिन युवा इसे सेंसरशिप का हथकंडा मानते हैं. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने एक रैली में कहा, 'राष्ट्रीय स्वतंत्रता कुछ व्यक्तियों की नौकरियों से ऊपर है. कानून तोड़ना स्वीकार्य नहीं.'
लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह बैन भ्रष्टाचार उजागर करने वाली आवाजों को दबाने की कोशिश है. टिकटॉक और रेडिट जैसे वैकल्पिक प्लेटफॉर्म्स पर #NepoKid ट्रेंड वायरल हो गया, जिसमें नेताओं के बच्चों की लग्जरी लाइफस्टाइल (महंगी कारें, विदेशी शिक्षा) को टैक्सपेयर्स के पैसे से जोड़ा गया. एक प्रदर्शनकारी युजन राजभंडारी (24) ने कहा, 'हम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं, जो संस्थागत हो चुका है. सोशल मीडिया बैन ने हमें सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया.' इक्षामा तुमरॉक (20) नाम के एक प्रदर्शनकारी ने कहा, 'हमारी पीढ़ी अब सहन नहीं करेगी. हम बदलाव लाएंगे.'
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नेपाल की ओली सरकार में भ्रष्टाचार के मामले
यह आंदोलन अचानक नहीं भड़का. 2025 में ओली सरकार पर भ्रष्टाचार के कई बड़े आरोप लगे हैं, जिन्होंने जनता में गुस्सा भरा दिया.
राजकुमार गुप्ता रिश्वत कांड: जुलाई 2025 में संघीय मामलों के मंत्री राजकुमार गुप्ता का कासकी जिले में लैंड कमीशन की नियुक्तियों के लिए 78 लाख नेपाली रुपये की रिश्वत मांगते हुए एक ऑडियो लीक हुआ था. सार्वजनिक और राजनीतिक निंदा के बाद उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा.
मधव कुमार नेपाल लैंड घोटाला: पूर्व प्रधानमंत्री मधव कुमार नेपाल सहित 92 लोगों पर 15 साल पुराने लैंड ट्रांसफर में सीआईएए (Commission for the Investigation of Abuse of Authority) ने मुकदमा चलाया. आरोप है कि भूमि स्वामित्व सीमा का उल्लंघन करने से 185.85 मिलियन नेपाली रुपये (लगभग 1.35 मिलियन यूएसडी) का नुकसान हुआ. इस मामले के आरोपियों में नेपाल सरकार के कुछ पूर्व मंत्रियों के नाम भी शामिल थे.
नेपाल टेलीकॉम बिलिंग स्कैंडल: जून 2025 में 18 अधिकारियों, जिसमें वर्तमान और पूर्व एमडी शामिल हैं, पर बिलिंग सिस्टम कॉन्ट्रैक्ट में हेराफेरी का केस हुआ. सरकार ने उनसे 334.8 मिलियन नेपाली रुपये की भरपाई की मांग की.
विजिट वीजा एक्सटॉर्शन: मई 2025 में त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के इमिग्रेशन ऑफिस पर सीआईएए ने छापा मारा. जॉइंट सेक्रेटरी तीर्थ राज भट्टराई को वीजा भ्रष्टाचार और तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया गया. विपक्ष के दबाव से हाई-लेवल जांच समिति बनी.
पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट घोटाला: चीनी लोन से बने एयरपोर्ट में 14 अरब नेपाली रुपये के गबन का आरोप लगा. संसदीय जांच में अनियमितताएं सामने आईं, लेकिन दस्तावेजों की कमी से जांच रुकी.
गिरी बंधु टी एस्टेट लैंड ऑर्डिनेंस विवाद: जनवरी 2025 के ऑर्डिनेंस ने भूमि सीमा बढ़ाने के लिए कानून बदले, जिसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की कोशिश माना गया. इससे अवमानना याचिका दायर हुई और जनाक्रोश फैला.
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भ्रष्ट्राचार के इन हालियां मामलों से ओली सरकार सवालों के घेरे में आ गई. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के 2024 इंडेक्स में नेपाल 100वें स्थान पर है, जहां भ्रष्टाचार को 34/100 स्कोर मिला. युवा बेरोजगारी (लगभग 32% बेरोजगार) और विदेश पलायन (हर दिन 2000 नेपाली देश छोड़ते हैं) जैसे मुद्दों ने आग में घी का काम किया.
नेपाल में युवाओं का आंदोलन किसी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं है; यह स्वतंत्र है. काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया, लेकिन उम्र सीमा के कारण शामिल नहीं हुए, क्योंकि यह Gen-Z (1997 से 2012 के बीच जन्मे युवा) आंदोलन है. नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने भी युवाओं का समर्थन किया है.
विश्लेषकों का क्या है मानना?
विश्लेषकों का मानना है कि यह आंदोलन नेपाल की राजनीति बदल सकता है. ईस्ट एशिया फोरम के अनुसार, ओली सरकार की अस्थिरता और भ्रष्टाचार ने जनता का विश्वास खो दिया है. युवाओं का यह आंदोलन नेपाल में पारदर्शिता और डिजिटल स्वतंत्रता की मांग को मजबूत कर सकती है. हालांकि, ओली सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटाफॉर्म्स से बैन हटाने या प्रशासनिक सुधारों का कोई संकेत नहीं दिया है. नेपाल एक निर्णायक मोड़ पर है और दुनिया की नजरें काठमांडू पर टिकी हैं.
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