हिमालय पार कर तिब्बत पहुंच गया मॉनसून... क्या आने वाली है बड़ी मुसीबत?

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2025 में एक असामान्य मौसमी घटना ने वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून (Southwest Monsoon) की नम हवाओं ने हिमालय पर्वत को पार कर तिब्बत तक पहुंचने का संकेत दिया है. यह घटना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हो सकती है, जो दक्षिण एशिया के मौसम को बदल रही है.

आमतौर पर हिमालय मॉनसून की नमी को रोकता है, लेकिन इस बार उपग्रह चित्रों से पता चला कि नमी तिब्बत तक गई. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून (SWM) भारत में जून से सितंबर तक बारिश लाता है. यह नम हवाएं अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर आती हैं. हिमालय की ऊंची चोटियों से टकराकर भारत में बारिश करती हैं.

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हिमालय इन हवाओं को तिब्बत तक जाने से रोकता है, जिससे तिब्बत शुष्क रहता है. तिब्बत में सर्दियों और वसंत में पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) से थोड़ी बर्फबारी होती है. लेकिन सितंबर 2025 के पहले हफ्ते में, वैज्ञानिकों ने उपग्रह चित्रों (सैटेलाइट इमेज) से देखा कि मॉनसून की नमी हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और लद्दाख के ऊपर से तिब्बत तक पहुंची.

monsoon crosses himalaya

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के ग्लेशियोलॉजिस्ट मनीष मेहता ने कहा कि उपग्रह नक्शे से साफ है कि नमी हिमालय को पार कर तिब्बत की ओर गई. यह एक असाधारण मौसमी घटना है, क्योंकि हिमालय सामान्य रूप से नमी को रोकता है. 

क्यों हुआ यह बदलाव?

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह घटना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ी हो सकती है. इसके कुछ कारण हैं...

पश्चिमी विक्षोभ की भूमिका: 2025 के मॉनसून सीजन में 19 पश्चिमी विक्षोभ देखे गए, जो सामान्य से ज्यादा हैं. इनमें से तीन सितंबर के पहले हफ्ते में आए. पश्चिमी विक्षोभ आमतौर पर सर्दियों में सक्रिय होते हैं, लेकिन इस बार मॉनसून के दौरान इनकी संख्या बढ़ी. ये विक्षोभ मॉनसून की नम हवाओं के साथ मिलकर नमी को हिमालय के पार ले गए.

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वायुमंडलीय नदियां (Atmospheric Rivers): भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे के वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने बताया कि पश्चिमी विक्षोभ या वायुमंडलीय नदियां (जो उप-उष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम का हिस्सा हैं) मॉनसून की नमी को हिमालय के पार ले जा सकती हैं. यह घटना कितनी असामान्य है, इसके लिए और डेटा की जरूरत है.

monsoon crosses himalaya

ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव: ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे मौसमी प्रक्रियाएं बदल रही हैं. गर्मी के कारण हिमालय और तिब्बत में बर्फ कम हो रही है, जिससे नमी का रास्ता खुल सकता है. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), बॉम्बे के प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड्डे ने कहा कि हिमालय की तलहटी में तेज हवाएं नमी को ऊपर ले जाती हैं, जिससे बादल फटने की घटनाएं होती हैं. नमी तिब्बत तक जा सकती है.

हिमालय की भौगोलिक संरचना: कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय में कुछ कम ऊंचाई वाले रास्ते या गलियारे हो सकते हैं, जहां से नमी तिब्बत तक पहुंची. इसके लिए स्थानीय भू-आकृति (टोपोग्राफी) का अध्ययन जरूरी है.

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यह घटना क्यों महत्वपूर्ण है?

हिमालय को पार कर तिब्बत तक नमी का पहुंचना एक बड़ा मौसमी बदलाव है. इसके कई कारण और प्रभाव हो सकते हैं...

