'सरकार को क्यों बताएं कि हम मुसलमान हैं?', वक्फ कानून के खिलाफ SC में दी गईं ये दलीलें

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सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को निर्णायक सुनवाई की शुरुआत हुई. पहले दिन लगभग पौने चार घंटे तक याचिकाकर्ताओं की तरफ से पांच वरिष्ठ वकीलों ने दलीलें पेश कीं. वकीलों ने मुख्य रूप से यह आरोप लगाया कि नया वक्फ अधिनियम मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों और वक्फ की अवधारणा को कमजोर करता है.

सुनवाई की शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पिछली सुनवाई में तीन मुद्दों पर चर्चा हुई थी—बोर्ड सदस्यों की नियुक्ति, वक्फ बाय यूजर और जिलाधिकारी की भूमिका. इन तीन बिंदुओं पर ही सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अंडरटेकिंग दी थी और उन्हीं पर जवाब दाखिल किया गया है. उन्होंने आग्रह किया कि कोर्ट को सिर्फ इन्हीं मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

"यह कानून नियंत्रण और अधिग्रहण का जरिया है"

कपिल सिब्बल ने इसका विरोध करते हुए कहा कि वे सभी पहलुओं पर दलील रखेंगे और कोर्ट को आदेश दिखाने की चुनौती दी जिसमें केवल तीन मुद्दे तय किए गए हों. सिब्बल ने दलील दी, "यह कानून नियंत्रण और अधिग्रहण का जरिया है."

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कपिल सिब्बल ने कहा कि नया वक्फ कानून पूरी तरह असंवैधानिक है. उन्होंने तर्क दिया कि यह कानून वक्फ संपत्ति को नियंत्रित और छीनने के लिए बनाया गया है. उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि नया कानून कहता है कि जब तक कलेक्टर की जांच पूरी नहीं होती, संपत्ति को वक्फ नहीं माना जा सकता—जबकि वक्फ की प्रक्रिया अल्लाह के नाम पर होती है और एक बार वक्फ हो गया तो वह हमेशा के लिए होता है.

कोर्ट ने सवाल किया कि दरगाहों में चढ़ावे होते हैं, क्या यह संपत्ति की प्रकृति को बदलता है? सिब्बल ने स्पष्ट किया कि वे मस्जिदों की बात कर रहे हैं, जहां चढ़ावा नहीं आता, और यह वक्फ बाय यूजर की ही मिसाल है—जैसे बाबरी मस्जिद. 

सीजेआई ने पूछा कि क्या पुराने कानूनों में वक्फ संपत्ति का रजिस्ट्रेशन जरूरी था. सिब्बल ने बताया कि 1923 के कानून के तहत मुतवल्ली के लिए यह जरूरी था और “shall” शब्द का इस्तेमाल हुआ था, लेकिन सीजेआई ने संकेत दिया कि केवल “shall” कहना अनिवार्यता साबित नहीं करता, जब तक उसके उल्लंघन पर कोई दंड न हो. सिब्बल ने जवाब दिया कि कानून में सिर्फ इतना कहा गया है कि यदि मुतवल्ली रजिस्ट्रेशन नहीं कराता, तो वह अपना अधिकार खो देता है. कोई सख्त दंड नहीं है.

"सरकार को क्यों बताएं कि हम मुसलमान हैं?"

सिब्बल ने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि नए कानून में कोई स्वतंत्र न्यायिक प्रक्रिया नहीं है. कलेक्टर के फैसले को चुनौती देने के लिए अदालत जाना पड़ेगा और जब तक फैसला नहीं आता, संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा. सीजेआई ने सवाल किया कि अगर जांच शुरू हो जाए, तो क्या संपत्ति की वक्फ स्थिति स्वतः समाप्त हो जाती है? सिब्बल ने कहा—"हां, वक्फ नहीं मानी जाएगी."

कपिल सिब्बल ने एक और महत्वपूर्ण पहलू उठाया कि नया कानून वक्फ करने के लिए मुस्लिम होने की पांच साल की प्रमाणिक आस्था की मांग करता है. उन्होंने कहा,"मैं सरकार को क्यों दिखाऊं कि मैं मुसलमान हूं? और पांच साल क्यों इंतजार करूं?" उन्होंने इसे अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन बताया.

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वक्फ बाय यूजर को हटाना गलत: कपिल सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा कि "वक्फ बाय यूजर" को अब हटा दिया गया है, जो पूरी तरह गलत है. यह संपत्ति ईश्वर को समर्पित होती है और इसे कभी खत्म नहीं किया जा सकता. अब केवल वही वक्फ माना जाएगा जो रजिस्टर्ड है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस बीच कहा, "औरंगाबाद में वक्फ संपत्ति विवाद बहुत हैं."

कोर्ट ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद क्षेत्र में वक्फ संपत्तियों से जुड़े कई विवादों का उल्लेख किया. इस पर सिब्बल ने तंज किया—"हां! हमारे डीएनए में ही अड़ंगा लगाना है. अब कोई भी ग्राम पंचायत या निजी व्यक्ति भी शिकायत दर्ज करा सकता है." इस मामले की कोर्ट में सुनवाई अब बुधवार को होगी.

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