मध्य प्रदेश के एक आदिवासी इलाके से एजुकेशन सिस्टम को आईना दिखाने वाली तस्वीर सामने आई है. तस्वीर बताती है कि जहां एक ओर केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति लागू करने को लेकर गंभीर है, वहीं मध्य प्रदेश में आदिवासी बच्चों के लिए पढ़ाई की कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही नहीं है. ये तस्वीर है बमोरी विधानसभा के एक आदिवासी इलाके की. तस्वीर में दिख रहा है कि स्कूली बच्चों को छप्पर से बने स्कूल में बैठकर पढ़ाई करवाई जा रही है.
दरअसल, पहले ये स्कूल एक सरकारी भवन में संचालित था, लेकिन भवन के हालात जर्जर होने के कारण स्कूल को एक कच्चे छप्पर के नीचे शिफ्ट कर दिया गया, जिसे पंचायत ने बनवाया. अब अधिकारियों का कहना है कि स्कूल में ज्यादा बच्चों का नाम दर्ज नहीं है, इसलिए नया भवन स्वीकृत नहीं हो पा रहा है. आदिवासी बच्चों को मजबूरी में छप्पर के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है. बारिश के मौसम में तो हालात और भी ज्यादा खराब हो जाते हैं और बच्चों की किताबें, कपड़े, स्कूल बैग भीग जाते हैं.
नहीं मिल रहा फंड
अगर गुना जिले के सरकारी स्कूलों की बात करें तो 461 में से केवल 95 स्कूलों को ही सरकारी मदद मिल पाई है. मौजूदा शिक्षा सत्र में 461 स्कूलों के लिए फंड मांगा गया था, लेकिन केंद्र सरकार ने 95 स्कूलों के लिए राशि भेजी. वहीं, 2023-24 में तो एक भी स्कूल के लिए पैसा स्वीकृत नहीं किया गया, जबकि 269 स्कूलों की मरम्मत के लिए पैसा मांगा गया था. डीपीसी ऋषि शर्मा ने बताया कि स्कूलों की मरम्मत के लिए केंद्र सरकार छात्रों की संख्या के हिसाब से पैसा जारी करती है. ऐसे में वे स्कूल छूट जाते हैं, जिनमें बच्चों की संख्या कम हो. इस स्कूल के साथ भी ऐसा ही हुआ है.
3 साल से छप्पर के नीचे पढ़ रहे
मारकी महू के सांगई गांव के हालात भी खराब हैं. गांव में केवल स्कूल की इमारत के अलावा कोई दूसरा सरकारी भवन ही नहीं है. तीन प्रधानमंत्री आवास हैं जो यहां रहने वालों के परिवार वालों की पूर्ति नहीं कर पाते. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने बताया कि पिछले तीन साल से छप्पर के नीचे बैठकर पढ़ाई लिखाई कर रहे हैं. बच्चों के परिवारवालों से बात की तो उन्होंने बताया कि स्कूल को लेकर कोई गंभीर नहीं है. बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं, छप्पर के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है. अगर बच्चों को संख्या कम है तो क्या स्कूल का भवन नहीं बनेगा, ये कैसा न्याय है?
सांगई गांव के सरकारी शिक्षक ने बताया कि स्कूल की पुरानी बिल्डिंग में पानी भरता था,पढ़ाई लिखाई में दिक्कत आती थी. इसलिए गांव वालों से दूसरे स्थान पर व्यवस्था के लिए कहा था. अब छप्पर के नीचे बैठकर पढ़ाई करा रहे हैं. 40 से ज्यादा बच्चे पढ़ने आते हैं.
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