जलवायु परिवर्तन का सबूत: यह घटना दर्शाती है कि ग्लोबल वॉर्मिंग मौसम के मूल ढांचे को बदल रहा है. हिमालय जो सदियों से मॉनसून को रोकता रहा, अब नमी को पार करने दे रहा है. यह दक्षिण एशिया के मौसम पर बड़े पैमाने पर असर डाल सकता है.

हिमालय में आपदाएं: 2025 में मॉनसून सीजन में पश्चिमी विक्षोभों की संख्या बढ़ने से हिमालय में भारी बारिश, बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं बढ़ीं. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली और हर्षिल गांवों में बाढ़ से चार लोग मरे और 100 लापता हुए.

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तिब्बत का पर्यावरण: तिब्बत एक शुष्क क्षेत्र है, जहां कम बारिश होती है. अगर मॉनसून की नमी वहां नियमित रूप से पहुंचने लगे, तो वहां का पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम), जैसे पौधे, जानवर और जल संसाधन बदल सकता है.

कृषि और पानी पर प्रभाव: भारत में मॉनसून 80% बारिश लाता है, जो खेती के लिए जरूरी है. अगर नमी हिमालय पार कर तिब्बत जाएगी, तो भारत में बारिश की मात्रा कम हो सकती है, जिससे खेती और पानी की उपलब्धता प्रभावित होगी.

वैज्ञानिकों की राय

वैज्ञानिक इस घटना को असामान्य मानते हैं, लेकिन इसके लंबे समय के प्रभावों को समझने के लिए और शोध की जरूरत है. रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा कि हमें यह पता लगाना होगा कि यह एक असामान्य घटना है या जलवायु परिवर्तन का स्थायी प्रभाव. रघु मुर्तुगुड्डे ने सुझाव दिया कि उपग्रह चित्रों के आधार पर नमी के रास्ते को समझने के लिए हिमालय की भू-आकृति का विश्लेषण करना होगा.

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जलवायु परिवर्तन और पश्चिमी विक्षोभ

2025 में मॉनसून सीजन में 19 पश्चिमी विक्षोभ देखे गए, जो सामान्य से ज्यादा हैं. जून में 5, जुलाई में 5 और अगस्त में 5 विक्षोभ आए. सितंबर के पहले हफ्ते में 3 और विक्षोभ देखे गए. ये विक्षोभ सामान्य रूप से सर्दियों में बारिश या बर्फ लाते हैं, लेकिन मॉनसून के दौरान उनकी मौजूदगी असामान्य है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ये बदलाव हो रहे हैं. गर्मी से पश्चिमी एशिया और भूमध्यसागर का तापमान बढ़ रहा है, जिससे जेट स्ट्रीम (हवा की तेज धाराएं) उत्तर की ओर खिसक रही हैं. यह मॉनसून की नमी को हिमालय के पार ले जा सकता है.

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भविष्य के प्रभाव

  • हिमालय में बाढ़ और भूस्खलन: पश्चिमी विक्षोभ और मॉनसून की नमी के मिलने से हिमालय में भारी बारिश, बाढ़, और बादल फटने की घटनाएं बढ़ सकती हैं. यह स्थानीय समुदायों और पर्यावरण के लिए खतरा है.
  • तिब्बत में नमी का असर: अगर तिब्बत में नियमित बारिश होने लगे, तो वहां की शुष्क जलवायु बदल सकती है. इससे ग्लेशियरों के पिघलने और नदियों के प्रवाह पर असर पड़ सकता है.
  • भारत में मॉनसून का बदलाव: अगर नमी तिब्बत तक जाएगी, तो भारत के कुछ हिस्सों में बारिश कम हो सकती है, जिससे खेती और पानी की आपूर्ति प्रभावित होगी.
  • जलवायु मॉडल की जरूरत: वैज्ञानिकों को नए जलवायु मॉडल बनाने होंगे, जो इन बदलावों को समझ सकें और भविष्य की भविष्यवाणी कर सकें.

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