आजकल, भारत में घर खरीदना केवल एक बुनियादी जरूरत नहीं, बल्कि यह लोगों की पहचान, प्रतिष्ठा और जीवनशैली का प्रतीक भी बन गया है, लोग अब केवल एक सुरक्षित आवास की तलाश में नहीं हैं, बल्कि वे एक ऐसा घर चाहते हैं जो उनकी जीवनशैली को दर्शाता हो. इस बदलाव की वजह से, लग्जरी हाउसिंग की मांग तेजी से बढ़ रही है.
aajtak.in से बातचीत में रियल एस्टेट एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा कहते हैं- 'दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और गुरुग्राम जैसे शहरों में 80 लाख से लेकर पांच करोड़ रुपये तक के फ्लैट्स को ‘अफोर्डेबल लग्जरी’ कहकर बेचा जा रहा है. प्रोजेक्ट्स को “स्काई-लिविंग”, “ग्लोबल रेजिडेंस” या “लिमिटेड एडिशन होम्स” जैसे नाम दिए जा रहे हैं. सवाल यह है कि क्या वाकई यह लग्जरी है, या फिर केवल दिखावे और उपभोक्तावाद का नया जाल?'
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भारत में घर खरीदारों की मानसिकता पिछले कुछ सालों में बदली है. पहले जब लोग घर खरीदते थे, तब लोकेशन उसकी कीमत और बेसिक सुविधाएं देखते थे, लेकिन अब लोगों की प्राथमिकता बदल गई है. अब लोगों को विदेशी डिजाइन वाला किचन, स्मार्ट होम, प्राइवेट जिम, स्वीमिंग पूल जैसी सुविधाएं आकर्षित कर रही हैं. भले ही ईएमआई के जाल में फंसा वो शख्स इन सब चीजों का इस्तेमाल कर पाए या नहीं.
प्रदीप मिश्रा आगे कहते हैं- 'बिल्डर लोगों की इसी सोच का फायदा उठा रहे हैं. वो लोगों को लुभावने सपने दिखाते हैं और उन्हें लग्जरी घर बेचते हैं. लोगों को ऐसे दिखाया जाता है कि अगर आपने यह अवसर खो दिया, तो आप जीवन की किसी बड़ी उपलब्धि से वंचित रह जाएंगे.'
लग्जरी घर की सुविधाओं का कितना इस्तेमाल करते हैं ?
लग्जरी हाउसिंग की सबसे बड़ी पहचान उसकी सुविधाओं की लंबी लिस्ट होती है, इसमें से कुछ सुविधाएं वास्तव में उपयोगी होती हैं, जबकि कई केवल दिखावे के लिए होती हैं. स्विमिंग पूल और जिम अधिकतर सोसायटी में मौजूद हैं, लेकिन 70-80% फ्लैट खरीदार उनका उपयोग नियमित रूप से नहीं कर पाते हैं, वीआर गेमिंग जोन, पेट स्पा या मेडिटेशन पॉड जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल चुनिंदा लोग ही करते हैं.
प्रदीप आगे कहते हैं- 'आजकल की सोसायटी में भारी भरकम मेंटनेंस कास्ट लोगों के लिए बड़ी चुनौती है, जहां आम सोसायटी में 3-5 रुपये प्रति वर्गफीट मेंटनेंस चार्ज होता है, वहीं लग्जरी सोसायटी में 15-30 रुपये प्रति वर्गफीट तक रेट होता है. इसका बोझ घर खरीदारों के जेब पर भारी पड़ता है.'
आजकल कई प्रोजेक्ट तो बड़े ब्रांड के नाम पर बेचे जाते हैं. खरीदारों को भरोसा दिलाया जाता है कि वे केवल एक घर नहीं, बल्कि एक “ब्रांड” खरीद रहे हैं. लेकिन असलियत कुछ और है, रीसेल वैल्यू अक्सर उतनी मजबूत नहीं होती जितनी लॉन्चिंग के समय बताई जाती है. रेंटल यील्ड केवल 2-3% तक ही रहती है, जबकि मिड-सेगमेंट फ्लैट्स 4-5% तक रिटर्न दे देते हैं.
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खरीदार की मानसिकता और सामाजिक दबाव
प्रदीप कहते हैं- 'आजकल मिडिल क्लास में ये धारणा तेजी से बढ़ रही है कि अगर सारी सेविंग लगानी है, तो क्यों न ऐसा घर लिया जाए, जिसमें सारी सुविधाएं भी हो और दूसरे लोगों से अलग भी दिखे. इस सामाजिक दबाव के चलते लोग जरूरत से बड़े और महंगे घर खरीद रहे हैं. जिसका नतीजा भारी भरकम ईएमआई और मेंटेनेंस का बोझ मिलता है. कई बार तो लोगों को अपनी दूसरी जरूरतों के साथ भी समझौता करना पड़ता है.'
स्मार्ट खरीदार के लिए चेकलिस्ट
लग्जरी घर को देखकर आकर्षित होने से पहले खरीदारों को कुछ व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए
- डेडिकेटेड पार्किंग और उचित लिफ्ट-टू-फ्लैट अनुपात देखें.
- सोसायटी में अधिक भीड़ रहने की गुणवत्ता को प्रभावित करती है.
- महंगे इंटीरियर से ज़्यादा अहम यह है कि घर से आपके जरूरत की चीजों की दूरी कितनी है.
- ये भी चेक करें कि कौन सी सुविधाएं आपके लिए वास्तव में उपयोगी होंगी.
लग्जरी का अर्थ महज इटालियन मार्बल, महंगे झूमर या चमकदार टावर नहीं है, असली लग्जरी वह है जो जिंदगी के लिए जरूरी हो, जहां से आपको ऑफिस जाने में और बच्चों को स्कूल जाने में ज्यादा वक्त न लगे. सुरक्षित और शांत माहौल हो. बच्चों और बुजुर्गों के लिए सुविधाएं हो, सिक्योरिटी हो. अगर कोई प्रोजेक्ट इन मूलभूत सुविधाएं देता है तो वही वास्तव में लग्जरी कहलाने योग्य है.
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