'पता चल गया गीजा का पिरामिड किसने बनाया था,' वैज्ञानिक का दावा - नई खोज में मिले हैं ऐसे सबूत

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गीजा का विशाल पिरामिड दुनिया के आश्चर्यों में एक हैं. अक्सर इसके निर्माण को लेकर बातें होती रहती हैं कि आखिर इतने विशाल स्ट्रक्चर को इतने सटीक तरीके से किसने बनाया होगा?  पुरात्वविद हमेशा इस सवाल का जवाब ढूंढते आए हैं. अब तक यही माना जाता रहा है कि पिरामिड को बनाने में कई साल लगे. मिस्र के फराहो ने इसे बनवाने में गुलामों का इस्तेमाल किया होगा. 

अब एक नई खोज ने इस बात को खारिज कर दिया है कि इसका निर्माण गुलामों ने किया था. गीजा के महान पिरामिड के अंदर कुछ असाधारण खोज से पता चलता है कि इन्हें वास्तव में किसने बनाया था. पुरातत्वविदों ने मिस्र के महान पिरामिड के अंदर एक महत्वपूर्ण खोज की है, जिससे यह पुष्टि हो गई है कि 4,500 वर्ष पहले इस स्मारक का निर्माण वास्तव में किसने किया था?

गुलामों ने नहीं बनाए पिरामिड
पुरातत्वविदों की नई खोज  4,500 साल पहले बने दुनिया के इस अजूबे के असली निर्माताओं की पुष्टि करती है. यह खोज लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को खारिज करती है कि महान पिरामिड को गुलामों द्वारा बनाया गया था. ऐसा प्राचीन यूनानी स्रोतों से मिले कुछ संकेतों से दावा किया जाता रहा है. 

कुशल श्रमिकों ने दिया पिरामिड को आकार
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, प्रसिद्ध इजिप्टोलॉजिस्ट  डॉ. जाही हवास और उनकी टीम ने कई साल से मिस्र के पिरामिड का अध्ययन कर रहे हैं. इस दौरान उनके हाथ कुछ ऐसा लगा , जिससे पता चलता है कि दुनिया के इस प्राचीन आश्चर्य का निर्माण एक लाख गुलामों द्वारा नहीं, बल्कि वहां कठोर शासन के तहत काम करने वाले अत्यंत कुशल, पेशेवर और वेतनभोगी श्रमिकों द्वारा किया गया था.

अब तक पिरामिड निर्माण में गुलामों के इस्तेमाल की होती रही है चर्चा
प्राचीन यूनानियों का कहना था कि इस अदभुत स्मारक को एक लाख गुलामों ने 20 वर्षों तक 3-3 महीने की शिफ्ट में काम करके बनाया था. लेकिन, महान पिरामिड के अंदर हुई खोज ने इस कहानी को बदल दिया है. क्योंकि नई खोज से पता चलता है कि इसका निर्माण वेतनभोगी कुशल मजदूरों द्वारा किया गया था, जो लगातार काम करते थे और हर 10 दिन में एक दिन की छुट्टी लेते थे.

पिरामिड के अंदर मिले इसे बनाने वाले कारीगरों के कब्र
मिस्र के पुरातत्ववेत्ता डॉ. जाही हवास और उनकी टीम ने हाल ही में इमेजिंग तकनीक का उपयोग करते हुए राजा के कक्ष के ऊपर संकीर्ण कक्षों की एक श्रृंखला का अन्वेषण किया, जिसमें उन्हें 13वीं शताब्दी ईसा पूर्व के कार्यदलों द्वारा छोड़े गए ऐसे चिह्न मिले, जो पहले कभी नहीं देखा गया था.  

उन्होंने पिरामिड के दक्षिण में स्थित कब्रों का भी पता लगाया, जो कुशल श्रमिकों के अंतिम स्थल हैं. इनमें पत्थरों को काटते हुए श्रमिकों की मूर्तियां और 'पिरामिड के किनारे के पर्यवेक्षक' और 'शिल्पकार' की 21 चित्रलिपि उपाधियां भी हैं. 

कब्र में मिली करीगरों की मूर्तियां और उनकी उपाधियों से जुड़े शिलालेख
डॉ. हवास ने मैट बील लिमिटलेस पॉडकास्ट पर बताया कि यदि पिरामिड को बनाने वाले गुलाम होते, तो उन्हें कभी भी पिरामिडों के अंदर जगह नहीं मिलती, यानी कि उनकी कब्र पिरामिड के अंदर नहीं बनाई गई होती.डॉ. हवास ने कहा कि मिस्र के राजा और रानियों के इन विशाल मकबरों के अंदर दासों की कब्रें तैयार नहीं की गई होंगी. क्योंकि वहां कुछ ऐसे कब्र भी मिले हैं, जो कुशल कारीगरों के थे.

काफी मुश्किल है कारीगरों के कब्र तक पहुंचना
डॉ. हवास की टीम ऐसे कक्षों में पहुंचे, जहां पहुंचना चुनौतीपूर्ण और खतरनाक है. उन्होंने कहा कि वहां ऐसी लेखन शैली का उपयोग किया गया था, जिसकी केवल प्रशिक्षित मिस्रविज्ञानी ही सटीक व्याख्या कर सकते हैं. डॉ. हवास ने कहा कि यह लगभग असंभव है कि हाल के दिनों में कोई व्यक्ति इस तरह की कोई चीज बना सके. उन कक्षों तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 45 फीट ऊपर चढ़ना पड़ता है और तंग जगहों से रेंगना पड़ता है.

करीगरों की कब्र में मिले उनके औजार और पत्थरों को काटती उनकी मूर्तियां
मिरर की रिपोर्ट के अनुसार , एक क्रांतिकारी खोज में पुरातत्वविदों ने महान पिरामिड के ठीक दक्षिण में कब्रों का पता लगाया है. ऐसा माना जाता है कि यह स्थल उन श्रमिकों का अंतिम विश्राम स्थल है, जिन्होंने इस प्रतिष्ठित इमारत का निर्माण किया था. इन प्राचीन कब्रों में न केवल चकमक पत्थर के औजार और पत्थर तोड़ने जैसे औजार थे, बल्कि ऐसी मूर्तियां भी थीं जो बड़े-बड़े पत्थर के ब्लॉकों को हिलाते हुए मजदूरों को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं. साथ ही इनके काम और इनकी उपाधियों के बारे में लिखे शिलालेख मिले हैं, जो बताते हैं कि ये पिरामिड बनाने वाले कुशल कारीगर थे.

ऐसे हुआ था पिरामिड का निर्माण 
हालांकि, सिर्फ ये कब्रें ही चर्चा का विषय नहीं हैं. डॉ. हवास ने पिरामिड के वास्तविक निर्माण के तरीकों पर भी प्रकाश डाला है. निर्माण में उपयोग किया गया चूना पत्थर मात्र 1,000 फ़ीट दूर से लाया गया था. साक्ष्य बताते हैं कि इसे मलबे और मिट्टी से निर्मित रैंप सिस्टम का उपयोग करके ले जाया गया था. इन निर्माण सामग्रियों के अवशेषों की खोज डॉ. हवास की टीम ने पिरामिड के दक्षिण-पश्चिम में की थी.

डॉ. हवास ने विस्तार से बताया कि यह रैंप पिरामिड के दक्षिण-पश्चिम कोने से आना था और खदान से जुड़ना था. उन्होंने C2 नामक स्थल पर खुदाई का विवरण दिया, जहां उन्होंने इस रैंप के अवशेष खोजे - जो पत्थर के मलबे, रेत और मिट्टी का मिश्रण था.

पत्थरों को ढोने के लिए बना रैंप भी मिला
रैंप को ध्वस्त किए जाने के बावजूद, सभी साक्ष्य नष्ट नहीं हुए - शोधकर्ताओं के लिए संकेत छोड़ गए. गीज़ा का महान पिरामिड चौथे राजवंश में फिरौन खुफू के शासन के दौरान बनाया गया था. यह गीज़ा पठार पर सबसे बड़ा पिरामिड है. पिरामिड मानव वास्तुकला की प्रतिभा का एक प्रमाण है.

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